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द्रौपदी को समझ पाना सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की वश की बात- सोनल मानसिंह

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नई दिल्ली। दिल्ली के श्रीराम सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर मंडी हाउस के प्रेक्षागृह में स्त्री विमर्श के समापन समारोह में पद्मभूषण सोनल मानसिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि द्रौपदी को समझना सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण के ही वश की बात थी । द्रौपदी एक ऐसी नायिका हैं जिसकी किशोरा या युवती अवस्था को बिल्कुल नहीं समझा जा सकता है। लेकिन प्रौढ़ा अवस्था में थोड़ा थोड़ा समझा जा सकता है।

पद्म भूषण सोनल मानसिंह सिंह ने बड़े ही गहन भावभूमि पर नव विवाहित द्रौपदी के उस मनोविज्ञान पर प्रकाश डालते कहा कि द्रौपदी पर उस समय क्या गुजरी होगी जब उसे अर्जुन के साथ उनके भाईयों को भी पति के रूप में स्वीकार करना पड़ा। लेकिन वह तनिक भी टूटी नहीं क्योंकि उसे अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र को बचाना था। यही कारण है कि वह अपने देश तथा महाभारत की श्रेष्ठतम नायिकाओं में एक मानी जाती है। सखा और सखी के संवेदनात्मक तथा आध्यात्मिक दर्शन की व्याख्या करते सिंह ने कहा कि द्रौपदी के कथन में कितनी बड़ी शक्ति थी कि जब वह भगवान श्री कृष्ण को कहती हैं कि तुम भी अब मेरे कृष्ण नहीं हो। यह वाक्य सुनकर वे अन्तत: युद्ध का शंखनाद करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय मान्यताओं को समझने समझाने के लिए अपनी भारतीय दृष्टि होनी चाहिए। इसके लिए प्रज्ञा चक्षु की विशेष आवश्यकता होती है। उन्होंने भारत के आक्रांताओं का जिक्र करते यह भी कहा कि हाल में ही मणिपुर में जो दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना हुई वह वस्तुत: आक्रांताओं के द्वारा प्रायोजित था।

इस मौके पर कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि यह जो दो दिवसों से स्त्री विमर्श को लेकर विमर्श हुआ। उससे मैंने बहुत कुछ सीखा और सभागार में उपस्थित सभी महिलाएं तथा छात्राएं मुझे याज्ञसेनी की प्रतिमूर्ति लग रहीं हैं। अत: सभी को प्रणाम। अत: न केवल ये स्त्री समाज बल्कि पुरुष वर्ग को भी द्रौपदी के जीवन संघर्ष काल से सीख लेनी चाहिए। प्रो वरखेड़ी ने कहा कि आज मंच पर पधारे पद्म विभूषण सोनल मानसिंह मातृशक्ति स्त्री विमर्श की दृष्टि से कला, संस्कृत तथा संस्कृति के रूप में प्रेरणास्तंभ के रुप में राज्य सभा में विराज रहीं हैं। उन्होंने कहा कि स्त्री सम्मान न केवल मानसिक स्थिति है, अपितु इसे जीवन के व्यवहार में लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कुलपति होने के नाते मैं यह सोचता हूं कि हमारे विश्वविद्यालय के महिलाओं तथा छात्राओं को समान अवसर मिला है कि नहीं और यहां पर उनके साथ ठीक ट्रीटमेंट हो रहा है कि नहीं और उन्होंने कहा कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के इतिहास में नारी विमर्श को लेकर संभवत: यह पहला सम्मेलन किया गया है और भविष्य में भी आयोजित होता रहेगा। कुलपति प्रो वरखेड़ी ने निरुपमा राजेन्द्रन के उस प्रसंग का भी जिक्र किया जिसमें अपने माता-पिता की मृत्यु की मुखाग्नि देने के तुरन्त बाद ही अपने शो को प्रस्तुत करने पहुंच गयी थीं। उनका मानना था कि इस तरह का कार्य कोई भारतीय नारी ही कर सकती है।

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