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एक ब्लड कैंसर के मरीज की सरकार से गुहार

 By Sanjay Bisht 

नई दिल्ली। देश में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल क्या है, ये जानने के लिए विनीत ममगई का उदाहरण काफी है। 35 साल के विनीत ममगई, पिछले 8 महीने से ब्लड कैंसर से जूझ रहे हैं, लेकिन सरकारी खानापूर्ति की वजह से अब भी विनीत का पूरा इलाज नहीं हो पाया है।बीमार होने के बाद भी वे अपने इलाज के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। लेकिन सरकारी सिस्टम का दिल पसीजने का नाम ही नहीं ले रहा है। गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाले विनीत एएमएल के ब्लड कैंसर का शिकार हैं। वे एक एक्सपोर्ट हाउस में काम करते थे, जिसकी वजह से उनके पास ईएसआई का कार्ड भी है।

जब पिछले साल जुलाई में उन्हें कैंसर का पता लगा तो उनके परिवार पर मानो पहाड़ टूट पड़ा। उनके पिता पहले से ही गंभीर बीमारी के शिकार हैं, ऊपर से जब विनीत को जानलेवा बीमारी ने जकड़ा तो पूरा परिवार सदमे में आ गया। विनीत का कहना है कि, ”ईएसआई कार्ड की वजह से उनका दिल्ली के वसुंधरा इनक्लेव के धर्मशिला अस्पताल में इलाज हुआ। 13 कीमोथेरेपी हुई, जिसके बाद कैंसर कुछ हद तक कम हो गया लेकिन डॉक्टरों ने ये भी सलाह दी की कीमो से कैंसर को कुछ दिनों के लिए रोक दिया गया है, लेकिन कैंसर फिर से कभी भी विकराल रूप ले सकता है। अगर ज्यादा समय तक जिंदा रहना है तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट जरूरी है।”

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विनीत का इलाज नोएडा सेक्टर 24 के ईएसआई हॉस्पिटल के अंतर्गत चल रहा है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट की बात जब ईएसआई हॉस्पिटल के बोर्ड के पास पहुंची तो परेशानी खड़ी हो गई। जिस ईएसआई हॉस्पिटल ने विनीत को इलाज के लिए धर्मशिला अस्पताल भेजा था, उसी ईएसआई ने धर्मशिला अस्पताल की सिफारिश को मानने से मना कर दिया। बोन मैरो ट्रांसप्लांट के ऑपरेशन में 20 लाख रूपयों से ज्यादा का खर्च है।

ईएसआई अस्पताल का तर्क है कि इस ऑपरेशन की जरूरत के बारे में अगर दिल्ली एम्स से लिखकर लाया जाएगा तो उसके बाद ही ऑपरेशन के लिए प्रक्रिया शुरू हो सकती है। विनीत अब मुश्किल में हैं, वो पशोपेश में हैं कि क्या करें और क्या नहीं सवाल ये भी है। कि ईएसआई अस्पताल, के पास अपने इतने डॉक्टर हैं, फिर उसे किसी और अस्पताल के डॉक्टरों की परमिशन या सिफारिश की क्या जरूरत है।

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अगर पहले ही कहीं और इलाज करवाना था तो ईएसआई ने धर्मशिला अस्पताल को रेफर क्यों किया, सीधा एम्स या किसी और अस्पताल को भी रेफर किया जा सकता था?इलाज न मिलने से विनीत की जान मुश्किल में फंसी है। अगर उनका बोन मैरो ट्रांसप्लांट नहीं हुआ तो इसके बुरे नतीजे भी हो सकते हैं। विनीत अपने घर में अकेले कमाने वाले हैं। वे सरकार-प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी जान बचाई जाए, नौकरी में रहते जिस ईएसआई में उन्होंने अपना फंड जमा किया है, उसका उन्हें अब फायदा मिले।

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