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केसिंगा अग्र-समाज के सबसे उम्रदराज़ खजांचीदास जैन ने मनाया 94वां जन्म-दिवस

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By Suresh Agrawal, Kesinga, Odisha

अभी दो दिन पहले ही एमडीएच मसालों के बादशाह दिवंगत महाशय धर्मपाल गुलाटी की उद्यमशीलता के बारे सुना था कि कैसे स्वतंत्रता पूर्व महज़ पन्द्रह सौ रुपये की राशि लेकर वे सियालकोट से दिल्ली पहुँचे और फिर उन्होंने अपनी सफलता के झण्डे गाड़े। कुछ इसी से मिलती-जुलती कहानी केसिंगा के श्रध्दानिष्ठ श्रावक खजांचीदास जैन की भी है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार जीवन के 94 वसन्त देख चुके जैन का जन्म 5 दिसम्बर 1927 को हरियाणा के तोशाम नामक गाँव में हुआ एवं उन्होंने जैसे-तैसे कर दसवीं तक की पढ़ाई गवर्नमेंट हाईस्कूल भिवानी से पूरी की और फिर 19 वर्ष की आयु में रोज़ी-रोटी की तलाश में तोशाम से केसिंगा पहुंचे तो उनके हाथ में महज़ पचास रुपये थे।

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फिर उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और ईमानदारी के बल पर कारोबार का जो साम्राज्य खड़ा किया, आज वह सब को प्रेरित करता है। उल्लेखनीय है कि तब उन्हें इस क्षेत्र अथवा यहां की भाषा का कोई ज्ञान नहीं था, फिर भी उन्होंने अपने पुरुषार्थ से तमाम बाधाओं पर विजय हासिल की। अत्यंत सरल स्वभाव एवं सादगी पसन्द जैन के परिजनों द्वारा 5 दिसम्बर को यहां उनका 94वां जन्म-दिवस मनाया गया, तो इन उम्रदराज़ महानुभाव को बधाई देने का लोभ-संवरण करना सभी के लिये मुश्किल हो रहा था।

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परिजनों द्वारा इस अवसर पर उनके हाथों ग़रीबों को कम्बल, अनाज, मिठाई एवं कुछ नक़द भी प्रदान किया गया। ज्ञातव्य है कि दो वर्ष पूर्व 2018 में कटक में आयोजित एक कार्यक्रम में जैनाचार्य महाश्रमण द्वारा अपने सम्बोधन में उन्हें श्रध्दानिष्ठ श्रावक कहा गया था। सन 1946 से 50 के दौर को याद करते हुये वे कहते हैं कि तब न तो आज की तरह यातायात के साधन उपलब्ध थे और न ही संचार व्यवस्था। ओड़िशा प्रवास के बाद तोशाम में उनके पिता श्री राजेराम के निधन का समाचार भी उन्हें डाक से डेढ़ महीने बाद मिला था। अपनी लम्बी उम्र के बारे में उनका कहना है कि -इसमें कोई रहस्य नहीं है, इन्सान आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल न होकर सरल जीवनशैली अपनाये तो आज भी लम्बी उम्र हासिल कर सकता है।

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