शिक्षा व्यवस्था में पेशा, सोच और चरित्र निर्माण का त्रिकोणात्मक महत्व-सोमेया
नई दिल्ली। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (सीएसयू) दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी के मार्गदर्शन में आठ से दस जून तक नाशिक में चल रहे उत्कर्ष महोत्सव में सीएसयू दिल्ली लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली तथा राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय तिरुपति के संयुक्त संयोजन में आयोजन किया गया जिसके दूसरे दिन गुरुदक्षिणा सभागृह में साधु सन्तों का भव्य सम्मेलन किया गया।
मुख्य अतिथि सोमेया ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में पेशा, सोच और चरित्र निर्माण का त्रिकोणात्मक महत्व है जो संस्कृत के पढऩे और उसके सही ज्ञान से ही संभव है। लेकिन आज इन तीनों में पेशा का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है। अत: आज के दौर में संस्कृत विद्या का और अधिक महत्त्व इसलिए भी बढ़ गया है कि शिक्षा व्यवस्था में इन तीनों तत्त्वों का समन्वय संस्कृत ही कर सकती है। उन्होंने अपने बचपन के समय संस्कृत के प्रति पारिवारिक लगाव को भी याद किया।
पद्मश्री प्रो मिश्र ने कहा कि अपनी सांस्कृतिक पहचान को ठीक से जानने समझने के लिए अपनी सांस्कृतिक इतिहास परम्परा को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी पुरानी संस्कृति भारत की है। अत: भारत का इतिहास ही सबसे पुराना है । लेकिन पाश्चात्य विद्वानों ने इसे नकारकर भारतीय चिन्तन को झूठलाने का भी प्रयास किया। इरान आदि देशों में विक्रमादित्य के राज्य विस्तार तथा उस गौरवशाली इतिहास को भी रेखांकित किया।
मुख्य अतिथि डा. समीर सोमैया, कुलाधिपति सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय मुम्बई उपस्थित रहे। अतिथि के रूप में पद्मश्री प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र, कवि तथा पूर्व कुलपति सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय ने भी अपने विचार रखें। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. जीएसार कृष्णमूर्ति कुलपति रासंवि तिरुपति ने की। देववाणी के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने के लिए संस्कृत पण्डितों तथा संस्कृतेतर विद्वान जिन्होंने संस्कृत को आधुनिक तकनीकों से जोडऩे का सार्थक प्रयास किया है उन्हें भी संस्कृत सेवाव्रती सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रो साम्ब सदाशिव परीक्षा नियन्त्रण मूर्ति, रासंवि, तिरुपति ने धन्यवाद ज्ञापन तथा मधुकेश्वर भट्ट ने मंच का संचालन किया।
सन्त सम्मेलन का आयोजन
इस अवसर पर सन्त सम्मेलन का भी आयोजन किया गया जिसमें अनेक गण्यमान्य साधु. सन्तों को आमन्त्रित किया गया था जिन्होंने संस्कृत के उत्थान को लेकर अनेक महत्त्वपूर्ण विचार रखें। सन्त सम्मेलन में त्र्यंबकेश्वर तपोनिधि आनंद अखाड़ा के अध्यक्ष महन्त शंकरानन्द सरस्वती, कैलाशमठ ट्रस्ट, भक्तिधाम के अध्यक्ष स्वामी सम्विदानंद सरस्वती तथा पंचमुखी हनुमान मंदिर के भक्तिचरणदास आदि सन्तों ने अपने अपने विचार रखें। पूज्य शंकरानन्द स्वामी जी ने कहा कि संस्कृत के बिना न भारतीय भाषा और न ही यहां की संस्कृति का उन्नयन हो सकता।
इस सत्र में प्रो हरेराम त्रिपाठी कुलपति, कविकुल कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय रामटेक महाराष्ट्र प्रो सुकान्त कुमार सेनापति, कुलपति, सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय गुजरात तथा प्रो प्रह्लाद जोशी, कुलपति कुमार भास्कर वर्मन संस्कृत पुरातन अध्ययन विश्वविद्यालय एआसाम ने भी अपने विचार रखे। नासिक परिसर के निदेशक प्रो नीलाभ तिवारी ने कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी, कुल सचिव एप्रो आर जी मूरलसचिव तथा अन्य कुलपतियों तथा अधिकारों ने सन्तों तथा अतिथियों को अंग वस्त्र से स्वागत भी किया।


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