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दो दशक बाद बंटवारा, परिवहन निगम को मिलेंगे 205 करोड़, कर्मचारी यूनियन ने जताई 800 करोड़ की हिस्सेदादी

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देहरादून। उत्तराखंड राज्य गठन के दो दशक बाद उत्तराखंड परिवहन निगम को परिसंपत्तियों के बंटवारे पर 205 करोड़ का हक मिला है। बृहस्पतिवार को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी की बैठक में उत्तराखंड ने इस रकम पर अपनी  सहमति दे दी। हालांकि कर्मचारी यूनियन इस बंटवारे से संतुष्ट नहीं हैं यूनियन ने 800 करोड़ हिस्सेदारी जताई है।

उत्तराखंड बनने के बाद वर्ष 2003 में उत्तराखंड परिवहन निगम का गठन हुआ था। उत्तराखंड परिवहन निगम की चार बड़ी परिसंपत्तियों में से बंटवारे का हिस्सा लेने के लिए कई बार बैठकें हुईं लेकिन कोई ठोस हल नहीं निकला था।

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बृहस्पतिवार को हुई बैठक में परिवहन निगम की परिसंपत्तियों का मामला रखा गया। इसके तहत बताया गया कि नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड गठन और अक्तूबर 2003 में उत्तराखंड परिवहन निगम गठन के बीच उत्तराखंड में संचालित निगम की बसों का टैक्स यूपी परिवहन निगम के पास जमा था। यह राशि 50 करोड़ रुपये है। आज तक इसमें से यूपी ने केवल 14 करोड़ ही जमा कराया है, 36 करोड़ बकाया है।

वहीं, उत्तराखंड परिवहन निगम की यूपी, दिल्ली में चार परिसंपत्तियों में 13 66 प्रतिशत अंश मिलना था। बैठक में यूपी से 205 करोड़ देने का प्रस्ताव आया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। यूपी परिवहन निगम इन परिसंपत्तियों की एवज में उत्तराखंड परिवहन निगम को 205 करोड़ का भुगतान करेगा।

उधर कर्मचारी यूनियन इस बंटवारे से संतुष्ट नहीं है। उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन का कहना है कि जब तक बाजार मूल्य पर बात नहीं होगी, तब तक वह इस बंटवारे को स्वीकार नहीं करेंगे।
उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन के प्रदेश महामंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि बंटवारे के नियमों के हिसाब से परिसंपत्तियों के बाजार मूल्य का 1366 प्रतिशत हिस्सा उत्तराखंड को मिलना था। जब उन्होंने याचिका दायर की थी तो उस वक्त इन परिसंपत्तियों का बाजार मूल्य करीब 50 हजार करोड़ रुपये था। इस हिसाब से उन्होंने न्यायालय में उत्तराखंड के हिस्से के 800 करोड़ देने की मांग रखी थी।

अशोक चौधरी के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार ने जिन 205 करोड़ पर सहमति दी है, उससे ज्यादा तो 250 करोड़ रुपये केवल हमारी परिसंपत्तियों का सर्किल रेट के हिसाब से मूल्य है। उन्होंने इस फैसले को गलत करार दिया। उन्होंने कहा कि जब तक उत्तर प्रदेश, बाजार मूल्य के हिसाब से बंटवारा नहीं करेगा, तब तक वह इस समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे। उनकी यूनियन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ती रहेगी।

 

 

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