प्रताप सिंह नेगी
उत्तराखण्ड के ग्रामीण इलाकों में पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक ओर जहां बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव लोगों को पलायन के लिए मजबूर कर रहे हैं वहीं आए दिन जंगली जानवरों के हमले भी कहीं न कहीं लोगों को घर छोडऩे को मजबूर कर रहे हैं। दिन प्रतिदिन गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं। उत्तराखण्ड राज्य स्थापना के समय यहां के लोगों ने यही सपना देखा था कि राज्य बनने से यहां के लोगों को गांव में ही अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य लाभ जैसी सुविधाएंं मिल पाएंगी साथ ही राज्य में ही लोगों को रोजगार के अवसर भी मिल सकेंगे। लेकिन 22 साल बीतने के बाद भी आज स्थिति जस की तस है। इन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग अपना पुश्तैनी घर छोडऩे को विवश हो रहे हैं। रही सही कसर जंगली जानवरों के आतंक ने पूरी कर दी है। आए दिन जंगली जानवरों के हमलों से लोग भयभीत र्हैं। ग्रामीण इलाकों में आए दिन तेंदुए के हमलों की वारदातों से लोग अब अकेले रहने में डरने लगे हैं। इसके साथ ही जंगली सुअरों, भालुओं और बंदरों के काटने और हरे भरे खेत उजाडऩे से भी लोगों को गांव में अकेले रहने पर डर सताने लगा है। बीते तीन साल के आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले तीन साल में वन्यजीवों के हमले से 161 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह बात सरकार ने सदन में डोईवाला के विधायक बृजभूषण गैरोला और देवप्रयाग के विधायक विनोद कंडारी द्वारा पूछे गए लिखित सवाल के जवाब में बताई है।
विगत वर्षो में हुए पलायन के आंकड़ों में यदि नजर डाली जाए तो सबसे अधिक पलायन यहंा से युवाओं का हुआ है। ऐसे युवा जिनकी औसत आयु 26 से 35 साल हैं उनका स्थाई या अस्थाई तौर पर सबसे अधिक पलायन हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले दस साल में 5 लाख लोग स्थाई या अस्थाई तौर पर अपना घर छोड़ चुके हैं, जो बहुत बड़ी चिंता का विषय है। आंकड़ों में अगर नजर डालें तो सबसे अधिक लगभग 50 प्रतिशत पलायन बेरोजगारी या रोजगार की कमी के कारण हुआ है। वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के कारण भी दस से15 प्रतिशत तक पलायन हुआ है। यदि उत्तराखण्ड के ग्रामीण इलाकों में नजर डाली जाए तो हर गांव में युवा नाम मात्र के दिखाई देते हैं, अधिकतर युवा रोजगार की तलाश में 25 से 30 साल की आयु में गांव छोडऩे को मजबूर हो जाते हैं। कई गांव ऐसे हैं जिनमें अब लोगों की संख्या नाम मात्र की रह गई है। वे भी जंगली जानवरों के हमलों और गांव में कम आबादी की वजह से घर छोडऩे को मजबूर हो रहे हैं। कई गांवों की हालत तो ऐसी है कि यदि कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो उसकी खोज खबर लेने वाला भी कोई नहीं है, ऐसे में पलायन एक बहुत बड़ी मुसीबत बनता जा रहा र्है।

राज्य सरकार ने पलायन को रोकने के लिए भले ही लाख कोशिशें की हों, पर उसकी सारी कोशिशें जमीनी स्तर पर खोखली ही नजर आती हैं। सरकारों द्वारा चुनावी घोषणा पत्रों और विज्ञापनों के माध्यम से भले ही कई बार पलायन को रोकने के लिए उपाय किए गए हों लेकिन पलायन की रफ्तार कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। कोरोनाकाल में ऐसा लग रहा था कि अब लोगों को अपने ही राज्य में सुविधाएं मिल सकेंगी और सरकार ने भी इस ओर कदम उठाना शुरू कर दिया था। अप्रवासियों को वापस लाने के लिए अनेक योजनाओं का भी श्रीगणेश किया गया। लेकिन ये सारी कोशिशे भी धरी की धरी ही रह गई। राज्य सरकार की ओर से पर्यटन, स्वरोजगार, बागवानी समेत कई क्षेत्रों में नए अवसर तलाशने की कोशिश की गई लेकिन अभी तक ये सारी कोशिशें जमीनी स्तर पर कहीं दिखाई नहीं देती हैं। लोगों का बदस्तूर अपना गांव-घर छोड़कर बाहरी राज्यों में जाना जारी है, इसे तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक गांवों में रोजगार के अवसर पैदा नहीं किए जाएंगे साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाना होगा। शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर को बेहतर करना होगा।
पलायन के चलते अब कई जगहों पर ऐसी स्थिति भी देखने में आ रही है कि स्कूल तो हर गांव में खोल दिए गए हैं लेकिन वहां पढऩे वाले बच्चे नदारत हैं, कई स्कूलों में छात्र संख्या 10 से कम आ गई है, ऐसे स्कूल अब बंद होने की कगार पर हैं। वहीं कई ऐसे स्कूल हैं जहां शिक्षक ही नहीं हैं। शिक्षा विभाग के ढुलमुल रवैया ही है कि अधिकतर लोग अपनी मनमाफिक जगहों पर वर्षो से डटे हुए हैं और ग्रामीण इलाकों में वर्षो से अध्यापकों की कमी ही रही है। वहीं स्वास्थ्य सेवाओं पर हम नजर डालते हैं तो जिला स्तर पर भी कोई ऐसा अच्छा अस्पताल नजर नहीं आता जहां पर लोगों का इलाज किया जा सके। गांवों के हालात तो और भी बदत्तर हैं। गर्भवती, महिलाओंं और बुजुर्गों की यदि अचानक तबीयत खराब हो जाती है तो अस्पताल या इलाज की तो बहुत दूर की बात होती है उन्हें डोली से सड़क तक ले जाने के लिए अब गांव में युवा भी नजर नहीं आते हैं, बड़ी मुश्किल से लोगों को ढूंढना पड़ता है। इसलिए जरूरत इसी बात की है कि यदि पलायन को रोकना है तो गांवों तक उचित शिक्षा, स्वास्थ्य लाभ और रोजगार जैसी सुविधाएं मुहैया करानी ही होंगी। नहीं तो वह दिन दूर नहीं कि गांवों में बचे लोग भी पलायन को मजबूर हो जाएंगे।

