Artist Rohini Mani

दिल्ली की 5 आर्ट गैलरियों में ‘युवा सम्भव’ मेगा शो का आयोजन

Report ring Desk

नई दिल्ली। देश के 100 युवा कलाकारों की रचनात्मकता व कल्पनाशीलता का जश्न मनाने के लिए ‘रज़ा फाउंडेशनÓ ने दिल्ली की पाँच आर्ट गैलरियों में ‘युवा सम्भवÓ मेगा शो का आयोजन किया गया। यह कला प्रदर्शनी एक साथ पाँच जगहों पर बीकनेर हाउस, त्रिवेणी कला संगम, विज़ुअल आर्ट गैलरी आईएचसी, किंग्स प्लाज़ा आईआईसीए रोमानिया रॉलेंड आर्ट गैलरी अलयांस फै्रजाइज़ी में आयोजित की गई।

रज़ा जी के शताब्दी वर्ष का जश्न मनाने के लिए बनाए गए कार्यक्रमों की श्रृंखला में से एक है। कवि और सांस्कृतिक दिग्गज अशोक वाजपेयी के अनुसारए रज़ा दुनिया के प्यार और आकर्षण से भरे थे, ख़ासतौर पर उनका व्यावहार लेकिन उन्होंने उस दुनिया और संस्कृति के प्रति भी अपना आभार जताया, जिससे वह जुड़े हुए थे। वह भारतीय सभ्यता की बहुलता, समृद्धि और गंभीरता के असल उत्तराधिकारी थे।

उस्मिता साहू ने कहा है कि प्रदर्शनी के लिए चयनित कलाकार अपनी कला का संदर्भ लगातार इसके इतिहास, संस्कृति, तत्वमीमांसा, सामाजिक-राजनीति और पारिस्थितिकी के अनुसार ढाल रहे हैं। ये प्रदर्शनी शुद्ध या औपचारिक अमूर्तता, आकृति या कल्पनाशीलता की शैली तक सीमित या प्रतिबंधित नहीं है बल्कि एक सार्वभौमिक संकलन के भीतर अंतर्निहित सामूहिक उत्पत्ति की प्रतिध्वनि है।

मुजफ़्फ़रपुर, बिहार से ताल्लुक रखने वालीं अदिती रमन कर्ण पूछती हैं कि इस मध्यमवर्गीय पारंपरिक परिवेश में स्त्री अधिकारवादी (फेमेनिस्ट) होने का क्या अर्थ है। अदिति वर्जित विषयों को चित्रित करने के लिए कढ़ाई, बुनाई और सिलाई का उपयोग करती है और अपने सुई के काम के माध्यम से अपनी बनावट को मूक विरोध का रूप देती हैं।

Artist Puviyarasu k

अनिर्बान साहा (कोलकाता) ने पिछले दो साल से कोविड-19 की भयावह कहानियों को अपने हस्त-चित्रित ग्राफिक नोवल में गढ़ा है। आने वाली मौत का डर और मौत इसकी थीम हैं। अर्जुन दास दस साल की उम्र में कोलकाता चले गए व कई सालों तक सड़क किनारे ढाबों में काम करते रहे। उनकी कलाकर्तियाँ प्रवासी श्रमिकों के लिए उनके व्यक्तिगत अनुभवों से बनी होती हैं और आर्थिक कठिनाई व अस्थिर परिवर्तनशीलता का समालोचनात्मक परीक्षण करती हैं। बिहार के रंति में मधुबनी कलाकारों के घर जन्मे अविनाश कर्ण नई तकनीकों और समकालीन विषयों के ज़रिए लोक कला को नए दृष्टिकोण के साथ जोडऩे का प्रयास करते हैं।

ज्योतिप्रकाश प्रधान ओडिशा की पेंटिंग्स ने सीमित शहरी स्थानों का चित्रण दोहराव व एकांत के रूप में छत्तों जैसी आकृतियों के साथ किया है। उन्होने मानव के जीवित रहने, भोजन, कपड़े और घर के लिए संघर्ष को अपनी पेंटिंग्स के ज़रिए बताया है। पश्चिम बंगाल के शिकारपुर के रहने वाले मूर्तिकार कंचन कार्जी की मूर्तियाँ कालजयी दिखती हैं व उन्हें किसी सार्वभौमिक सामाजिक.सांस्कृतिक संदर्भ में नहीं बांधा जा सकता है। कीर्ति पूजा झारखंड के बिरसानगर की प्रिंटमेकर हैं। वह प्रवासी मजदूरों, किसानों और उनके सामान की एकवर्णीय नक़क़ाशी और चित्र बनाती हैं। कीर्ति ने पूरी तरह से इस विषय पर ध्यान केंद्रित करके इनसे जुड़े अध्ययन को निर्वासन और नुक़सान को शानदार चित्रों में बदला है।

The Raza Foundation L R Akhilesh ji with Ashok Vajpayee at Yuva Sambhav

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