प्रताप सिंह नेगी
भाई बहन का सबसे बड़ा त्यौहार रक्षा बंधन पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। श्रावण पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्यौहार का इंतजार हर किसी को रहता है। उत्तराखण्ड में श्रावण पूर्णिमा को रक्षा बंधन के दिन एक और त्यौहार मनाने की परम्परा सदियों से रही है वह त्यौहार है जन्यू- पुन्यू। जन्यू-पुन्यू के दिन सभी लोग पूजा पाठ करके नई जनेऊ को धारण करते हैं। पूर्णिमा के दिन जनेऊ बदलने के इस पर्व को ही जन्यू पुन्यू नाम दिया गया।
भले रक्षाबंधन के त्यौहार के प्रचार प्रसार से जन्यू पुन्यू के त्यौहार की लोकप्रियता में कमी आ गई हो, लेकिन उत्तराखण्ड के ग्रामीण अंचलों में आज भी लोग इस त्यौहार को जन्यू-पुन्यू नाम से जानते हैं। तीन दशक पूर्व तक गांव के लोग अपने हाथ से बनाई गई जनेऊ ही धारण किया करते थे। घर के बड़े बुजुर्ग जनेऊ बनाने का काम एक माह पहले से शुरू कर देते थे। एक महीने पहले से घर के बुजुर्ग अपने अपने तरीके से अपने पुरोहित के द्वारा बताए गए विधि विधान के साथ लट्टू से रूई कातकर जनेऊ तैयार करने लगत थे। कुछ लोग मेहनत करके ज्यादा मात्रा में जनेऊ तैयार कर लेते हैं जिन्हें निकटवर्ती बाजार में बेचकर अपना मेहनताना भी कमा लेते थे।
जन्यू पुन्यू के दिन गांव के लोग अपने आस पास के नदी, घाट या मंदिरों में जाकर हाथ से बनाई गई जनेऊ का शुद्धिकरण अपने पंडित से करवाया करते हैं। इसे तर्पण या संस्कृत भाषा में यज्ञोपवीत भी कहा जाता है। जनेऊ का शुद्धिकरण करने के लिए तीन सूत्र बोले जाते हैं, ब्रह्मा, बिष्णु और महेश। ये तीनों मंत्र पित्त ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण के प्रतीक होते हैं। जनेऊ में पांच गांठ लगााई जाती हैं जो पांच यज्ञो, पांच ज्ञानेन्द्रियों व पांच कर्मों के प्रतीक हैं। इसके बाद इस तर्पण में इन जनेऊ का शुद्धिकरण करके बाएं कंधे से दाये भुजा की तरफ पहनाया जाता है। तीज त्यौहार मनाने के तरीकों में आए बदलाव के चलते लोग अब बाजार में बिकने वाले जनेऊ भी धारण करने लगे हैं। लेकिन पहले लोग अपने पुरोहित द्वारा दी जाने वाली जनेऊ ही धारण किया करते थे। जन्यू पुन्यू के दिन अब भी पुरोहित घर घर जाकर जनेऊ देते हैं और उसके बदले जजमान उन्हें गुरु दक्षिणा भेंट करके आशीर्वाद लेते हैं।