Report ring Desk
नई दिल्ली। देववाणी परिषद् दिल्ली, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली तथा पीजीडीएवी महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में पीजीडीएवी महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय में जाने माने कवि तथा प्रखर रचनाकार पद्मश्री आचार्य रमाकान्त शुक्ल का संस्कृत साहित्य में राष्ट्रीय योगदानों को लेकर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। साथ ही एक मधुर संस्कृत काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया ।
सत्र की अध्यक्षता करते प्रो भारतेन्दु पाण्डेय दिल्ली विश्वविद्यालय ने पद्मश्री शुक्ल के योगदानों की चर्चा करते उनके सहृदय पूर्ण व्यवहार तथा आकर्षक व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी ज्ञान भित्ति समुन्द्र भित्ति तक स्पर्श करती थी और लब्धप्रतिष्ठ कवि आचार्य रेवा प्रसाद द्विवेदी के साहित्यशास्त्र ग्रथ को सन्दर्भित करते हुए कहा कि आचार्य द्विवेदी ने जो माना है कि काव्य वही है जो राष्ट्रदेव को प्रबोधन करे और आचार्य रमाकान्त शुक्ल की रचनाओं में ये गुण भरे पड़े हैं। मुख्य अतिथि के तौर पर प्रो मीरा द्विवेदी, दिल्ली विश्वविद्यालय ने आचार्य शुक्ल की रचनाओं पर प्रकाश डालते कहा कि उनकी रचनाओं में अत्युत्कट राष्ट्रीय भावना तो है ही। लेकिन करुणा भी बहुत हृदयस्पर्शी है। प्रो रवीन्द्र कुमार गुप्ता, प्राचार्य पीजीडीएवी महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि यह सोचने की बात है कि अपने ही देश भारत में हिन्दी और संस्कृत को आश्रय देने की बात होती है, जबकि विदेशों में उनकी भाषाएं उनकी अपनी पहचान होती है। एसेंट स्टीफेंस कौलेज दिल्ली के डा पंकज कुमार मिश्रा ने आचार्य रमाकान्त शुक्ल ने कहा कि ऐसे व्यक्ति साहित्य के क्षितिज पर विरले ही जन्म लेते हैं जो अमूमन सभी के लिए प्रिय हों। द्वितीय तथा तृतीय सत्र की अध्यक्षता केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के डा अजय कुमार मिश्रा तथा पण्डित विष्णुकान्त शुक्ल ने किया। डा अजय कुमार मिश्रा ने कहा कि जिस तरह हिन्दी के चर्चित लेखक चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की रचना उसने कहा था उन्हें कालजयी बना दिया उसी तरह पद्मश्री रमाकान्त शुक्ल ने अनेक मह्वपूर्ण रचनाएं लिखी, लेकिन उनकी एक मात्र संस्कृत की वैश्विक कविता भाति मे ंभारत ही उन्हें अमर बना सकता है।

