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रात में की नौकरी, दिन में सीखा केक बनाना और अब दे रहे रोजगार

  • दिलीप ऐसे बन गया गौरियां बेकर, जानिए संघर्ष की कहानी

बड़ी मुखानी में नीम के पेड़ के आसपास से गुजरते हुए ‘गौरियां बेकर्स’  नाम ने मुझे अट्रैक्ट किया। इसकी वजह ‘गौरियां’ का हमारी प्रिय चिड़िया गौरैया से मिलता जुलता नाम होना हो सकता है। एक दिन गौरियां बेकर्स में पहुंच गया। वहां स्माइल करता युवा चेहरा, उसका अदब के साथ बातचीत करना और  केक का स्वाद मुझ पर भी चढ़ गया। इससे बढ़कर जो इस युवा के बारे में पता चला वो सराहनीय तो है ही साथ ही युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत भी।

By JP Pandey 

दिन में काम सीखना, रात में खर्चे के लिए नौकरी करना और साथ में पढ़ाई  हर किसी के बूते की बात नहीं होती। यह सब और भी कठिन हो जाता है जब नए परिवेश में इसकी शुरुआत करनी हो। उसने गांव से आकर इससे भी बढ़कर किया। नौकरी की, काम सीखा, पढ़ाई की, खुद के दम पर धंधे की शुरुआत की। दो साल के भीतर दूसरों के लिए रोजगार पैदा किया है।

यहां बात हो रही है ओखलकांडा ब्लाक के कैड़ा गांव निवासी दिलीप सिंह गौरियां की। दिलीप का परिवार गांव में खेती किसानी करता है। इंटर पास कर 2014 में वह हल्द्वानी आ गये। 2018 में बड़ी मुखानी स्थित नीम के पेड़ के पास “गौरियां बेकर्स’ नाम से बेकरी खोली अभी वह छह लोगों को रोजगार दे रहे हैं। गौरियां बेकर्स बनने के पीछे छुपी है संघर्ष की कहानी।

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ऐसे टूटा सरकारी नौकरी का सपना

बारहवीं पास करने के बाद दिलीप गांव से नौकरी की तलाश में हल्द्वानी आ गए। वह भी सरकारी नौकरी करना चाहते थे। नौकरी का रास्ता दिमाग में साफ नहीं था कि फौज ज्वाइन करें या फिर कोई और नौकरी। इसी बीच सीआरपीएफ के लिए अप्लाई कर दिया। इसमें मेडिकल और फिजिकल पास किया और रिटन इग्जाम होने में डेढ़ साल लग गया । हालांकि इसमें वह पास नहीं हो पाए मगर इसका पेपर लीक होने से जो पास हुए थे उनकी ज्वाइनिंग भी अधर में लटक गयी। यहीं से सरकारी नौकरी के प्रति उनका मोहभंग हो गया।

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खर्चे के लिए रात की नौकरी दिन में केक बनाना सीखा

गांव से शहर में आने के बाद तमाम व्यवस्थाएं करनी होती हैं। इसमें कमरा और खाने पीने का खर्चा मुख्य है, इसके बाद आगे बढ़ने के लिए पढ़ाई भी। यह समस्याएं गांव से आने वाले हर युवा को फेस करनी पड़ती हैं। दिलीप ने खर्चे के लिए एक इलेक्ट्रीकल प्रोडक्ट की कंपनी में रात की नौकरी की, दिन में बेकरी का काम सीखा और बीए की पढ़ाई भी की। काम सीखने के बाद 2018 में खुद की बेकरी खोली। इसके बाद पीछे नहीं देखा।

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केक रिश्तों में घोलता है मिठास

‘गौरियां बेकर्स’ में केक, पिज्जा, पेटीज और बर्गर मिलता है। दिलीप बताते हैं कि उनका ज्यादा फोकस केक पर है। केक की करीब 13-14 वेरायटी होतीं हैं। मगर लोग फ्रेश फ्रुट और चाकलेट को ज्यादा पसंद करते हैं। बकौल दिलीप उनकी बेकरी में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है, इसके साथ ही उनके केक का टेस्ट भी लोगों को पसंद आता है। केक रिश्तों में मिठास घोलता है। रिश्तों को मधुर बनाने में उनका केक काम आए इससे बढ़िया बात क्या हो सकती है।

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ऐसे निपट रहे कोरोना काल की चुनौती से

कोरोना काल में धंधे को बनाए रखना हर उद्यमी के सामने चुनौती है। इसके लिए ‘गौरियां बेकर्स’ ने फ्री होम डिलीवरी शुरू की है। फोन पर आर्डर से ही डिलीवरी की जा रही है। लाॅकडाउन का समय उनके लिए भी मुश्किल भरा रहा। साथ में काम करने वालों की तनख्वाह देने में परेशानी आई। दिलीप कहते हैं कि लोगों का उन पर जो विश्वास बना है, उसने उन्हें इस संकट से बाहर निकाल दिया। अब जिंदगी फिर से रफ्तार पकड़ने लगी है।

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