नई दिल्ली। 77वें स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के माननीय कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी कहा है कि राजनैतिक स्वतंत्रता के साथ साथ मातृभाषा की स्वतन्त्रता आवश्यक है। संस्कृत के संस्पर्शन से अंग्रेजी की विषमूर्छा से मुक्ति मिलेगी। क्योंकि भारत की अधिसंख्य भाषाएं संस्कृत से बहुत ही निकट हैं। अत: औपनिवेशिक शासन के कारण संस्कृत तथा भारतीय भाषाओं को विशेष षड्यंत्र के अन्तर्गत विस्मृत करवाने का जो प्रयास किया जाता रहा, उसे फिर से सुव्यवस्थित करने का समय आ गया है। भाषाएं संस्कृति की संरक्षिका होती हैं। इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका प्राणदायिनी होगी।
कुलपति वरखेड़ी ने कहा कि यशस्वी प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी जी ने मेरा माटी, मेरा देश की जो बात कही है उसमें भारतीय भाषा, वेष तथा आहार विहार के साथ साथ राष्ट्रीय भावना का भी प्रखर संचार है जिसे देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बड़े ही निष्ठा से समझना होगा और पालन भी करना होगा। भारत में सभी मतों का सम्मान है क्योंकि यह प्राचीन काल से ही वसुधैव कुटुम्बम् के स्वर को विश्व में गुंजित रहता है। कुलपति ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि संस्कृत का अपना एक विस्तृत भू-भाग है। अत: हमें यह समझना चाहिए कि देश की रक्षा करने का अर्थ संस्कृत की रक्षा करना है और इस देश की माटी का एक एक कण शिरोधार्य है। संस्कृत के महत्त्व की चर्चा के प्रसंग में प्रो वरखेड़ी ने यह भी कहा कि केवल शास्त्र रक्षण या इसका प्रचार उद्देश्य नहीं होना चाहिए बल्कि इसका पूरा का पूरा प्रयास किया जाना चाहिए कि मानव जीवन तथा जीव जन्तुओं के उत्थान तथा सुख शान्ति में संस्कृत शास्त्रों को कैसे अधिक से अधिक सदुपयोग में लाया जा सके।

