आरसीईपी में शामिल देशों की आबादी, जीडीपी और व्यापार पूरी दुनिया का पचास फीसदी है। इससे ही इस समझौते के महत्व व व्यापकता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह स्थिति तब है जबकि दुनिया की दूसरी सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत इसमें शामिल नहीं हुआ है।
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आठ साल की जद्दोजहद के बाद आखिरकार आरसीईपी पर हस्ताक्षर हो गए हैं। माना जा रहा है कि मंदी की आहट के बीच यह समझौता विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। इसमें चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड आदि 15 देशों ने साइन किए हैं। लेकिन भारत ने टैरिफ, गैर-टैरिफ मुद्दे व अन्य मुद्दों को लेकर सवाल उठाते हुए इससे खुद को अलग कर लिया है।
कहना होगा कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता यानी आरसीईपी पर 15 देशों के बीच सहमति कायम होना अपने आप में बड़ी बात है। खासकर ऐसे चुनौती भरे वक्त में जब विश्व में संरक्षणवाद का माहौल बनाया जा रहा है। ऐसे समय में जब पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी की वजह से आर्थिक संकट का सामना कर रही है, यह समझौता संजीवनी का काम कर सकता है। अगर समझौता अपने लक्ष्य में सफल हुआ तो यह विश्व में सबसे अधिक आबादी को कवर वाला व्यापक मंच बन जाएगा। एक ऐसा मंच जिसमें चीन व अन्य 14 देश मुक्त व्यापार क्षेत्र के हिस्सेदार होंगे।
गौर करने वाली बात है कि आरसीईपी में शामिल देशों की आबादी, जीडीपी और व्यापार पूरी दुनिया का पचास फीसदी है। इससे ही इस समझौते के महत्व व व्यापकता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह स्थिति तब है जबकि दुनिया की दूसरी सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत इसमें शामिल नहीं हुआ है। अगर इंडिया इस व्यापक समझौते में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए तैयार हो जाता है तो इससे समूचे विश्व में एकजुटता का एक संदेश जाएगा। समय की दरकार यही है कि भारत द्वारा उठाए जा रहे सवालों को चर्चा के जरिए सुलझा लिया जाय।
वहीं चीन का कहना है कि आरसीईपी पर दस्तखत होना मुक्त व्यापार और बहुपक्षीय व्यवस्था के लिए बहुत अहम है। इससे ग्लोबल इकॉनमी को संकट से बाहर निकालने में भी मदद मिलेगी। जैसा कि हम जानते हैं कि पिछले कई महीनों से कोरोना वायरस के कहर के आगे दुनिया बेबस है, इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। ऐसे में यह समझौता वैश्विक स्तर पर आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने में मुख्य भूमिका निभा सकता है।
आईएमएफ़ यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की हालिया रिपोर्ट की मानें तो इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 4 फीसदी से अधिक का संकुचन होगा। इस लिहाज से आरसीईपी पर पंद्रह देशों का समझौते तक पहुंचना बहुपक्षीय प्रणाली को मजबूती देने का काम भी करेगा।
आरसीईपी का उद्देश्य टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम कर उक्त देशों के लिए एक एकीकृत बाजार की स्थापना करना है। गौरतलब है कि आठ साल में 28 वार्ताओं के जरिए इस समझौते को अंतिम रूप दिया जा सका है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह समझौता अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब हो सकेगा।
साभार-चाइना मीडिया ग्रुप