hindi day

हिंदी दिवस विशेषः चीन में भी हिंदी का स्कूल

 

By Anil Azad Pandey, Beijing

साभार- यह लेख अनिल आज़ाद पांडेय ने हिंदुस्तान न्यूज़ पेपर के लिए लिखा था।

 पड़ोसी देश चीन में बच्चों का एक स्कूल ऐसा भी है, जहां हिंदी पढ़ाई जा रही है। यह स्कूल शंघाई से सटे चच्यांग प्रांत के खछ्याओ शहर में है। यह चीन में पहला और एकमात्र स्कूल है, जहां हिंदी का अध्यापन हो रहा है। साल  2010 में स्थापित इस स्कूल में 2013 से हिंदी पढ़ाने की शुरुआत हुई। स्कूल में हिंदी सीखने के साथ-साथ बच्चों को भारत की संस्कृति और अन्य जानकारियों से भी अवगत करवाया जाता है। इसमें बच्चों को हिंदी के अक्षर ज्ञान के अलावा हिंदी लेखन में भी निपुण बनाया जा रहा है।

यह स्कूल एक उदाहरण है कि चीन में पिछले 40 सालों में कितना बदलाव आया है। खुले द्वार की नीति लागू होने से पहले यह देश पूरी दुनिया के लिए एक पहेली था, बाहरी जगत चीन को संदेह भरी निगाहों से देखता था। न कोई चीनी कंपनी अन्य देशों में निवेश करती थी और न ही विदेशी कंपनियों को चीन में प्रवेश की इजाजत थी। इसी तरह, चीन में सिर्फ और सिर्फ चीनी (मैंडरिन) माध्यम के ही स्कूल थे। बस गिने-चुने विश्वविद्यालयों में हिंदी सहित कुछ विदेशी भाषाओं के विभाग थे। उस दौर में शायद ही कोई इस बात की कल्पना कर सकता था कि चीन में इतनी आसानी से अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषा सीखने की छूट होगी। चीन लंबे अरसे तक अंग्रेजी से परहज करता रहा है। लेकिन हाल के वषार्ें में हुए तेज औद्योगिक विकास का नतीजा यह हुआ कि चीन में एक बड़ा मध्यवर्ग तैयार हो चुका है। चीनी लोग देश-दुनिया घूमने की चाहत रखते हैं, मौका मिलने पर विदेश भी जाते हैं। हालिया रिपोर्टों के मुताबिक, विश्व में सबसे अधिक खर्च करने वाले पर्यटक चीन के ही होते हैं। ऐसे में, उन्हें अंग्रेजी या दूसरी अन्य भाषा सीखने की जरूरत महसूस होती है।

hindi day special

चीन के लोग बाहरी सभ्यता, संस्कृति, फिल्मों आदि से प्रभावित दिखते हैं। उन्हें अब क्रिसमस, अंग्रेजी न्यू ईयर और हैलोवीन आदि मनाने से भी ऐतराज नहीं। बावजूद इसके कि चीन में ईसाई धर्म में विश्वास करने वालों की संख्या बहुत कम है। फिर भी क्रिसमस के दौरान चीनी मॉल, बाजार व संस्थान क्रिसमस के रंग में रंगे रहते हैं। यहां विदेशी फिल्में देखने का चलन भी बहुत है। बॉलीवुड की फिल्में लोगों द्वारा काफी पसंद की जाती हैं, क्योंकि आम चीनी लोगों की सोच और परिवारों का दायरा अब भी भारत के ज्यादा नजदीक है। इसलिए लोग दंगल  और सीक्रेट सुपर स्टार जैसी फिल्मों को देखकर सपने पूरा करने का हौसला पाते हैं और दुख-दर्द को भी महसूस करते हैं।

चीन के कई देशों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं। ऐसे में, बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक व्यापार, नौकरी, पढ़ाई आदि के सिलसिले में चीन में रहते हैं। चीन में प्रवास करते हुए इन्हें काफी कम दिक्कतें पेश आती हैं, क्योंकि स्थानीय लोग बड़ी आसानी से विदेशियों को स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि आप्रवासी यहां लंबे समय तक रहना चाहते हैं, लेकिन उनके सामने बच्चों की शिक्षा की समस्या आती है। इस जरूरत को अंतरराष्ट्रीय स्कूल पूरा करते हैं, जहां अंग्रेजी के साथ-साथ प्रमुख विदेशी भाषाएं भी सिखाई जाती हैं। 

चीन में हजारों की तादाद में आप्रवासी भारतीय रहते हैं। वहीं टेक्सटाइल सिटी के नाम से प्रसिद्ध खछ्याओ में भारतीयों की संख्या करीब चार हजार होगी। लेकिन अंग्रेजी और हिंदी में संचालित स्कूल न होने से उनके बच्चे  बेहतर शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे थे। इसी जरूरत को देखते हुए 2010 में शाओशिंग इंटरनेशनल स्कूल की शुरुआत हुई। चीनी और भारतीय लोगों द्वारा स्थापित इस स्कूल में साल 2013 में हिंदी भी शामिल हो गई। यहां एलकेजी से आठवीं कक्षा तक हिंदी वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। इच्छुक छात्र दसवीं तक भी पढ़ सकते हैं। हाल में कुछ विद्यार्थियों ने हिंदी में दसवीं की परीक्षा भी पास की। वर्तमान में इस स्कूल में 18 देशों के कुल 268 बच्चे हैं, जिनमें से 65 छात्र-छात्राएं हिंदी सीख रहे हैं। हिंदी सीखने वालों में तीन चीनी बच्चे भी हैं, जिन्होंने एलकेजी, यूकेजी में इस बार प्रवेश लिया है। इस स्कूल में ऐसे बच्चे भी पढ़ते हैं, जिनके पिता भारतीय और मां चीनी मूल की हैं।

यहां बता दें कि चीनी समाज में पहले की तुलना में बहुत खुलापन आ चुका है। इसमें जाति, धर्म आदि का भेद भी नहीं है।  युवा चीनियों द्वारा अपनी पसंद के विदेशी से शादी करने को लेकर आम तौर पर कोई ऐतराज नहीं होता। चीन में व्यापार करने वाले बहुत से भारतीय पुरुषों ने चीनी युवतियों के साथ विवाह किया है। कुछ योग संस्थान भी संयुक्त तौर पर चीनी-भारतीय जोड़ों द्वारा चलाए जा रहे हैं।

शाओशिंग स्कूल की तरह चीन के हर छोटे-बड़े शहर में तमाम इंटरनेशनल स्कूल खुल चुके हैं। इनमें विदेशी बच्चों के साथ-साथ चीन के उच्च मध्यवर्ग के बच्चे भी पढ़ते हैं, जो अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाएं सीखते हुए विदेशी संस्कृति के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। चीनी परिजन इस बात से बेहद खुश होते हैं कि उनके बच्चे इतनी कम उम्र से एक विदेशी भाषा सीख पा रहे हैं। चीनी लोगों द्वारा अपने बच्चों को इंटरनेशनल स्कूलों में भेजने की एक वजह यह भी है कि चीनी शिक्षा व्यवस्था बहुत प्रतिस्पद्र्धी और रटने की पद्धति पर आधारित है। आर्थिक रूप से सक्षम परिजन अंतरराष्ट्रीय स्कूलों में व्यावहारिक शिक्षा दिलवाना बेहतर समझते हैं।

स्कूलों के अलावा विश्वविद्यालयों में भी विदेशी भाषाओं का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। इस समय यहां के 16 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। भारत और चीन के व्यापारिक संबंध बेहतर होने से चीनी नौजवान हिंदी का अध्ययन कर रहे हैं। हिंदी सीखने से उन्हें भारत स्थित चीनी कंपनियों में आसानी से नौकरी मिल जाती है। दूसरी ओर, भारतीय युवा भी चीनी सीखकर अपना भविष्य संवार रहे हैं।

 

लेखक चाइना मीडिया ग्रुप में वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनका यह लेख हिंदुस्तान अखबार में 25 जनवरी, 2019 को प्रकाशित हुआ था। लेख का मूल लिंक 

https://www.livehindustan.com/blog/story-opinion-hindustan-column-on-25-january-2377721.html

Follow us on Google News

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top