By Aashish pandey
इस साल बैसाखी का पर्व 13 अप्रैल को मनाया जाएगा। बैसाखी से पकी हुई फसल को काटने की शुरुआत हो जाती है।13 अप्रैल 1699 के दिन सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था। आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है।
हिंदी कैलेंडर के अनुसार इस दिन को हमारे सौर नव वर्ष की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है।इस दिन लोग अनाज की पूजा करते हैं और फसल के कटकर घर आ जाने की खुशी में भगवान और प्रकृति को धन्यवाद करते हैं. देश के अलग-अलग जगहों पर इसे अलग नामों से मनाया जाता है-जैसे असम में बिहू, बंगाल में नबा वर्षा, केरल में पूरम विशु के नाम से लोग इसे मनाते हैं। हालांकि इस बार कोरोना की वजह से लोग अपने-अपने घरों में ही रहकर बैसाखी का पर्व मनाएंगे।
बैसाखी, दरअसल सिख धर्म की स्थापना और फसल पकने के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है इस महीने रबी फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है और पकी हुई फसल को काटने की शुरुआत भी हो जाती है. ऐसे में किसान खरीफ की फसल पकने की खुशी में यह त्योहार मनाते हैं। 13 अप्रैल 1699 के दिन सिख पंथ के 10वें गुरू श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था. आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है।
कैसे पड़ा बैसाखी नाम?
बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है. विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं. कुल मिलाकर, वैशाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है. इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है।