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कई रहस्य और रोमांच संजोए है श्री नंदा राजजात यात्रा में

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प्रताप सिंह नेगी
एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा और गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत श्रीनंदा राजजात अपने में कई रहस्य और रोमांच संजोए है। राजजात यात्रा मां नंदा को उनकी ससुराल भेजने की यात्रा है। मान्यता है कि एक बार नंदा अपने मायके आई थीं। लेकिन किन्हीं कारणों से वह 12 वर्ष तक ससुराल नहीं जा सकीं। बाद में उन्हें आदर-सत्कार के साथ ससुराल भेजा गया। मां नंदा को भगवान शिव की पत्ïनी माना जाता है और कैलास (हिमालय) भगवान शिव का निवास।

चमोली जिले में पट्टी चांदपुर और श्रीगुरु क्षेत्र को मां नंदा का मायका और बधाण क्षेत्र (नंदाक क्षेत्र) को उनकी ससुराल माना जाता है। पौराणिक गाथा के अनुसार 12साल में मां नंदा देवी राजजात यात्रा का आयोजन किया जाता है। पिछली राजजात यात्रा वर्ष 2014 में हुई थी अब वर्ष 2026 में राजजात यात्रा होगी। लोक इतिहास के मुताबिक मॉं नंदा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुमाऊं के कत्यूरी राजवंश की ईष्टदेवी होने के कारण नंदा देवी को राजेश्वरी देवी नाम से संबोधित किया जाता है। कहीं-कहीं नंदा देवी को देवी पार्वती की बहन के रुप भी पूजा जाता है। नंदा देवी अनेक नामों से जानी जाती हैं जिनमें शिवा, नंदा, सुनंदा, शुभानंदा, नंदिनी प्रमुख हैं। नंदा देवी की राजजात यात्रा दो तरह से की जाती है, एक 12 साल और दूसरी हर साल माह अगस्त-सितम्बर में राजजात यात्रा निकाली जाती है। लोग वार्षिक नंदा जात भी मनाते हैं।

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राजजात यात्रा के यात्री 19 दिन में 19 पड़ावों से होकर गुजरते हैं। 280 किमी की यह यात्रा कई निर्जन पड़ावों से होकर गुजरती है। आमतौर पर हर 12 वर्ष में राजजात यात्रा होती है। इस यात्रा को हिमालयी महाकुंभ के नाम से भी जाना जाता है। राजजात यात्रा गढ़वाल-कुमाऊं के सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक भी है। अलग-अलग जगहों से डोलियां आकर इस यात्रा में शामिल होती हैं। कुमाऊं के अल्मोड़ा, कटारमल और नैनीताल से यात्री छतौली नंदा केशरी में आकर राजजात यात्रा में शामिल होते हैं। कंसुवा से राजा की छतौली आती है जो नंद के केसरी में करुड़ के नंदा भगवती से मिलती है। कुमाऊं में कई जगहों पर देवी नंदा देवी की पूजा की जाती है। हर 12 साल में देवी नंदा देवी के सम्मान में नंदा देवी राजजात का एक बड़ा धार्मिक जुलूस आयोजित किया जाता है। नंदा राजजात यात्रा में कुमाऊं, गढ़वाल के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालु भाग लेते हैं।

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चौसिंगा खाडू (काले रंग का भेड़) श्रीनंदा राजजात की अगुवाई करता है। मनौती के बाद पैदा हुए चौसिंगा खाडू को यात्रा में शामिल किया जाता है। राजजात के शुभारंभ पर नौटी में विशेष पूजा-अर्चना के साथ इस खाडू के पीठ पर फंची (पोटली) बांधी जाती है, जिसमें मां नंदा की श्रृंगार सामग्री सहित देवी भक्तों की भेंट होती है। खाडू पूरी यात्रा की अगुवाई करता है। होमकुंड में इस खाडू को पोटली के साथ हिमालय के लिए विदा किया जाता है, जहां एक भव्य यज्ञ और धार्मिक समारोह किए जाते हैं। चार सींग वाले खाड़ू को मुक्त कर दिया जाता है, ऐसा माना जाता है कि यह खाडू कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के निवास तक जाता है। नंदा देवी को विदा करने के बाद श्रद्धालु वापस नौटी लौट आते हैं।

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नंदा देवी के गाथाएं व जागर गाने वाली रुद्रप्रयाग के छिनका गांव की सीमा गुसाई का कहना है कि मां नंदा देवी को कुमाऊं व गढ़वाल में अनेकों नामों से जाना जाता है, ये सब रुप मां पार्वती के अलग-अलग रूपों में माने जाते हैं। उत्तराखंड के चमोली में नौटी में मॉं नंदा देवी का प्राचीन प्रसिद्ध मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार चमोली जिले में पट्टी चांदपुर और श्रीगुरु क्षेत्र को मां नंदा का मायका माना जाता हैं।

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