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समालखा। ‘वर्तमान समय में संसार में सन्त-महात्माओं की नितांत आवश्यकता है, उनसे शिक्षा प्राप्त करके सभी भक्ति मार्ग पर अग्रसर होकर स्वयं आनंदमयी जीवन जियें एवं जन जन तक ज्ञानरूपी रोशनी पहुंचाने का माध्यम बनें।’ यह बात सत्गुरू माता सुदीक्षा ने 74वें वार्षिक निरंकारी सन्त समागम के समापन अवसर पर व्यक्त किए।
सत्गुरू माता ने कहा कि ब्रह्मज्ञान द्वारा भक्ति मार्ग पर चलते हुए ईश्वर पर दृढ़ विश्वास रखकर जीवन आनंदित हो जाता है। जब हम परमात्मा को जीवन का आधार बना लेते हैं और पूर्णत: उसमें समर्पित होकर मन में जब सत्संग, सेवा, सुमिरण की लगन लग जाती है तो यह जीवन वास्तविक रूप में महक उठता है। अत: हम इस निरंकार प्रभु के रंग में निरंतर रंगे रहे एवं अपना विश्वास इतना दृढ़ बनाएं कि फिर किसी भी अवस्था में वह डोल न पाये।
समागम के समापन सत्र में कवि संमेलन का आयोजन किया गया जिसमें ‘श्रद्धा भक्ति विश्वास रहे, मन में आनन्द का वास रहे’ शीर्षक पर अनेक कवियों ने हिंदी, पंजाबी, मुलतानी, हरियाणवी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओं में अपनी अपनी कवितायें पड़ी।