महात्मा गांधी जी सत्ता की भागीदारी अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने की वकालत करते थे और उन्होंने ग्राम स्वराज का सपना इस देश को दिखाया। इससे प्रेरित होकर देश में पंचायती राज व्यवस्था शुरू हुई। इस व्यवस्था में ग्राम सभा या ग्राम पंचायत पहली कड़ी है।
By C.S Karki, Delhi
‘भारत गॉवों में बसता है’ से अपना स्कूली निबंध प्रारंभ करने का चलन बेशक कम हो गया हो पर हकीकत तो यही है कि भारत बसता गांवों में ही है। देश की आत्मा गॉवों में है। इसकी धमनियों में रक्त संचरण करने वाली ऊर्जा का संचारण गॉवों की श्रम शक्ति से ही संचारित होती है। बड़े-बडे औद्योगिक शहरों से ज्यादा गॉवों पर निर्भरता का ताजा उदाहरण इन दिनों दिखाई देता है जब तमाम कामगार, मेहनतकश श्रमिक कर्मचारियों का पलायन गॉवों की ओर हो गया। देश के विकास का सपना गॉवों के उत्थान से ही सम्भव है। विकास योजनाओं का ग्राम केन्द्रित होने से ही विकसित समाज की कल्पना की जा सकती है। इसी सार्थक उद्देश्य की शर्त एवं आम नागरिक के जीवन स्तर के उत्थान के लिए गांधी जी के ग्राम स्वराज की अवधारणा के अंतर्गत ग्राम पंचायतों की स्थापना हुई।
ये पंचायतें स्थानीय स्वशासन पर विकास कार्यों के संदर्भ में गॉव की अपनी सरकारें हैं। वर्तमान में पंचायतों का सवरूप 1986 में एम.एल. सिंघवी कमेटी की स्वीकृति के पश्चात 1992 में ग्रामीण भारत में अस्तित्व में आया। परंतु प्राचीन समय से ही गॉव का प्रशासन एवं शासन द्वारा संचारित होता था। रहन-सहन, आदान प्रदान एवं सामान्य अनुशासन गॉव स्तर पर ही होता था। गॉव ही राज्य की व्यवस्थित प्रशासनिक इकाई होती थी। इस तरह की व्यवस्था हालांकि आज की तरह इलेक्टेड प्रतिनिधि की नहीं होती थी पर चयनित प्रतिनिधित्व एवं प्रतिभा के मानक प्रशासनिक आधार होते थे।
महात्मा गांधी जी सत्ता की भागीदारी अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने की वकालत करते थे और उन्होंने ग्राम स्वराज का सपना इस देश को दिखाया। उपरोक्त से प्रेरित होकर देश में पंचायती राज व्यवस्था शुरू हुई। इस व्यवस्था में ग्राम सभा या ग्राम पंचायत पहली कड़ी है। पंचायतों की स्थापना आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय की अवधारणा को स्थापित करने तथा विकसित करने के उद्देश्य से की गई।
पंचायत व्यवस्था का सही से पालन हो तो परिणाम सुन्दर निकलते
यह तीन स्तरीय व्यवस्था है। ग्राम प्रचायत, क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत। ग्राम पंचायतों का चुनाव सीधे लोकतांत्रिक पद्धति से मतदान द्वारा होता है। क्षेत्र पंचायत के सदस्य तो चुने जाते हैं आम मतदान से पर क्षेत्र पंचायत का मुखिया उनके द्वारा चुना जाता है। क्षेत्र प्रमुख का चुनाव ही आम भारतीय ग्रामीण को चुनाव के बाजार से परिचित कराता है। जब क्षेत्र विकास के सदस्यों से वस्तुओं की तरह व्यवहार होता है। यही दृश्य जिला परिषद के गठन में दिखाई देता है। विकास की मूल इकाईयों का गठन स्वस्थ परम्परा से ही होना चाहिए। यदि संस्थाओं के गठन में धन, जाति या भ्रष्टाचार मिल गया तो उनका स्वरूप विकृत एवं परिणाम कमतर उद्देश्यपरक हो जाते हैं।
ग्राम सभा में पंचायत सचिव सरकारी अधिकारी होता है जो कार्यक्रम एवं एजेंडे का प्रारूप ग्राम सभा की संस्तुति से करता है। सभा बुलाता है एवं पूर्व के कार्यों का अवलोकन करवाता है और आगामी कार्यों का प्रारूप ग्राम सभा के सम्मुख प्रस्तुत करता है। वह पूर्व के कार्यों की प्रगति आख्या भी बताता है और आगामी कार्यों के संदर्भ में बहस के पश्चात आवश्यक हो तो मतदान से प्रस्ताव पारित किए जाते हैं। यह शानदार प्रक्रिया नियमित और अधिकतम ग्रामवासियों की उपस्थिति में हो तो मन्थन के बाद परिणाम सुन्दर निकलते।
ग्रामसभा उत्तरदायी है मूल सुविधाओं के लिए
ग्रामसभा उत्तरदायी है गरीब, किसान एवं मजदूरों के मूल सुविधाओं के लिए। गॉंव की साफ-सफाई, पेयजल योजना, रास्ते एवं प्रारंभिक शिक्षा निर्भर करती है अच्छी ऊर्जावान ग्राम सभा पर। यदि नेतृत्व कर्मठ हो तो गॉवों का परिचय विकास से कराया जा सकता है। अपनी ग्रामसभा के विकास के लिए स्पष्ट खाका बना पा लेने वाली सभा उसे क्रियान्वित कर ही लेती है। परंतु देखा जाता है कि इच्छाशक्ति के अभाव में या राजनीतिक छलावे में ये ग्राम सभा के सभासद या प्रधान मात्र प्रतीक रह जाते हैं। प्रधान को अपनी ग्रामसभा की आवश्यकताओं एवं कमियों का आभास और उन्हें दूर करने की दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिए। उसे सरकारी मशीनरी से नियमबद्ध तरीके से कार्य लेने की दक्षता हासिल करनी चाहिए। उसे अपने प्रस्तावित एवं अग्रसरित कार्यक्रमों की प्रगति के लिए सतत प्रयत्न करना चाहिए।
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वर्तमान में कार्य पद्धति गॉव केन्द्रित नहीं रही। गॉव की बात होती है पर आवश्यकता की प्राथमिकता के बजाए बजट खपत के अनुसार काम होते हैं। प्रधानों को निर्देशित किया जाता है कि किस मद पर खर्च करना है। विकास से कम सरोकार वाले मदों पर खर्च होता है। गॉव के सम्पर्क मार्ग, पेयजल योजना, सिंचाई, लघु किसानी कार्यक्रम आवास एवं पशुपालन संबंधी कार्यक्रमों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। ये मूलभूत सुविधाएं हैं। परंतु होता बहुत अव्यवहारिक। पेयजल योजना को प्राथमिकता न देकर मन्दिर की चारदीवारी बनवा देना, रास्तों का जीर्णोद्धार के बजाए सूखे नाले पर पुलिया बना देना, ग्राम सभाओं की अकर्मण्यता है। विवेक के बिना ही कम महत्वपूर्ण कार्यों में किया गया व्यय भ्रष्टाचार है। प्राथमिकता निश्चित एवं सर्वोपरि होनी चाहिए। अकसर गॉवों में विकास कार्यों को श्रेणीकृत नहीं किया जाता है। महत्वपूर्ण धनराशि अनावश्यक या कम प्राथमिकता के कार्यों के लिए आवंटित हो जाता है। परिणामस्वरूप श्रम एवं धन दोनों का सद्पयोग नहीं हो पाता। किए गए कार्यों की गुणवत्ता भी खरी नहीं उतरती है।
अनियमिताओं को अनदेखी करना भ्रष्टाचार में शरीक होना
ग्राम सभाएं गॉव की प्रगति के अनुरूप निश्चल, निष्कपट काम करने वाली टीम होनी चाहिए। किसी भी सूरत में उन्हें राजनैतिक दलों का खिलौना नहीं बनना चाहिए। ग्रामसभाओं के कार्यों को जन उपयोगी बनाने में संबंधित अधिकारियों का बहुत योगदान होता है। कोई भी योजना का अधिकतम फलित दोहन का मूल्यांकन संबंधित अधिकारी ही करता है। योजनाओं के प्रारूप बनने से कार्य सम्पन्न होने तक हुई अनियमिताओं को अनदेखी करना भ्रष्टाचार में शरीक होना ही है। ग्राम विकास को बढ़ावा देने वाले अधिकारियां की अधिकता हितकारी होती परंतु फंड प्रबंधन करने वाले कर्मचारी अपने कौशल में पारंगता दिखा देते हैं। परिणाम स्वरूप कार्य योजना कागजों में अति गुणवत्ता के प्रमाण पत्र के साथ सम्पन्न हो जाती है। लाभार्थी असमंजस में रहते हैं कि कहां पर ठगे गए।
इस गणतंत्र की हर इकाई गॉव व उसकी ग्राम पंचायत जब अपने हक और उत्थान की सोच विकसित कर सके तद्नुरूप उसके सभी सहभागी इमानदारी एवं मेहनत से बिना भ्रष्टाचार के इसके विकास में संलग्न रहें तो राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ी भागीदारी निभायेंगे।