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लैब से वायरस निकलने की थ्योरी ग़लतः इंडियन रिसर्चर

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Report Ring News

पश्चिमी देशों द्वारा बार-बार लैब से कोरोना वायरस के लीक होने की बात कही जा रही है। लेकिन अब तक वैज्ञानिक शोधों में ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है। यहां तक कि जानकार कह रहे हैं कि वायरस के स्रोत की जांच आदि के लिए वैज्ञानिक तरीके ही काम आएंगे न कि राजनीतिक उद्देश्य से लगाए गए आरोप।
भारतीय शोधकर्ता डॉ. तरुण ने चाइना मीडिया ग्रुप से हुई बातचीत में कुछ वैज्ञानिक रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि कोरोना वायरस पर शोध साल 2003 से हो रहे हैं। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने समय-समय पर इसकी चेतावनी दी थी कि कोरोना वायरस के नेचुरल ऑरिजन वेरिएंट्स महामारी का रूप ले सकते हैं।

अभी हमें इन बातों पर जोर देना चाहिए कि वैज्ञानिक चेतावनियों को किस तरह अमल में लाया जाय या रिसर्च डेटा को नीतियों में कैसे तब्दील किया जाय। लेकिन हम इस बहस में उलझ रहे हैं कि वायरस लैब से निकला या प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ। इसके साथ ही आज के समय में हमें अपने हेल्थ सिस्टम को मजबूत करने की आवश्यकता है। और ग्लोबल हेल्थ और रिसर्च को भी बढ़ावा देना होगा।

वहीं जाने माने जर्नल नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ कैरोलाइना में 2015 में एक सिनथेंटिक कोरोना वायरस तैयार किया गया था। यह जानने के लिए कि मौजूदा दवाएं व वैक्सीन वायरस के खिलाफ कितनी असरदार हैं, कुछ जानवरों पर टेस्ट किए गए थे। उसमें पाया गया कि कोई भी दवा उक्त सिंथेटिक वायरस के खिलाफ़ असर नहीं दिखा रही है। इस शोध के लिए अमेरिकी संस्थानों ने फंड दिया था।

वह कहते हैं कि आजकल तमाम देशों द्वारा वैज्ञानिक तथ्यों की उपेक्षा की जा रही है। जबकि पश्चिमी देशों में मौजूद वायरोलॉजी में शोध आदि को लेकर फंडिंग करने वाली एजेंसी पहले ही वायरस के बारे में जानती थी। ऐसे में फंडिंग एजेंसी की भूमिका सवालों के घेरे में है, कि वह अपने फायदे के लिए किस तरह से संबंधित डेटा का इस्तेमाल कर रही है। जबकि मामले से जुड़ी एजेंसियों को इस बात की जानकारी थी कि कोरोना वायरस महामारी का रूप ले सकता है।
अब जबकि हम देख रहे हैं कि अमेरिका आदि देश बार-बार चीन पर वायरस फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन जगजाहिर है कि चीन और अमेरिका दोनों विभिन्न कोरोना वायरस प्रोजेक्ट्स पर संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं।

कहना होगा कि हम अनभिज्ञता और असंवेदनशीलता के अपने निर्मित पिंजरे में रह रहे हैं, जिससे लॉकडाउन लगाने की स्थिति पैदा हो रही है। जाहिर है कि विज्ञान तथ्यों और आंकड़ों पर काम करता है और समय-समय पर वैज्ञानिक भयावह आपदा आने से पहले चेतावनी देते रहे हैं। जिनमें ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, बीमारियों का प्रसार आदि शामिल हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे अस्तित्व को प्रभावित करते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा आगाह किए जाने की स्थिति में सरकारों व संगठनों को इनसे निपटने का समय मिल जाता है।

ऐसा लगता है जैसे, कोविड-19 वायरस अनायास ही उभरा और महामारी बन गया। सवाल उठता है कि आखिर वैज्ञानिक क्या कर रहे थे और समय पूर्व इस तरह के प्रकोप की कोई भविष्यवाणी क्यों नहीं की गयी? हालांकि, हकीकत कुछ और ही है।

पता चलता है कि इस तरह के प्रकोप की भविष्यवाणी पहले से ही दुनिया भर के वैज्ञानिकों द्वारा अपने शोध के माध्यम से कर दी गई थी। जो कि ज्यादातर उच्च मान्यता प्राप्त एजेंसियों जैसे कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ यूएसए, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट और चीन के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान फाउंडेशन आदि द्वारा वित्त पोषित हैं।

साभार- चाइना मीडिया ग्रुप

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