By Aashish Pandey
श्राद्ध हिन्दू एव भारतीय धर्मों में किया जाना वाला एक कर्म है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं। जिनके गुण व कौशल आदि हमें विरासत में मिले हैं। श्राद्ध पक्ष हर साल भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक रहते हैं। श्राद्ध तो सभी लोग करते हैं लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है की श्राद्ध की शुरुआत किसने कि थी।
हिन्ंदू धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है इन दिनों पितरों को याद किया जाता है और उनका श्राद्ध कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है क्या आप जानते हैं दुनिया में सबसे पहला श्राद्ध किसका हुआ था आइए आज हम इसी बारे में बात करते है।
महाभारत काल मे श्राद्ध के बारे में पता चलता है जिसमें भीष्म पितामाह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबध में कई बातें बताई हैं। यह भी बताया है कि श्राद्ध की पंरपरा कैसे शुरू हुई धीरे धीरे सभी लोगों तक यह परंपरा कैसे शुरू हुई।
महाभारत के अनुसार सबसे पहले महातप्सवी अत्रि ने महर्षि निमि को श्राद्ध के बारे में उपदेश दिया था। महर्षि को ऐसा करते देख और भी ऋषि मुनियों ने पितरों को अन्न देना शुरू किया और लगातार श्राद्ध का भोेजन करते करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए।
सबसे पहले श्राद्ध का भोजन अग्निदेव को
लगातार श्राद्ध का भोजन पाने से देवताओं और पितरों को अजीर्ण रोग (अजीर्ण रोग जब मनुष्य बहुत समय तक अनुपयुक्त अथवा अधिक आहार करता है तथा कुसमय भोजन करता है तो उसकी पाचन शक्ति निर्बल हो जाती है) और इससे उन्हें परेशानी होने लगी परेशानी से मुक्ति पाने के लिए वे ब्राम्हा जी के पास गए और अपने कष्ट के बारे में बताया उनकी बात सुनते हुए उन्होंने बताया कि अग्निदेव आपका कल्याण करेंगे सभी देवता और पितर अग्निदेव के पास पहुंचे और अग्निदेव ने कहा कि अब से श्राद्ध में हम सभी साथ में भोजन किया करेंगे और मेरे पास रहने से आपका अजीर्ण भी दूर हो जाएगा। इसके बाद से सबसे पहले श्राद्ध का भोजन अग्निदेव को दिया जाता है।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि हवन में जो पितरों को निमित्त पिंडदान दिया जाता है। उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते हैं इसलिए श्राद्ध में अग्निदेव को देखकर राक्षस भी वहां से चले जाते है। और अग्नि देव चीजों को पवित्र कर देते हैं, पवित्र खाना मिलने से देवता और पितर प्रसन्न हो जाते हैं।
पिंडदान का सही तरीका
पिंडदान देने का सही तरीका पिंडदान सबसे पहले पिता को उनके बाद दादा को और उनके बात परदादा को देना चाहिए। शास्त्रांे में यही विधि बताई गई है जिसका भी आप पिंडदान कर रहे हैं उस समय उनका ध्यान लगाकर गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमय स्वाह का जप करें।