By Shivam Pandey
पिथौरागढ़ । सीमांत जनपद में विश्वविद्यालय की स्थापना न होने से जनपद के दूरस्थ और नेपाल सीमा से सटे जौलजीबी इलाके में भी रोष है। जनपद मुख्यालय से 68 किमी की दूरी पर काली और गोरी नदी के संगम पर स्थित छोटे से जौलजीबी क़स्बे के वासियों के लिए सबसे नज़दीकी महाविद्यालय 12 किमी की दूरी पर बलुवाकोट में स्थित है। सीमित विषयों की उपलब्धता और संसाधनों के अभाव में अधिकांश राजकीय महाविद्यालयों की तरह बलुवाकोट में भी उच्च शिक्षा की हालत खस्ताहाल है। गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा ग्रहण करना आज भी जौलजीबी के छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। यही कारण है कि पिछले वर्ष पिथौरागढ़ में विश्वविद्यालय स्थापना के लिए चले अभियान को जौलजीबी में भी व्यापक समर्थन मिला था। पिथौरागढ़ में विवि स्थापना को लेकर एक बार फिर से मुखर होते हुए जौलजीबी के स्थानीय नागरिकों, व्यापारियों ने सरकार से सीमांत की अनदेखी न करने की अपील की है। जनपद में विश्वविद्यालय स्थापना की माँग को समर्थन दिया है।
पिछले वर्ष जब पिथौरागढ़ जनपद में विश्वविद्यालय स्थापना के लिए जनसम्पर्क यात्रा जौलजीबी पहुँची तो स्थानीय नागरिकों-व्यापारियों की ओर से भारी समर्थन विश्वविद्यालय की इस माँग को मिला था। सार्थक बातचीत के बाद स्थानीय बाज़ार और ग्रामीण क्षेत्र में चलाये गए हस्ताक्षर अभियान में सभी ने इसे एक ज़रूरी माँग बताते हुए एकजुटता दिखायी थी। जौलजीबी जैसे सीमवर्ती क्षेत्रों के लिहाज़ से विश्वविद्यालय की स्थापना सीमांत जनपद में होना बहुत ज़रूरी है। ना केवल उच्च शिक्षा का स्तर सुधरेगा बल्कि उच्च शिक्षा का प्रसार भी होता। हमारे क्षेत्र के आसपास अनुसूचित जनजातियां की बसासत भी है, विवि बनने से उनको भी उच्च शिक्षा ग्रहण करने के अधिक अवसर मिलते। हमारे स्थानीय मेलों, संस्कृति, जडिबूटियों, वन उत्पादों पर शोध भी सम्भव हो पाते।

– धीरेंद्र धर्मशक्तू (अध्यक्ष- व्यापार मंडल जौलजीबी)
जौलजीबी जैसे दूरस्थ क्षेत्रों की अधिकतर लड़कियाँ सामाजिक आर्थिक कारणों से उच्च शिक्षा ग्रहण करने जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ नहीं आ पाती हैं। अगर पिथौरागढ़ में विश्वविद्यालय खुलता तो सीमांत के डिग्री कॉलेजों की स्थिति भी सुधरती और हमारी लड़कियाँ भी बलुआकोट में ही विज्ञान विषयों की शिक्षा ग्रहण कर पाती। सरकार को सीमान्त क्षेत्र की बेटियों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बारे में भी सोचना चाहिए।
– पुष्पा देवी ( ग्राम प्रधान, दूतीबगड़ ग्रामसभा)
पिथौरागढ़ में विश्वविद्यालय खुलता तो सीमांत क्षेत्र में हर साल आने वाली आपदाओं पर आपदा प्रबंधन विषय के अंतर्गत शोध किया जाता। सीमांत में बागवानी, जड़ी-बूटी और अन्य स्थानीय समस्याओं पर शोध होता व उनका समाधान प्रस्तुत किया जाता। सीमांत में नेटवर्किंग न होने और भयानक आपदा के समय में भी कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा ऑनलाइन असाइनमेंट जमा किए जा रहे हैं, अगर सीमांत का अपना विश्वविद्यालय होता तो यहाँ के विषम भौगोलिक परिस्थियों के कारण छात्रों को आने वाली समस्याओं के प्रति संवेदनशील होता।
– हरीश सिंह ओझा (सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष बलुआकोट महाविद्यालय)
जनपद में विश्वविद्यालय होने से हमारे स्थानीय महाविद्यालय की हालत भी बेहतर होती. कुछ अधिक संसाधन आवंटित होते।हमारे बच्चों को यहीं पढ़ने का मौका मिलता। पिथौरागढ़ में ही विवि मुख्यालय होने से बहुत से काग़ज़ी काम के लिए लम्बी दौड़ नैनीताल-अल्मोडा के लिए नहीं लगानी पड़ती, पिथौरागढ़ में ही काम हो जाता। नेपाल-चीन से लगी इन सीमवर्ती जगहों में उच्च शिक्षा मज़बूत होने से क्षेत्र का विकास होता और सीमाएँ अधिक मज़बूत होती।
– उपेंद्र पाल ( सामाजिक कार्यकर्ता)

