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उत्तराखण्ड की बेटी रोनिका का एनएसडी में चयन, रंगमंच के कलाकारों ने जताई खुशी

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-एनएसडी से तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स करेंगी रोनिका
-देशभर से चयनित होने वाले 33 विद्यार्थियों में शामिल

नई दिल्ली। अगर लगन सच्ची हो और नजऱें केवल मंजि़ल पर हों तो रास्ते खुद बन जाते है। यह बात उत्तराखंड की रोनिका पर सटीक बैठती है। रोनिका का चयन देश की सबसे प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक नाट्य संस्था नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में हुआ है। रोनिका का चयन देशभर से चयनित केवल 33 विद्यार्थियों में हुआ है। उसकी इस उपलब्धि पर रंगमंच जगत ने खुशियां जताते हुए उसके उज्जवल भविष्य की कामना की है।

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उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले के रतूड़ा गांव की एक साधारण परिवार से निकली रोनिका आज राष्ट्रीय रंगमंच की ऊंचाइयों को छू रही है। रोनिका का चयन देश की सबसे प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक संस्थान एनएसडी में हुआ है। वह एनएसडी से तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स इन ड्रामैटिक्स करेंगी, जो वर्ष 2025 से 2028 के बीच चलेगा। रोनिका की इस उपलब्धि पर रंगमंच जगत से जुड़े लोगों ने खुशियां जताते हुए कहा कि उत्तराखंड की इस प्रतिभाशाली बेटी का नाम आना सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे राज्य और रंगमंच जगत के लिए एक गर्व की बात है। रोनिका एक ऐसे गांव से यहां तक पहुंची हैं जहां न मंच है, न स्पॉटलाइट। वहां से निकलकर एनएसडी के प्रतिष्ठित सभागार तक पहुँचना एक संघर्ष, संकल्प और सच्ची साधना की असाधारण कथा है।

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रोनिका अभिनय को साधना मानती थीं- नरेन्द्र सिंह

रोनिका की रंगयात्रा की शुरूआत क्रिएटिव विंडो फॉर परफार्मिंग आर्ट्स एंड कल्चर एजुकेशन ट्रस्ट से हुई जहां उसने रंगमंच की बुनियादी विधाएं, अभिनय की संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति की तकनीकों को आत्मसात किया। संस्था के संस्थापक और रंगकर्मी नरेंद्र सिंह ने बताया कि रोनिका हमेशा अभिनय को साधना मानती थीं। वह मंच पर नहीं, बल्कि किरदार में उतरती थीं। उसका अभिनय दिखावा नहीं, एक आत्मीय अनुभव होता था। इसके बाद रोनिका ने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से थिएटर (परफॉर्मिंग आट्र्स) में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। फिर उसे एनएसडी की थेटर इन एजुकेशन कंपनी में आर्टिस्ट के रूप में कार्य करने मौका मिला।

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सृजनशीलता किसी भौगोलिक सीमा की मोहताज नहीं

सीमित संसाधनों, सामाजिक अपेक्षाओं और राजधानी के तेज़ प्रतिस्पर्धात्मक माहौल के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने हर नाटक को एक साधक की तरह जिया, हर संवाद को आत्मा से बोला और हर मंच को आत्मविस्तार का माध्यम बनाया। उनका अभिनय तकनीक से अधिक संवेदना और जीवन-दर्शन से भरा रहा है। रोनिका की यह सफलता एक स्पष्ट संदेश देती है कि सृजनशीलता किसी भौगोलिक सीमा की मोहताज नहीं होती। कला की जड़ें अगर ज़मीन में गहरी हैं, तो उसकी शाखाएं आकाश को भी छू सकती हैं।

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