By C.S Karki, Delhi
कोई भू-भाग अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थिति, प्राकृतिक सम्पदाओं की संपन्नता, उत्तम कृषि या वहां के निवासियों के विशिष्ट गुणों के कारण विशेष विशेषणों से अलंकृत होता है। हमारे आस्था के चार धाम, बद्रीनाथ धाम, द्वारका, रामेश्वरम एवं जगनाथपुरी देश के चार दिशाओं में स्थित हैं। पूरे देश में प्रतिष्ठित देवस्थान एवं भव्य मन्दिर बने हैं। देश के कई भागों में भगवान ने अवतार लिए एवं लीलाएं की। विभिन्न भागों में ज्योर्तिलिंगों की स्थापना हुई है। इन सब के बावजूद उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है।
बैकुण्ठधाम के स्वामी नारायण (Narayan), धनवैभव की अधिष्ठात्री लक्ष्मी जी के साथ आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करते हैं। आम जन के लिए चिंतन एवं मनन से कुछ विमुख से। सूचनाओं के संचय एवं प्रसारण करने वाले सत्यविवेचक नारदजी को आभास होता है कि सत्ता के स्वामी एवं धनसम्पदा की अधिष्ठात्री दोनों के जीवनशैली से आमजन प्रभावित हो रहा है और सोचा कि नारायण को आम जनता के जीवन का रक्षक होने के साथ पथ प्रदर्शक भी होना पड़ेगा।
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नारायण स्वयं लक्ष्मी के सानिध्य में ले रहे थे सत्ता का आनंद
अविरल भक्ति के प्रतीक नारदजी का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक भक्त की पुकार को भगवान तक पहुंचाना है और संसार मेें मूल्यों की गिरावट के कारणों एवं निवारण का मार्ग प्रशस्त करना है। सचेतक नारदजी संसार का भरण पोषण एवं रक्षण करने वाले विष्णु नारायण को अपने संदेशों से याद दिलाते हैं कि उनका आमजन के प्रति क्या कर्तव्य है। वे संसार में व्याप्त अन्याय एवं शोषण के खिलाफ जागृति के लिए जन शिक्षण का कार्य भी करते हैं। ध्रुव एवं प्रहलाद आदि अनेक उनके ऐसे शिष्य थे जिन्होंने अन्याय के खिलाफ अपने संघर्ष से सर्वअधिकार सम्पन्न नारायण को बाध्य किया कि वे अन्यायी का नाश करें तब आततायी अन्याय के मार्ग पर अग्रसर होकर निरीह जनता का शोषण करते थे। इस अन्याय से लडऩे के लिए शक्ति का संग्रहण करने हेतु योग, ध्यान एवं चिन्तन की विधायें थी। इसी प्रकार की विधाओं का प्रचार प्रसार नारद जी करते थे। परन्तु इन की ओर अधिकांश का लगाव कम हो रहा था। नारायण स्वयं लक्ष्मी के सानिध्य में सत्ता का आनंद ले रहे थे। नारद ने महसूस किया कि विश्व कल्याण के लिए नारायण को यह चेताना आवश्यक है कि आम जन के कल्याण के लिए वे स्वयं योग ध्यान एवं चिंतन करें। ताकि जनता में जागृति उत्पन्न हो और नारायण के द्वारा प्रतिपादित मार्ग पर सब चलें और संसार का कल्याण हो।
खोजी पत्रकार नारद जी समुदाय के आनन्द के लिए संसार के मालिक नारायण को उनका उत्तरदायित्व याद दिलाने में नहीं झिझकते। वे नारायण से कहते हैं भगवन यदि आप ही ध्यान योग को त्याग कर धन, वैभव और ऐश्वर्य का आनंद लेते रहेंगे तो आम जनता भी सन्मार्ग की ओर अग्रसर नहीं होगी।
तप स्थली की खोज में चल पड़े उत्तराखंड की ओर
यह आग्रह नारायण को कतई बुरा नहीं लगा। न उन्होंने नारद को टोका। क्योंकि वे तो ऐसे सत्ताधीश हैं जो आमजन के लिए समर्पित हैं और जो जन की सुख सुविधाओं के लिए उनका ध्यान आकृष्ट कराते हैं। उन्हें वे भक्त कहते हैं। नारायण के लिए दीन दुखियों की सेवा, नारायण से करवा देने वाला नर ही भक्त है। नारायण ने विनम्रता से नारद जी की राय मान ली और आमजन के हित के लिए तप स्थली की खोज में चल पड़े उत्तराखंड की ओर।
उत्तराखंड में शिव पार्वती का निवास था गंगा जी के तट पर। नारायण को वह स्थान तप के लिए अति उत्तम लगा। पर वहां तो भगवान शिव जी रहते हैं। अत: नारायण ने वहीं एक नन्हे बालक का स्वरूप ग्रहण कर लिया। पार्वती जी की दृष्टि उस नन्हे बालक पर पड़ी उन्होंने उसे अपने निवास में आराम से सुला दिया और दरवाजा बंद कर दिया और बाहर निकल गई। कुछ समय पश्चात दरवाजा खोलने पर पार्वती जी देखती हैं वहां नारायण योग मुद्रा में ध्यान मग्न हैं। संसार के कल्याण के लिए चिन्तन एवं ध्यान करते हुए नारायण को बिना तंग किए शिव पार्वती केदारनाथ धाम चले गए। नारायण को खोजती हुई लक्ष्मी जी जब वहां पहुंची तो नारायण को ध्यान में मग्न पाया। उनकी धूप एवं ठण्ड से रक्षा के लिए लक्ष्मी जी ने बेर के पेड़ का रूप धारण कर लिया और नारायण को सुरक्षा प्रदान करने लगी। तभी से वह स्थान बद्रीनाथ धाम कहलाने लगा।
समाज में उच्च आदर्श, आदर्श जीवन पद्धति के श्रेष्ठ मानकों को सथापित करने के लिए नारायण खुद धरा पर आए और बद्री (बेर) के नाथ के रूप में विश्व कल्याण में रत हो गए। अन्य काल खण्डों में नायक नारायण अत्याचार एवं अन्याय के विनाश के लिए राम एवं कृष्ण रूपी मानव देह में अवतरित हुए। स्वयं नारायण जहां पधारे वह है देवभूमि उत्तराखण्ड।
लेखक सेवानिवृत्त शिक्षक हैं।
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