Uttarakhand DIPR
dhami

विदेशी भाषा अंग्रेजी की हर स्तर पर वर्चस्व की भूल को भी सुधार दो

  • लौह पुरुष पटेल जी बने होते प्रधानमंत्री तो विविध भाषा बोली की रियासतों की तरह मानसिक आजादी भी मिल जाती: धामी
  • न्यायालय में फैसलों में भी विदेशी भाषा का वर्चस्व समाप्त हो

रवींद्र सिंह धामी 

खटीमा। विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व भारतीय संस्कृति, इतिहास, जीवन दर्शन को नष्ट कर हमारे स्वाभिमान, गौरव एवं आस्था को भी नष्ट कर रही है। देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल अगर प्रधानमंत्री बने होते तो मानसिक आजादी के लिए आज जंग नहीं करनी पड़ती। अभी तक की सरकारों ने आजादी के बाद अभी तक विदेशी भाषा अंग्रेजी की मानसिक गुलामी को खत्म करने के बजाय मातृभाषा यानी भारतीय भाषाओं को उनका हक देने का सवाल टाल दिया। अब केंद्र सरकार पूर्ववर्ती सरकारों की इस भूल को ठीक कर अंग्रेजी भाषा की हर स्तर पर अनिवार्यता समाप्त करे। साथ ही अब मातृभाषाओं में कोर्ट के फैसले को लेकर विदेशी भाषा अंग्रेजी के वर्चस्व को भी समाप्त किया जाए

भाषाई अस्मिता के संघर्ष मानसिक आजादी के लिए संधर्षरत भारतीय भाषा संगठन के राष्ट्रीय सचिव रवींद्र सिंह धामी ने राष्ट्रीय एकता के लिए लौहपुरुष पटेल के योगदान को रखते हुए कहा कि अलग अलग भारतीय बोली भाषाओं की रियासतों को भारतीय संस्कृति के मर्म को आगे कर लौह पुरुष पटेल ने भारत में मिलाया। पटेल जी प्रधानमंत्री बनते तो विदेशी भाषा अँग्रेजियत की मानसिक गुलामी से भी आजादी मिल सकती थी।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने बीबीसी के संवाददाताओं को बुलाकर कह दिया था कि दुनिया से कह दो गांधी अंग्रेजी भूल गया। इसके बावजूद सवाल अहम है कि मानसिक आजादी पर रोड़ा किसने अटकाया? और क्यों अटकाया? इससे किसको फायदा हो रहा है? भारत में अगर भारत की आत्मा भारतीय संस्कृति की वाहक भारतीय भाषाओं का राज यानि मानसिक गुलामी से कब आजादी मिलेगी? जिस तरह पहली बार बिहार चुनाव में डॉक्टर व इंजीनियरिंग में मातृभाषाओं में पढ़ाई का मामला भाजपा के घोषणा पत्र में पहली बार आया है अब प्रधानमंत्री से आग्रह है कि पूरे देश में हर स्तर पर अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर मातृभाषाओं उनका हक दिया जाए।

dhami

अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन वर्ष 1988 से संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर भारतीय भाषाओं मातृभाषा में कराने व हर स्तर पर अंग्रेजी के वर्चस्व को समाप्त करने की मांग उठा रहा है। 12 मई 1994 को पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की अगुवाई में भाषा संगठन के बैनर तले संघ लोक सेवा आयोग के समक्ष सर्वदलीय ऐतिहासिक धरना हुआ। लेकिन अभी तक मांग पूरी नहीं हुई है।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top