कृषि चैपाल के 17 वर्ष पूरे होने पर ‘खेती-किसानी 10 साल बेमिसाल’ का आयोजन
नई दिल्ली। कृषि, खेती-किसानी में उन्नति करने के लिए हमें ऋषि (यज्ञ धर्म), कृषि(खेती) और कुर्सी (सत्ता) का संतुलित समायोजन करना होगा। ऋषि और कृषि को जीवन प्रदान करने वाले गौवंश का संरक्षण किये बिना हम भारत की ग्रामीण खेती को जिन्दा नहीं रख सकते। अभी भी भारत की 50 प्रतिशत से अधिक खेती ऐसे ही सीमांत किसानों के पास है। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश में हम लोगों ने विभिन्न संगठनों के माध्यम से खेती-किसानी में गौवंश की पुनप्र्रतिष्ठा के प्रयास किये हैं जिसके परिणाम स्वरूप प्राकृतिक और जैविक खेती का रकबा तेजी से बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले एक दशक में भारतीय कृषि में कई अभिनव योजनाओं का सूत्रपात किया है जिसके परिणाम अब नजर आने लगे हैं।
आदिवासी जैन संत गणि राजेंद्र विजय जी महाराज ने यह बात खेती- किसानी पर केंद्रित पत्रिका कृषि चैपाल के 17 वर्ष पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम ‘खेती-किसानी 10 साल बेमिसाल’ में कही। जैन संत कृषि और किसानों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आरंभ की गयी योजनाओं को लेकर गुजरात में आदिवासी समाज के लिए पिछले चार दशकों से काम कर रहे हैं।नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सीडी देशमुख ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2014 से लेकर अब तक कृषि और किसान कल्याण के लिए लागू की गयी नीतियों और योजनाओं पर केन्द्रित था।
इस अवसर पर कृषि चैपाल पत्रिका के विशेष वार्षिकांक ‘खेती-किसानी: 10 साल बेमिसाल’ का विमोचन भी किया गया। मोदी सरकार द्वारा लागू की गयी योजनाओं के विश्लेषण के लिए कई विद्वान और ग्रामीण भारत और खेती-किसानी पर काम करने वाले कई पत्रकार मौजूद रहे। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आरम्भ कार्यक्रम में पर्वतीय कला संगम के कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने दर्शकों का मन मोह लिया। गणेश वंदना और पर्यावरणगीत ‘डाल्यो नाकाट…’ पर पेश किये गए नृत्य ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
खेती-किसानी में मोदी सरकार के दस साल बेमिसाल पर बोलते हुए रक्षा मंत्रालय भारत सरकार में निदेशक पद से सेवानिवृत विद्वान, कवि एवं लेखक नीलाम्बर पाण्डेय ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पिछले दस वर्ष में आरम्भ की गयी तीस से अधिक योजनाओं का विवरण सामने रखा। जन धन योजना और किसान सम्मान निधि की की धनराशि का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अब किसान को इस राशि की किश्त का बेसब्री से इंतजार रहता है। वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश जुगरान ने हॉल की अपनीग?वाल यात्रा का अनुभव बताते हुए कहा कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उत्तराखंड के गाँव क्रांति कर रहे हैं। लोग खेतो में जगह-जगह सौरप्लांट लगाकर बिजली पैदा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में इस हरित ऊर्जा प्रयोग के लिए सरकार सीमांत किसानों को भरपूर आर्थिक सहायता और तकनीकी सहयोग दे रही है। अन्यतमाम योजनाओं का सकारात्मक पक्ष सामने रखते हुए उन्होंने पत्रकारिता और हर किस्म के मीडिया में कृषि और किसान की उपेक्षा पर निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अभी भी देश के बड़े अखबारों और चैनलों के पास कृषि नाम की ना तो कोई बीटहै और न ही वे रिपोर्टिंग में कृषि को कवर कर रहे हैं। ऐसी ही उपेक्षा कृषि को लेकर सोशल मीडिया में भी बनी हुई है। उन्होंने देश के मीडिया समूहों से अनुरोध किया कि वे कृषि बीट को कॉमर्स से अलग कर एक अलग बीट बनाएं और ग्रामीण भारत की कृषि को महत्व प्रदान करें। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी और पत्रकारिता के प्रवक्ता डा. सूर्यप्रकाश सेमवाल ने इस बात को लेकर आयोजकों कोधन्यवाद दिया कि ऐसे दौर में जब खेती-किसानी की मीडिया और समाज में घोर उपेक्षा हो रही है और लोग खेती में भी रील और ग्लैमर खोज रहे हैं, कृषि चैपाल ने 17 सालों से निरंतर पत्रिका प्रकाशित करते हुए सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने इस प्रयास के लिए कृषि चैपाल क टीम को बधाई दी। कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ पत्रकार नीरज जोशी ने कार्यक्रम की आयोजन की पृष्ठभूमि और स्वरूप सामने रखा। कार्यक्रम के संचालक, लेखक पत्रकार एवं वरिष्ठ अधिवक्ता शैली विश्वजीत ने अंगूर की खेती में पिछले एक दशक में हुई भारी वृद्धि और निर्यात की प्रशंसा करते हुए वैल्यू एडिशन की वकालत करते हुए कहा कि अगर इसका अधिकतम लाभ किसान को मिलने लगा तो अगले कुछ वर्षों में भारत अंगूर उत्पादन में बहुत निकल जायेगा।
कार्यक्रम में किसानों के साथ-साथ समाज के हर क्षेत्र के प्रबुद्ध व्यक्ति वकील, पत्रकार, सामजिक कार्यकर्ता, चार्टर्ड एकाउंटेंट, शिक्षक, राजनीतिज्ञ और कलाकार उपस्थित थे। इस अवसर पर निर्मल अखाड़ा लक्ष्मी नगर दिल्ली के संत अमनदीप भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम मेंं उपस्थित लोगों का धन्यवाद करते हुए कार्यक्रम के मुख्य संयोजक और कृषि चैपाल पत्रिका के संपादक महेंद्र बोरा ने कहा कि इस तरह के आयोजन की यह शुरुआत मात्र है। इसके बाद में हम अलग-अलग राज्यों में इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करेंगे और आम किसान तक पहुंचने की कोशिश करेंगे।


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