प्रताप सिंह नेगी
अल्मोड़ा। उत्तराखण्ड के कुमांऊ क्षेत्र में मनाया जाने वाला लोकपर्व त्यौहार इस बार 30 और 31 अगस्त को मनाया जाएगा। बिरुड़ पंचमी से शुरु होने वाले इस त्यौहार का समापन अष्ठमीं को होता है। बिरुड़ पंचमी के दिन एक तांबे या पीतल के वर्तन में पांच या सात प्रकार के अनाज भिगोए जाते है। सातों-आठों के दिन महिलाएं दो दिन का उपवास रखती हैं। यह व्रत विशेष रूप से शादीशुदा महिलाओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-घर की समृद्धि के लिए रखा जाता है।
सप्तमीं को प्रात:काल बिवाहित महिलाओं द्बारा नौले या नदी के किनारे ये बिरुड़ धोकर साफ किए जाते हंै। सप्तमीं के दिन ही महिलाओं द्बारा मॉ पार्वती और महेश की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं जिन्हें लोकल भाषा में गवरा देवी कहा जाता है। गंवरा बनाकर उनका श्रृंगार करके अपने घर के भीतर कुल देवता के सामने रखा जाता है। अष्टमी को बिरुड़ मां गौरा और महेश जी को चढ़ाए जाते हैं। उसके बाद इन्हेें पका कर प्रसाद वितरण किया जाता है।

अष्ठमी के दिन गांव के लोग सामूहिक रूप से झोड़ा चांचरी गाकर खूब नाचते गाते हैं जिसमें गांव के सभी लोग भाग लेते हैं। कुमाऊं खासकर अल्मोडा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और नैनीताल जिलों में यह लोकपर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
व्रत की विधि
-सातों पर्व के दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और दोपहर बाद अपना पूरा श्रृंगार करती हैं। इस दिन महिलाएं धान के हरे भरे खेतों में निकल पड़ती हैं और धान के पौधों से गौरी की पूजा-अर्चना करती हैं।
– आठों के दिन महिलाएं फिर से व्रत रखती हैं और शाम को गौरा-महेश की पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन गौरा-महेश को बिरुड़ चढ़ाए जाते हैं और व्रत टूटने के बाद प्रसाद बांटा जाता हैै।
व्रत का महत्व
-यह व्रत महिलाओं के लिए अपने परिवार की सुख-समृद्धि और बच्चों की लंबी आयु के लिए रखा जाता है।
-इस व्रत के दौरान महिलाएं गौरा-महेश की पूजा अर्चना करती हैं और अपने परिवार की मंगल कामना करती हैं।







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