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पिथौरागढ़। आरंभ स्टडी सर्कल की ओर से दिवंगत वरिष्ठ साहित्यकार मंगलेश डबराल को श्रद्धांजलि देने के लिए पिथौरागढ़ के रामलीला मैदान एकत्रित हुए युवाओं ने सुप्रसिद्ध कवि को उनकी कविताओं के ज़रिए याद किया. साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित और उत्तराखंड में जन्मे श्री मंगलेश डबराल की कविताओं पर बने कविता-पोस्टर लिए युवाओं ने आयोजन स्थल पर उनकी चुनिंदा कविताओं का पाठ भी किया।
मंगलेश जी के साहित्यिक योगदान पर बात रखते हुए वक्ताओं ने उनके रचनाकर्म में लगातार मौजूद रही पहाड़ की आवाज को भी रेखांकित करते हुए कहा कि अपने रचनाकर्म के ज़रिए वे हमेशा हमारे बीच मौजूद रहेंगे।

मंगलेश डबराल की सार्वजनिक जीवन में सक्रियता, साहित्यकार व पत्रकार के रूप में उनके अवदान पर बात रखते हुए ‘आरंभ’ के शिवम ने उनकी टिहरी के काफलपानी गाँव से शुरू हुई यात्रा पर प्रकाश डालते हुए उन्हें कविता में हमारे समय की सबसे सचेत व सशक्त आवजों में से एक बताया शिवम ने कहा कि जितनी सरल और दमदार उनकी कवितायें थी, उतना ही बेहतरीन उनका गद्य था। उनकी पुस्तक ‘एक बार आयोवा’ और ‘कवि का अकेलापन’ इसी का उदाहरण हैं।
उनके पहले संग्रह ‘पहाड़ की लालटेन’ से कविताओं का पाठ करते हुए ‘आरंभ’ की नूतन ने कहा कि मंगलेश जी हम सबके प्रिय कवियों में से एक थे. उनका जाना शोकाकुल करने वाला है लेकिन उनकी कविताएँ हमारे साथ हैं. उनकी ही कविता के ज़रिए उन्हें याद करते हुए नूतन ने कहा कि “मेरी अच्छाई ले लो उन बुराइयों से जूझने के लिए जो तुम्हें रास्ते में मिलेंगी मेरी नींद मत लो मेरे सपने लो !”
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष महेंद्र रावत ने राजनीतिक मुद्दों पर मंगलेश डबराल की सक्रियता को रेखांकित करते हुए कहा कि एक चुनौतीपूर्ण समय में जिस तरह मंगलेश जी ने जनता के पक्ष को कलम के ज़रिए सबके सामने रखा बल्कि ज़रूरत पड़ने पर उन्होंने सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा ले कर अपने नागरिक धर्म का भी बख़ूबी निर्वहन किया। हताशा और निराशा के समय में भी हौसला बँधाने वाली उनकी कविताओं को याद करते हुए महेंद्र ने उनकी कविता की पंक्तियों “शायद अँधेरा था या एक खाली मैदान या खड़े होने भर की जगह शायद वहाँ एक आदमी था।अपने ही तरीके से लड़ता हुआ” से अपनी बात समाप्त की
आरंभ के दीपक ने कहा कि उनकी कविताएँ अपनी सरलता में जितनी गहरी बात कह जाती हैं, उसी वजह से लंबे समय तक याद रह जाती हैं. उनकी कविता में मौजूद राजनीतिक चेतना हम सभी युवाओं को सोचने की दिशा देती नज़र आती हैं. लॉकडाउन के समय में सोशल मीडिया पर विभिन्न मंचों से उनको सुन कर बहुत कुछ सीखने-समझने को मिला. उनके काव्य संकलन ‘नए युग में शत्रु’ से कविताओं का पाठ करते हुए दीपक ने कहा कि वे गहरी मानवीय संवेदना के कवि थे और इसी वजह से प्रभावित करते रहे थे।
श्री डबराल की प्रसिद्ध काव्य पंक्तियों “अपने भीतर जाओ और एक नमी को छुओ/ देखो वह बची हुई है या नहीं इस निर्मम समय में…” से अपनी बात शुरू करते हुए चेतना ने उनकी विविध स्त्री-विषयक कविताओं का पाठ करते हुए अपनी बात रखी. चेतना ने कहा कि पहाड़ से जुड़ा होना और रोज़गार के सिलसिले में पहाड़ के पीछे छूट जाने का दर्द उनकी कविताओं में बहुत ही मार्मिकता से आया है. उनकी कविताओं
राकेश जोशी ने कहा कि अनुवादक के रूप में भी मंगलेश जी को याद किया जाना चाहिए. उनकी कविताओं में जो तेवर थे, वही उनके संघर्षों में भी नज़र आते थे. एक सुंदर और सरल दुनिया का जो स्वप्न उनकी कविताओं में निकल कर आता था उसे रेखांकित करते हुए राकेश ने उनकी काव्य पंक्तियों “एक सरल वाक्य बचाना मेरा उद्देश्य है। मसलन यह कि हम इंसान हैं। मैं चाहता हूँ इस वाक्य की सचाई बची रहे सड़क पर जो नारा सुनाई दे रहा है वह बचा रहे अपने अर्थ के साथ” को उद्धृत किया।
‘आरंभ’ के आशीष ने कहा कि कविता पोस्टर के ज़रिए उनकी कविताओं को हम पहले भी आम लोगों और छात्र-छात्राओं के बीच ले जाते रहे हैं और अब शैक्षणिक संस्थानों के खुलने पर इसे मंगलेश जी की स्मृति में केंद्रित कर विशेष कविता पोस्टर सीरीज़ को विभिन्न स्थानों पर ले जाया जाएगा।
उपस्थित छात्र-छात्राओं में सागर, विद्या, गणेश, अंजलि, रजत, निशा, दिनेश, किशोर, आयुष, पूनम, गोर्की, निखिल, ध्यानेश आदि शामिल रहे.

