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धूमधाम से मनाया गया रक्षाबंधन, कभी श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता था जनेऊ-पुन्यू पर्व

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Report ring Desk

अल्मोड़ा। समूचे देश में आज भाई-बहन का त्यौहार रक्षाबंधन धूम धाम से मनाया जा रहा है। भद्राकाल की वजह से इस बार रक्षाबंधन 11 और 12 अगस्त को मनाया गया। कुछ लोगों ने 11 अगस्त को ही यह पर्व मनाया तो वहीं कुमाऊं के अधिकांश इलाकों में आज सुबह 7 बजे से पहले लोगों ने धूम धाम से इस रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया। सिनेमा जगत और प्रचार प्रसार से रक्षाबंधन का त्यौहार आज काफी लोकप्रिय बन चुका है। लेकिन आज से चार-पॉंच दशक पहले तक रक्षाबंधन के त्यौहार की इतनी चकाचौंध नहीं रहती थी, तब श्रावण मास की पूर्णिमा को लोग नई जनेऊ धारण करते थे। तब यह त्यौहार जनेऊ-पुन्यू नाम से भी जाना जाता था। प्राचीन काल से ही श्रावण पूर्णिमा के दिन ब्राहामण के द्बारा बनाये गई जनेऊ व रक्षा तागा हर जजमान को पहनाया जाता था। मान्यता है इस दिन जनेऊ बदलना शुभ होता है। इसलिए जो लोग जनेऊ धारण करते हैं वे श्रावणी पूर्णिमा के दिन धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं। ज्योतिषी ये भी बताते हैं कि अगर पूरे वर्ष में किसी व्यक्ति को कभी भी जनेऊ बदलने की आवश्यकता होती है तो इसी दिन पूजा करके जनेऊ धारण करना चाहिए।

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सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी बताते हैं कि आज से 30-40 साल पहले उत्तराखंड के राजपूत और ब्राह्मण लोग खुद की उगाई गई कपास से एक महीने पहले से अपने हाथों से लट्टू के सहारे जनेऊ का तागा तैयार करते थे। उस तागे से बड़े बुजुर्ग 6 पल्ली व 3 पल्ïली की जनेऊ बनाकर तैयार करते थे। सावन पूर्णिमा के दिन लोग नदियों के किनारे जाकर अपने-अपने पंडितों के साथ घाट पर स्ïनान करके तर्पण किया करते थे और तर्पण के समय पंडित के द्बारा उन लोगों की बनाई हुई जनेऊ पूरे बिधि बिधान के साथ मंत्रोचारण के साथ जनेऊ का सुद्धिकरण करके जनेऊ पहनने लायक बनाई जाती थी। प्रत्येक पूर्णिमा की तरह इस श्रावण पूर्णिमा का दान-पुण्य के साथ-साथ पावन नदियों में स्ïनान का भी बहुत महत्व है। नेगी का कहना है कि समय के साथ-साथ तीज त्यौहार मनाने के तरीकों में भी काफी बदलाव आ गया है। श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का महत्व तो बढ़ा है लेकिन जनेऊ-पुन्यू के इस त्यौहार को लोग भूलते जा रहे हैं। हालांकि पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी लोग श्रावण पूर्णिमा को नई जनेऊ धारण करते हैं लेकिन कहीं न कहीं इसकी महत्ता कम हुई है।

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