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श्रावण महीने में क्यों की जाती है कांवड़ यात्रा… पढ़ें पूरी कहानी

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भगवान शिव की भक्ति के अनेक मार्ग हैं उसी में एक कावड़ यात्रा भी है। केसरिया रंग के वस्त्र में शिव भक्त कांवड़ लाते हैं और गंगाजल लाकर भगवान शिव को समर्पित करते हैं, इन्हीं भक्तों को कांवरिया कहा जाता है।

राजपुरोहित मधुर का कहना है कि कांवड़ यात्रा सावन महीने में ही होती है। इसी महीने समुद्र मंथन के दौरान विष निकला था। संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष को स्वयं पी लिया था। विष का सेवन करने से भगवान शिव का शरीर जलने लगा, भगवान शिव के शरीर को जलता देख देवताओं ने उनके शरीर के ऊपर जल चढ़ाना शुरू किया। जल अर्पित करने से भगवान शिव का शरीर ठंडा पड़ा और उन्हें उस विष से राहत मिली। इसके बाद से ही ऐसी परंपरा बनी कि हर सावन में भगवान शिव के ऊपर जल चढ़ाया जाने लगा।

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पहले देवताओं द्वारा ऐसी परंपरा शुरू की गई तत्पश्चात उनके भक्तों द्वारा भगवान शिव पर जल चढ़ाने की प्रक्रिया को अनवरत कर दिया गया।

कांवड़ यात्रा के बारे में एक उल्लेख और प्राप्त होता है जिसमें राजपुरोहित मधुर का कहना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा से गंगा का पवित्र जल भगवान शिव को समर्पित किया था तभी से भगवान शिव के ऊपर जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।

कोविड-19 की तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए अयोध्या के राजपुरोहित मधुर ने शिव भक्तों से निवेदन किया है कि वह अपने घर में ही रह कर के पूरे श्रावण मास में पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर उस पर गंगा जल चढ़ाकर पूजन करने का प्रयास करें या नजदीकी प्राचीन शिवालय में जल चढ़ाएं। ऐसा करने से भक्तों की संपूर्ण मनोकामनाएं सिद्ध होंगी, परिवार में सुख- शांति का वातावरण बना रहेगा और कोरोना जैसी भीषण महामारी से भी बचा जा सकता है। सरकार की गाइडलाइन का पालन भी होगा।

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