By Aashish Pandey
फल स्वस्थ और बीमार सभी के लिए जरूरी हैं। इसीलिए डाॅक्टर भी नियमित फल खाने की सलाह देते हैं। वैसे तो बाजार में हर मौसम के फल मिल जाते हैं। मगर लोगों की मांग मौसमी फलों की ही होती है। एक वेरायटी के फलों की गुणवत्ता समान नहीं होती है। गुणवत्ता को बताने के लिए फलों में स्टीकर लगे होते हैं। स्टीकर में लिखे अंकों को पीएलयू (PLU Code) कोड कहते हैं। दुनियाभर में पीएलयू कोड के स्टीकर 2001 से शुरू हुए थे।
अक्सर लोग फलों में लगे स्टीकर को नजर अंदाज कर देते हैं। मगर ये स्टीकर फल के शौकीनों को जरूर देखने चाहिए। फलों पर लगे स्टीकर में एक्सपायरी डेट होती है साथ ही पीएलयू कोड भी दर्ज होता है। पीएलयू कोड से ही फलों की गुणवत्ता का पता चलता है। पीएलयू कोड की जानकारी होने पर गुणवत्ता वाले फलों को खरीदा जा सकता है।
पीएलयू कोड में अंक होते हैं। इन अंकों में ही गुणवत्ता का राज होता है। इन्हीं अंकों से पता चलता है कि फल कैसे उगाया गया है और इसमें रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल हुआ है या नहीं।
ऐसे होती है जैविक फल की पहचान
यदि किसी फल के स्टीकर पर लगा पीएलयू कोड 9 से शुरू होता है और यह संख्या पांच अंकों की होती है तो फल जैविक तरीके से उगाया गया है। इस कैटेगरी में आने वाला फल सेहत के लिए फायदेमंद होता है।
फल गैर आर्गेनिक श्रेणी के फल
यदि किसी फल का पीएलयू कोड 8 से शुरू होता है और यह संख्या पांच अंकों की है तो फल में आनुवंशिक संशोधन किया गया है। इस तरह के फल गैर आर्गेनिक श्रेणी में आते हैं।
कीटनाशक और रसायनों द्वारा उगाये जाने वाले फल
पीएलयू कोड में यदि चार अंक दर्ज हों तो इसका मतलब है इस तरह के फल कीटनाशक और रसायनों द्वारा उगाये जाते हैं। ये फल आर्गेनिक फलों की तुलना में सस्ते होते हैं।