नई दिल्ली। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं को अधिकाधिक महत्त्व दिये जाने के तथ्य को सम्मिलित करने के लिए हिन्दुस्तानी भाषाओं तथा इसके साहित्यों को उन्नयन करने की दिशा में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला के समापन सत्र में जाने माने संस्कृत -संगणक के वैश्विक विद्वान तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयए दिल्ली के पूर्व डीन एवं वर्तमान में वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली आयोग शिक्षा मन्त्रालय, भारत सरकार के अध्यक्ष प्रो गिरीश नाथ झा ने मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए इस तथ्य पर जोर दिया कि संस्कृत भाषा की पढ़ाई सभी जगहों पर होनी चाहिए क्योंकि हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय विश्व का बहुचर्चित संस्कृत ग्रन्थ गीता से ही प्रेरणा लेकर पनडुब्बी का निर्माण किया गया था। अत: संस्कृत का बहुभाषिक पठन पाठन पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020ने विपुल अवसर के वातायन खोला है। इससे भारतीय ज्ञान परम्परा की भी संवृद्धि होगी। आने वाले समय में न केवल भारत अपितु विश्व में भारतीय भाषाओं तथा संस्कृत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होने वाली है। इस संदर्भ में उन्होंने अनुवादिनी तथा भाषिणी अनुवाद टूल्स पर प्रकाश डालते आगे कहा कि आज साधारणीकृत अनुवाद तो हो रहें हैं। लेकिन आवश्यकता इस बात की भी है कि विशेष सटीक अनुवाद के लिए भी अधिक से अधिक पहल की जाय जिसके लिए अपना डोमेन का होना बहुत ही आवश्यक है। इसका भी ध्यान रहे कि एक ही शब्द के अनेक सन्दर्भों को समझने के लिए उस शब्द विशेष के लिए अलग अलग डोमन का होना भी जरूरी है।
कार्यशाला में कहा गया कि अनुवाद का जो बौद्धक तथा उसके तकनीक जन्य समस्या है उसका समाधान इसके एलीग्रोथम लिखने से ही निकलेगा । इसमें मशीन लर्निंग को ठोस चिन्तन का आधार मिलेगा। इसके लिए यह जरूरी है कि एलीग्रोथम के अनुरुप डाटा बनाया जाय और उस डाटा को ठीक से प्रशिक्षित भी किया जाय।