By Suresh Agrawal, Kesinga, Odisha
आज के आधुनिक दौर में घर बैठे ही तमाम तरह का ज्ञान-कौशल अथवा प्रशिक्षण सहज ही हासिल करना सम्भव है, परन्तु भारत की कुछ ऐसी ग्रामीण कलाएं आज भी बेजोड़ हैं, जो कि सदियों से पुस्तैनी कला के तौर पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही हैं और जिनका कि वर्तमान की आधुनिक कलाएं भी लोहा मानती हैं। ऐसी ही एक कला -बांस कला है, जो कि इस समय अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही है और जिसे बचाने में आज भी कुछ लोग संघर्षरत हैं। आदिवासी और जनजाति बहुल कालाहाण्डी क्षेत्र में ऐसी कलाएं आज भी देखने को मिल जाती हैं, जो कि अंचल के कला-समृध्द होने का एहसास कराती हैं।
कालाहाण्डी ज़िला केसिंगा प्रखण्ड के तहत ग्राम सिर्जापाली स्थित गुणनिधि गहीर परिवार भी इस अनूठी बांस-कला को आगे बढ़ाने की साधना में लगा है। परिवार द्वारा बांस-कला के ऐसे बेजोड़ नमूने पेश किये गये हैं कि जिन्हें देख सहसा यह अनुमान लगा पाना भी मुश्किल होता कि -उक्त वस्तु बांस निर्मित ही है। अच्छी बात यह है कि इन विलुप्त होती कलाओं को बचाने किसी हद तक सरकारी प्रोत्साहन प्राप्त हो रहा है, परन्तु अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है।
नवभारत से ख़ास बातचीत में बांस-कला साधक गुणनिधि गहीर कहते हैं कि -यह उनका पुस्तैनी धंधा है और उन्होंने यह अपने पिता से विरासत में मिला था और वर्तमान में उनका पूरा परिवार इस विधा से जुड़ा है। उन्होंने कहा -यद्यपि, सरकारी सहायता से वे अब तक शिल्पी-ग्राम राजस्थान, प्रगति मैदान दिल्ली, तोशाली मेला भुवनेश्वर, बाली-यात्रा के अलावा राष्ट्रीय बम्बू मिशन की सहायता से म्यांमार तक देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं, परन्तु आर्थिक कठिनाइयों के चलते उन्हें वांछित सफलता नहीं मिल पायी है। यदि सरकार द्वार उन्हें आर्थिक अथवा मशीनी सहायता प्रदान की जाये, तो वे अपना उत्पादन बढ़ा कर अधिक आय कर सकते हैं। उनकी वस्तुओं की अच्छी मांग है और विपणन की कोई समस्या नहीं है। कच्चा माल भी स्थानीय स्तर पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
गहीर के अनुसार वर्ष 2008 में उन्होंने सरकारी मिशन शक्ति योजना के तहत एम.जी.आर्ट एण्ड बम्बू क्राफ़्ट के नाम से एक स्वयं सहायता समूह का गठन भी किया है, जिसमें कुल दस सदस्य हैं। ज़िला उद्योग केन्द्र अथवा ओरमास जैसी एजेंसियों से मिलने वाले प्रोत्साहन के प्रति भी वे आभार व्यक्त करना नहीं भूलते, परन्तु बात फिर वहीं आर्थिक संसाधनों पर आकर अटक जाती है।
अपने स्कूली दौर के समय साइंस कांग्रेस में पहली बार बांस से बनायी गयी बैलगाड़ी की सफलता को याद करते हुये गहीर कहते हैं कि -उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि यह कला उन्हें इतना आगे ले जायेगी। उन्होंने नोयडा में आयोजित प्रदर्शनी में उन द्वारा निर्मित बांस की चिड़िया एवं डायनासोर की कृति को मिली प्रशंसा का ज़िक्र करते हुये कहा -अब तो वे सौ से अधिक क़िस्म की चीज़ें बना चुके हैं और इसमें चीज़ें बनाने की संभावनाएं असीम हैं, आवश्यक्ता है तो बस, समुचित मार्गदर्शन एवं संसाधनों की।