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वरिष्ठ अनुवादक और चीन मामलों के जानकार जानकी बल्लभ नहीं रहे

अनिल आजाद पांडेय

बीजिंग ।  लेखक, अनुवादक और चीन मामलों के जानकार जानकी बल्लभ डालाकोटी का गत 30 दिसंबर को चीन की राजधानी बीजिंग में निधन हो गया। वे 94 वर्ष के थे और कुछ समय से अस्वस्थ थे। 24 अगस्त 1928 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के डालाकोट गांव में पैदा हुए बल्लभ लंबे समय से चीन में रह रहे थे। बल्लभ ने वामपंथी और विभिन्न चीनी साहित्यिक रचनाओं का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया। उनकी अनूदित रचनाओं में पश्चिम की तीर्थ यात्रा, प्रसिद्ध चीनी लेखक और कवि लू शुन के अलावा नए चीन के संस्थापक माओ त्सेतुंग की कृतियों का हिंदी में अनुवाद शामिल है। अनुवाद कार्य में वे 90 वर्ष से अधिक तक संलग्न रहे। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की किताब द गर्वनेंस ऑफ चाइना का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद भी किया।

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बता दें कि जानकी बल्लभ पहाड़ के एक छोटे से गांव से बाहर निकलकर दिल्ली पहुंचे और वहां अध्ययन और कुछ समय तक काम करने के बाद 1956 में चीन चले गए। बीजिंग में उन्होंने विदेशी भाषा प्रकाशन गृह में भाषा विशेषज्ञ के तौर पर काम किया। बल्लभ उस दौर में बीजिंग पहुंचे, जब चीन सामंती व्यवस्था से मुक्त होकर नया राष्ट्र बना था। उन्होंने चीन के समाजवाद में कदम रखने से लेकर आधुनिक चीन बनने की यात्रा को बहुत नजदीक से देखा। बल्लभ ने कुल मिलाकर चीन में अपने जीवन के 28 साल गुजारे।

इस दौरान वे बीच में भारत भी लौट आए थे। पहली बार उन्हें चीन-भारत के बीच युद्ध की छाया के बीच 1961 में भारत जाना पड़ा। बताते हैं कि दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहद खराब होने के कारण उस समय चीन में मौजूद लगभग सभी भारतीय भारत लौट गए थे। हालांकि बल्लभ वर्ष 1977 में स्थिति में कुछ सुधार होने के बाद फिर से चीन वापस लौटे और दोबारा विदेशी भाषा प्रकाशन गृह से जुड़ गए। इस दौरान उन्होंने कुछ समय रेडियो बीजिंग में भी काम किया। उनकी पत्नी श्यामा बल्लभ ने भी रेडियो बीजिंग में बतौर अनांउसर कार्य किया। लेकिन इसके बाद बल्लभ फिर से दिल्ली लौट गए और ट्रेड यूनियन सीटू के साथ सक्रियता से काम करने लगे। लेकिन स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उन्होंने साल 2004 में अपने छोटे बेटे अतुल डालाकोटी के साथ बीजिंग में रहने का फैसला किया। उनकी पत्नी श्यामा भी 2014 में अपने निधन तक बल्लभ के साथ बीजिंग में ही रहती थीं।

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पिछले 15 वर्षों से चीन में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार और बल्लभ के पारिवारिक मित्र अनिल आज़ाद पांडेय बताते हैं कि जानकी बल्लभ पहाड़ और अपने गांव से बहुत लगाव रखते थे। अपनी मातृभूमि से दूर रहने के बावजूद वह हमेशा स्थानीय लोगों के संपर्क में रहते थे। नैनीताल में बिताए अपने दिनों को भी वे याद किया करते थे। अनिल पांडेय के साथ हुई कई मुलाकातों में वह बचपन में पेश आयी मुश्किलों और पहाड़ के जीवन की चर्चा किया करते थे। इतना ही नहीं वे अक्सर कहते थे कि उन्हें भारत जाना है, हालांकि उम्र और सेहत के कारण कम ही जा पाना हुआ। सात-आठ साल पहले वे अपने परिवार के साथ कुछ दिन के लिए इंडिया गए भी थे।

जानकी बल्लभ अपने इलाके के स्कूली बच्चों को आगे बढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपने पिता बचीराम डालाकोटी के नाम पर राजकीय इंटर कॉलेज नगरखान के छात्रों को छात्रवृत्ति देना शुरू किया।

जानकी बल्लभ के दो पुत्र हैं। बड़े बेटे अखिल डालाकोटी सिंगापुर में शिपिंग कंपनी से जुड़े हैं और वहीं बस गए हैं। जबकि छोटे बेटे अतुल डालाकोटी दशकों से चीन में रह रहे हैं और भारतीय वाणिज्य और उद्योग महासंघ(फिक्की) के एक्ज़ीक्यूटिव डाइरेक्टर हैं।

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