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हैप्पी (Happy) रहना निहायत जरूरी है खुद के हाल में इस कोरोना काल में

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By G D Pandey

g5यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि हैप्पीनेस  (प्रसन्नता) सर्वोत्तम सकारात्मक भावनाओं और प्रसन्नचित जीवन की अनेकों आनंददायक भावनात्मक प्रतिक्रियाओं की एकीकृत रूप में अभिव्यक्ति है। कई देशों के मनोवैज्ञानिक और शोधकर्ता अभी भी हैप्पीनेस के हर पहलू को वैज्ञानिक तरीके से समझने की कोशिश में लगे हुए हैं। हैप्पी (प्रसन्न) रहने के तरीके तो बहुत सुझाये गये हैं परन्तु हर हाल में हर काल में सभी मनुष्य हैप्पी रहेंगे या हैप्पी रह सकते हैं, यह बात अवास्तविक लगती है। ऐसा इसलिए कि मनुष्य जिस तरह का जीवन व्यतीत करता है, उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी के उतार चढ़ाव, सुख दुख नई समस्याओं से उसका सामना इत्यादि मनुष्य के मनोभावों, उसकी मानसिकता तथा उसकी चेतना को निर्धारित करते हैं। मनुष्य की जीवन यात्रा के दौरान कई उतार चढ़ाव और नये मोड़ आते हैं जो उसकी सकारात्मक तथा नकारात्मक भावनाओं के बीच आन्तरिक संघर्ष को जन्म देते हैं। इस संघर्ष में यदि सकारात्मक सोच नकारात्मक पर हावी हो गया तो व्यक्ति के प्रसन्न रहने की संभावनायें प्रबल हो जाती हैं। और इसके उल्टे, यदि नकारात्मक सोच हावी हो गया हो तो चिंता और डिप्रेशन के मनोभाव प्रबल होने लगते हैं। अर्थात इंसान जिस तरह की भौतिक जिन्दगी बसर करते हैं उसी से उनकी मनोवैज्ञानिक भावनायें तथा चेतना विकसित होती हैं। यदि ज्ञान और चेतना वैज्ञानिक ढंग से मनुष्य के अंदर विकसित हो जाय तो काफी हद तक वह सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ हैप्पी रह सकता है।

विश्व हैप्पीनैस इन्डैक्स के अनुसार 155 देशों में भारत 122 वीं रैंक पर

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हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) द्वारा जारी की गई विश्व के हैप्पी देशों की सूची, जो कि वल्र्ड हैप्पीनैस इन्डैक्स के आधार पर तैयार की गयी बताई जाती है, के अनुसार भारत का स्थान अथवा रैंक 122 दर्शायी गयी है जो कि दुनिया के अधिकांश दुखी या नाखुश देशों की श्रेणी में आता है।
उल्लेखनीय बात यह है कि भारत अपने पड़ोसी देशों चीन, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल तथा श्रीलंका से भी नीचे की रैंक में है। यूएनओ द्वारा जारी इस विश्व रैंकिंग में चीन की रैंक 79, पाकिस्तान की 80, नेपाल की 99, बंग्लादेश की 110 और श्रीलंका की 120 है। यह इन्डैक्स यूएनओ द्वारा प्रति वर्ष जारी किया जाता है। बीच में कई बार इसकी रिपोर्ट जारी नहीं हुई। वर्ष 2013 में भारत हैप्पीनैस के मामले में दुनिया में 111वीं रैंक पर था, 2015 में 117 वीं रैंक, 2016 में 118वीं रैंक तथा 2020 में 122 वी रैंक पर है। अर्थात भारत के लोग वर्ष दर वर्ष दुखी होते जा रहे हैं? अनकी नाखुशी बढ़ती जा रही है। ऐसा क्यों ? हमारी सरकार तो दुनिया के खुशहाल देशों में शुमार होने तथा आर्थिक विकास की ताल ठोक कर हैप्पी रहती है। दुनिया के देशों की जनता की हैप्पीनैस की उपर्युक्त रैंकिंग नार्वे की रैंक पहली, डेनमार्क की दूसरी तथा आइसलैंड की तीसरी है।  यह रैंकिंग का यूएनओ द्वारा 155 देशों की जीडीपी, स्वास्थ्य की दशा, सामाजिक जीवन की दशा, निर्णय लेने की सरकार की क्षमता इत्यदि विषयों पर आंकड़ों का विश्लेषण करके वल्र्ड हैप्पीनैस इन्डैक्स तैयार किया गया है।

समाज के विभिन्न वर्गों तथा तबकों की हैप्पीनीस के अलग -अलग पैमाने

भारत में मालिक (पूजीपति, जमीदार) वर्ग, शासक वर्ग, मजदूर वर्ग, निम्न पूंजीपति वर्ग और श्रमजीवी वर्ग के अलग-अलग वर्ग स्वार्थ हैं। तद्नुसार ही इन वर्ग के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों की प्रसन्नता के भी अलग-अलग पैमाने हैं। मालिक वर्ग की प्रसन्नता का पैमाना है कम से कम लागत में अधिक से अधिक मुनाफा अर्जित करना। मजदूर वर्ग की प्रसन्नता का पैमाना है आठ घंटे प्रतिदिन जीतोड़ मेहनत करने के बाद मेहनताना इतना मिल जाय कि उससे मजदूर और उसके परिवार की आवश्यक आवश्यकताएं पूरी हो जाए। शासक वर्ग की प्रसन्नता का पैमाना रहता है कि हर पांच साल में होने वाले चुनावों में सत्ताधारी दल को ही कुर्सी मिलती रहे, उसकी जीत हो जीत हो, उसे हारना न पड़े।

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निम्न पूंजीपति वर्ग के अन्तर्गत जो तबके आते हैं उन सभी की प्रसन्नता का पैमाना है इनके कार्यों में इनकी सफलता, नेम और फेम तथा कम से कम ऊर्जा खर्च करके जल्दी से जल्दी और अधिक से अधिक धनोपार्जन हो सके तथा सफलता ऊंचाई प्राप्त हो सके। समाज के सभी वर्गों की प्रसन्नता के ये पैमाने कहीं-कहीं पर परस्पर विरोध तथा कहीं पर प्रतिस्पर्धा होने के कारण संघर्ष व ईष्र्या की भावनाओं को भी जन्म देते हैं। इस तरह की भावनाएं अप्रसन्नता एवं दुखी रहने का कारण भी बन जाती है। समय, कालखण्ड और परिस्थितियों में परिवर्तन की स्थिति में मनुष्य की हैप्पीनैस का पैमाना भी बदल जाता है। इसके अलावा व्यक्ति की आकांक्षा उसके व्यक्तिगत परिवारिक व सामाजिक जीवन की चुनौतियां और अपेक्षित समाधान न मिल पाने की स्थितियां भी दुखी और डिप्रेशन, जैसे नकारात्मक मनोभावों को जन्म दे देती हैं।

नकारात्मक भावनायें विकसित होकर मनुष्य में घोर चिन्ता, दुख और डिप्रेशन का मनोवैज्ञानिक विकार पैदा करके उसे रोगी बना देती हैं। ऐसे हालत में संबंधित व्यक्ति को सबसे पहले स्वयं से कोशिश करनी चाहिए कि नकारात्मकता पैदा करने वाले भावों पर नियंत्रण किया जाए और सकारात्मक भावनाओं को आत्मसात किया जाय। यदि समस्या बढ़ जाती है तो पौजिटिव मनोविज्ञान विशेषज्ञ से काउन्सिलिंग करवाना आवश्यक है। यदि नकारात्मक भावनायें बीमारी का रूप धारण कर लेती हैं और बेकाबू हो जाती हैं तो उस स्थिति में मनोचिकित्सक से उचित ट्रीटमेन्ट लेना आवश्यक हो जाता है। समाज में यह देखा गया है कि काउन्सिलिंग अथवा ट्रीटमेन्ट की सहायता से नकारात्मक भावनायें धीरे-धीरे कम होने लगती हैं और सकारात्मक भावनायें तेजी से विकसित होने लगती हैं और पुनः हैप्पीनैस जीवन में उतरने लगती है।

कोरोनाकाल में हैप्पीनैस के पैमाने

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कोविड-19 महामारी के कारण न केवल हमारा देश बल्कि दुनिया के सभी देश इस कोरोना काल में हैप्पी रहने के नये-नये तरीके तथा पैमाने खोज रहे हैं। भारत में भी सभी वर्गों एवं तबकों के लिए यह काल जीवित रहने और स्वच्छ रहते हुए हैप्पी रहने की बहुत बड़ी चुनौती लेकर आया है। कोरोना काल में हर व्यक्ति की हैप्पीनैस का पैमाना लगभग एक सा है, वह है- स्वयं का स्वस्थ्य व कोरोना मुक्त रहना, सभी दोस्तों तथा रिश्तेदारों का स्वास्थ्य तथा कोरोनामुक्त रहना, देश के सभी लोगों का स्वस्थ्य रहना। कोरोना संक्रमितों का ठीक होकर अस्पतालों से अपने घरों में आना इत्यादि। ऐसा होने की स्थिति में सभी की प्रसन्नता निहित है। सभी देशवासियों की चिंता का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि भारत का मेहनतकश वर्ग भुखमरी, बदहाली और बेरोजगारी की तथा कोरोना की इस दोहरी मार से कैसे बच पाये। हमारी सरकार तथा सामान्य लोगों की हैप्पीनैश देश की बहुसंख्यक (70 फीसदी) मेहनतकश जनता की हैप्पीनैस पर आधारित होनी चाहिए। तभी वास्तविक रूप में हम हैप्पी कहलायेंगे। कोरोना काल में हैप्पीनैस का यही पैमाना होना चाहिए। इस पैमाने पर अमल करने से ही 2021 के हैप्पीनैस इन्डैक्स में भारत की रैंक बेहतर और हैप्पी नजर आयेगी।

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हैप्पी रहने के लिए कुछ आवश्यक आदतें अपनाना जरूरी

कोरोना काल को मानव की जिंदगी व उसके स्वास्थ्य के लिए महासंकट काल की संज्ञा देना स्वाभाविक ही है। इस महासंकट का मुकाबला करते हुए किस तरह से मानसिक तथा भावनात्मक संतुलन कायम रखा जाय और किस तरह सभी देशवासियों में हैप्पीनैस आ सके, इसके लिए सभी लोगों को कुछ न कुछ हैप्पी रहने की आदतें अवश्य अपनानी चाहिए। एक प्रसिद्ध पाजिटिव साइक्लोजिस्ट डा टिमशार्प जिन्हें डाक्टर हैप्पी भी कहा जाता है, उन्होंने हैप्पी रहने की दस आदतों से संबंधित दस एपीसोड की एक पुस्तक लिखी है। जिसे पुस्तक प्रेमी बुद्धिजीवी बहुत पसंद कर रहे हैं। उस पुस्तक का अध्ययन करना हैप्पी रहने में मददगार साबित हो सकता है। इसके अतिरिक्त सकारात्मक सोच तथा प्रसन्नचित्ता के प्रति सजग लोग अच्छी आदतों की राह पर चल ही रहे हैं। इस संबंध में निम्नलिखित कुछ आवश्यक आदतें अपनाने से हैप्पी रहने में मदद मिल सकती है।

1- रोजाना सुबह कम से कम पांच मिनट तक प्रणायाम, तीन मिनट तक ध्यान, एक मिनट पदमाशन, एक मिनट तक ओम शब्द उच्चारण तथा एक मिनट तक स्वयं को हंसाने का अभ्यास करना और इसे डेली रूटीन का हिस्सा बनाना ।
2- परिवारजनों के बीच खुशनुमा माहौल बनाकर सकारात्मक ज्ञानवर्धन करना।
3- अपने लक्ष्यों पर फोकस करना तथा हर समय हौंसला बुलंद रखने की आदत डालना।
4- किसी भी घटना का तथ्यों पर आधारित विश्लषण द्वारा ही कोई राय बनाना की आदत डालना तथा सही और गलत के बीच अंतर को समझना।
5- जीवन यापन की डगर में निरंतर आगे बढ़ते रहने और विषम हालतों में भी धैर्य बनाए रखने तथा उद्देश्यों में अडिग रहने की आदत डालना।
6- देश भक्ति की सच्ची भावना के साथ देशवासियों की हैप्पीनैस के बारे में सोचना और यथासंभव भागीदारी करने की आदत डालना।

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