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एचआईवी/एड्स के संक्रमण की रोकथाम में कितना काम किया है चीन ने?

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Anil Pandey Beijing

एड्स हमारे समाज के सामने मौजूद सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। भारत और चीन सहित पूरी दुनिया में एड्स का खतरा बना हुआ है। लेकिन वायरस के संक्रमण को रोकने और जांच में तत्परता से इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। चीन की बात करें तो उसने पिछले चार दशकों में एड्स की रोकथाम और जांच आदि में काफी तरक्की की है।

लगभग चार दशक पहले एचआईवी/एड्स का पहला मामला सामने आने के बाद चीन वायरस के ट्रांसमिशन को रोकने के साथ-साथ संक्रमण के निदान और इलाज को बेहतर बनाने के लिए बहुत काम किया है।
विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि चीन को साल 2030 तक नए लक्ष्य हासिल करने के लिए कोशिशें और तेज़ करने की ज़रूरत है, जिसमें कुल संक्रमण दर 0.2 प्रतिशत से नीचे रखना और असरदार उपचार तक पहुंच बढ़ाना है।

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बताया जाता है कि वर्ष 1985 में चीन में एक विदेशी यात्री को एचआईवी संक्रमण का पता चला, जिसके पश्चात चीन सरकार ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए कड़े कदम उठाए। चीन के राष्ट्रीय रोग नियंत्रण और रोकथाम प्रशासन के उप निदेशक स्या कांग कहते हैं कि पिछले 40 सालों में चीन ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन के ज़रिए एचआईवी ट्रांसमिशन को काफी हद तक रोक दिया है। मां से बच्चे में संचरण को असरदार तरीके से नियंत्रण किया है, और इंजेक्शन ड्रग के इस्तेमाल से वायरस के फैलने पर रोक लगाने में सफलता पाई है। विशेषज्ञों के अनुसार संक्रमित लोगों में डायग्नोसिस दर लगातार बेहतर हो रही है, उपचार कवरेज और वायरल सप्रेशन रेट दोनों अब 95 फीसदी से अधिक हो गए हैं।

रोग नियंत्रम एंड रोकथाम केंद्र के एचआईवी/एड्स नियंत्रण विशेषज्ञ हान मंगचिए के अनुसार शुरुआती जेनरेशन के लैब टेस्ट इन्फेक्शन का पता एक्सपोज़र के 8 से 10 हफ़्ते बाद ही लगा सकते हैं। नए रिएजेंट्स ने अब उस समय को घटाकर दो से तीन सप्ताह कर दिया है, जबकि न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग से सात से 10 दिनों के अंदर पता चल जाता है।

इसके साथ ही रैपिड टेस्टिंग किट ने प्राइवेट केंद्रों पर 30 मिनट के अंदर रिज़ल्ट देना मुमकिन बना दिया है, जिसमें न सिर्फ़ खून बल्कि मुंह के फ्लूइड या यूरिन सैंपल का भी इस्तेमाल होता है।

पेकिंग यूनियन मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख ली ताइशंग कहते हैं कि पहले संक्रमित लोगों को हर दिन कई गोलियां लेनी पड़ती थीं, जिनके अक्सर गंभीर साइड इफ़ेक्ट होते थे। उनके मुताबिक चीन में ज़्यादातर मरीज़ों को अब दिन में सिर्फ़ एक गोली लेनी पड़ती है। इतना ही नहीं घरेलू क्लिनिकल रिसर्च के आधार पर इलाज के तरीकों में बदलाव से पिछले चार सालों में लगभग 59 मिलियन डॉलर का खर्च बचाने में मदद मिली है।

इतना ही नहीं चीन में एड्स के मरीज़ों में मृत्यु दर साल 2003 के मुकाबले में 86 प्रतिशत कम हो गयी है, जबकि अभी इलाज करा रहे 1.3 मिलियन लोगों में सक्सेस रेट 96 फीसदी तक पहुंच गया है।

हालांकि इसके बावजूद एचआईवी/एड्स चीन और दुनिया भर में एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है। यूएनएड्स( एचआईवी/एड्स से लड़ने के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी) के मुताबिक दुनिया भर में 40.8 मिलियन लोग एचआईवी के साथ जी रहे हैं। वहीं पिछले साल 1.3 मिलियन नए संक्रमित रोगी पाए गए और लगभग 9.2 मिलियन लोगों को अभी भी इलाज नहीं मिल पा रहा है। गौरतलब है कि1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।

लेखक चाइना मीडिया ग्रुप में वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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