Report Ring, Beijing
जलवायु परिवर्तन से निपटना सारी दुनिया के लिए अहम और चुनौती भरा कार्य है। इसके साथ ही कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिए भी समूचे विश्व को मिलकर काम करने की जरूरत है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि पूर्व में कार्बन उत्सर्जन के मामले में सबसे आगे रहने वाले देशों ने अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह से नहीं निभाई। इस बारे में अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों का उदाहरण दिया जा सकता है। अमेरिका की बात करें तो वह पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के काल में पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हट गया था। हालांकि बाइडेन फिर से इस चुनौती से निपटने के लिए अमेरिका की भूमिका व महत्व पर ज़ोर देने लगे हैं। चीन व भारत जैसे बड़े विकासशील देशों का उल्लेख किए बिना इस समस्या व चुनौती से नहीं निपटा जा सकता है। इन दोनों देशों के बड़े नेताओं ने विभिन्न मंचों से इस दिशा में गंभीरता से काम करने का वादा किया है।
जैसा कि हम जानते हैं कि स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन संबंधी सदस्यों का सम्मेलन( सीओपी 26) आयोजित हो रहा है। इस दौरान विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष व प्रतिनिधि मौजूद रहेंगे। चीनी राष्ट्रपति भी इसे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करेंगे। इससे पहले वह जी-20 के नेताओं की बैठक में भाषण देकर विकसित देशों से कार्बन कटौती का आह्वान कर चुके हैं। चीनी राष्ट्रपति कहना चाहते हैं कि अमेरिका व कनाडा जैसे विकसित राष्ट्र अपने यहां कार्बन उत्सर्जन के स्तर में कमी लाएं, ताकि अन्य देशों के समक्ष उदाहरण पेश किया जा सके। जाहिर है कि विकसित देशों के पास तकनीक व संसाधनों की कमी नहीं है। जबकि छोटे व गरीब राष्ट्र भले ही इस दिशा में अहम योगदान देना चाहें, लेकिन वे तकनीक आदि के क्षेत्र में इतने अग्रणी नहीं हैं। ऐसे में संपन्न सदस्यों को अपनी ज़िम्मेदारी और व्यापक रूप से निभाने की आवश्यकता है।
चीन की बात करें तो उसने जलवायु परिवर्तन से निपटने व कार्बन कटौती को लेकर कई कदम उठाए हैं। चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को ग्रीन इकॉनमी बनाने के लिए भी ज़ोर दिया है। बताया जाता है कि चीन ने पिछले एक दशक में 120 मिलियन किलोवाट कोयला चालित बिजली उत्पादन क्षमता को पूरी तरह से हटा दिया है। यह अपने आप में एक बड़ा कदम है। इसके साथ ही चीन ने पुर्नउत्पादनीय ऊर्जा के विकास व इस्तेमाल पर विशेष ध्यान देना शुरु किया है।
गौरतलब है कि चीन पिछले कुछ वर्षों से कम कार्बन उत्सर्जन वाली परियोजनाओं को बढ़ावा दे रहा है। ज्यादा ऊर्जा खपत वाले उद्यमों को बंद करने या उनका विकल्प खोजने के लिए भी चीन की प्रतिबद्धता जाहिर होती है। बता दें कि चीन ने वर्ष 2030 से पहले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के स्तर को चरम पर पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है, साथ ही 2060 से पहले कार्बन तटस्थता का लक्ष्य भी चीन हासिल करना चाहता है।
साभार-चाइना मीडिया ग्रुप, photo Courtesy-google