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उत्तराखंड संस्कृति और तीज त्योहार (Ghee sankranti in uttarakhand) के लिए देश दुनिया में जाना जाता है। यहां शायद ही कोई ऐसा महीना हो जिसमें तीज त्योहार न आएं। ऐसे की त्योहारों में घी संक्रांति ( Ghee Sankranti)भी है। इसे घ्यू संक्रांत और ओलगिया भी कहा जाता है। आज के दिन घी खाने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन घी न खाने वाले व्यक्ति को दूसरे जन्म में गनेल (घोंघे )की योनि प्राप्त होती है।
कुमाऊं में घी संक्रांति के दिन मक्खन अथवा घी के साथ बेडू रोटी (उड़द की दाल भरी रोटी) खाई जाती है। इस पर्व पर किसान गाबे ,अरबी के पत्ते, भुट्टे, दही, घी, मक्खन आदि की ओलग सबसे पहले ग्राम देवता को चढ़ाते हैं। इसके बाद इन्हें अपने उपयोग में लाता है। पंडित, पुरोहितों व रिश्तेदारों को भी ओलग दी जाती है।
कुमाऊं में चंद शासकों के काल में भी किसान शासनाधिकारियों को विशेष भेंट ओलग देते थे। गांव के कास्तकार अपने खेतों में उगे फल, शाक- सब्जी राज दरबार में भेंट करते थे। यह ओलग की प्रथा कहलाती थी।