प्रताप सिंह नेगी
भादो महीने की संक्रांति को मनाए जाने वाला घी का त्यौहार इस साल 17 अगस्त को मनाया जाएगा। यों तो घी का यह त्यौहार समूचे प्रदेश में मनाया जाता है। कुमाऊं में इसे घ्यू त्यार कहा जाता है तो गढ़वाल मंडल में इसे घी संक्रात के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्यदेव इस दिन 12 राशियो में से कर्क राशि को छोड़कर सिंह राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसलिए इसे सिंह संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
कुमाऊं मंडल में मनाए जाने वाले घ्यू त्यार के दिन परिवार के सभी लोग कटोरी में घी पीते हैं, इसलिए इसे घ्यू त्यार कहा जाता है। कभी घी नहीं खाने वाला व्यक्ति को भी इस दिन घी खाना पड़ता है। कहावत है कि इस दिन जो व्यक्ति घी नहीं खाएगा तो वह अगले जन्म में गनेल (घोंघा) बन जाता है। यह कहावत पुराने समय से चली आ रही है। इसलिए इस दिन घी खाने का इंतजार सभी को रहता है। जिसके घर में घी नहीं होता वह पहले से ही पास पड़ोस से घी का इंतजाम करता है ताकि अपने परिवार को घी खिला सके। घी संक्रांति के दिन सुबह अपने ईष्ट देव को पिनालू के गाबे के साथ घर में बनाए गए पकवान चढ़ाए जाते हैं। इस त्यौहार में घी के साथ मासबेडु (उरद की दाल) की रोटी खाने का भी प्रचलन है।
कुमाऊं मंडल में घ्यू त्यार से ही ओलगिया देने का रिवाज भी है। बहन-बेटिया अपने मायके वालों को भादो के महीने में ओलगिया भेंट करती है। ओलगिया में दही की ठेकी में हरी सब्जियां सब्जियां बांधकर और साथ में पकवान और पहाड़ी केले भेंट की जाती हैं। कहीं-कहीं परिवार के छोटे भाई भी अपने बड़े भाईयो को ओलगिया भेंट करते हैं। जो बड़े के प्रति एक सम्मान का सूचक है। यह त्यौहार जहां एक ओर रिश्तों को मजबूती देता है वहीं बड़ों के प्रति आदर और सम्मान का भाव भी बढ़ाता है। समय के साथ साथ रीति रिवाजों को मनाने की तरीकों में भी बदलाव आया है। लेकिन पहाड़ी गांवों में आज भी घ्यू का त्यौहार बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है।