हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय में चल रहे अखिल भारतीय शास्त्र प्रतियोगिता के अवसर पर योगगुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि यह कार्य वस्तुत: आत्मोत्सव तथा ज्ञानोत्सव का संवाहक है। संस्कृत में ब्रह्मांड की सभी भाषाओं का समावेश है। उन्होंने कहा कि जीवन का समग्र विकास संस्कृत में ही सन्निहित है। इसलिए जीवन का परम लक्ष्य संस्कृत को ही ध्यान में रख कर करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संस्कृत को पूजा-पाठ तक ही सीमित नहीं समझा जाय बल्कि संस्कृत के अनुरागी राष्ट्र की चतुर्दिक जागृति के पुरोहित बनें। उन्होंने आगे कहा कि शास्त्र रक्षा के लिए स्मृति ज्ञान बहुत ही आवश्यक है, लेकिन छात्र छात्राओं को चाहिए कि वे शास्त्रों को आचरण में भी उतारें। इससे मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा।

प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी, आचार्य बालकृष्ण तथा प्रो दिनेश शास्त्रीऔर प्रो साध्वी देवप्रिया के साथ अन्य गण्यमान्य अतिथियों की उपस्थिति में स्वामी रामदेव जी ने इस अखिल भारतीय संस्कृत शास्त्रीय स्पर्धाओं में आमन्त्रित निर्णायक के रूप में आये विद्वानों और मार्गदर्शकों को अंगवस्त्र और पुस्तकें भेंट की ।
इस अवसर पर पतंजलि विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं ने योग और गीत-संगीत से जुड़़ी विभिन्न आकर्षक प्रस्तुतियां दीं जिनमें गढ़वाली, हिमाचली, गुजराती, हरियाणवी, पंजाबी तथा उडिय़ा लोकगीतों और लोकनृत्यों पर शानदान प्रस्तुतियां दी गई।

