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विश्व हिंदी दिवस: हिंदी की क्या है सार्थकता, कैसा है भविष्य

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By Anil Azad Pandey, Beijing
आज यानी 10 जनवरी को चीन व भारत सहित दुनिया के तमाम हिस्सों में विश्व हिंदी दिवस का आयोजन हो रहा है। इस दौरान हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर गंभीर प्रयास किए जाने और हिंदी को अधिक से अधिक कामकाज की भाषा में रूप में इस्तेमाल किए जाने पर ज़ोर दिया गया। वैसे हर साल इस तरह से हिंदी को बढ़ावा दिए जाने की वकालत हिंदी प्रेमियों द्वारा की जाती रही है। इस दिशा में सरकारी स्तर पर भी कोशिशें हो रही हैं, लेकिन हिंदी को जो स्थान मिलना चाहिए, शायद वह अभी तक मिल नहीं पाया है।

हालांकि आंकड़ों की बात करें तो भारत में 70 करोड़ लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। जबकि विदेशों के 176 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है, जिनमें अमेरिका के 58 और चीन के 15 से अधिक विश्वविद्यालय शामिल हैं। इस अवसर पर अनिल पांडेय ने इस क्षेत्र से जुड़े कुछ विशेषज्ञों से हिंदी के महत्व और उसके भविष्य के बारे में बातचीत की।

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चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में हिंदी के प्रोफेसर नवीन लोहनी कहते हैं कि विश्व हिंदी दिवस के आयोजन के पीछे उद्देश्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को शिक्षण, रोजगार, सरकारी भाषा बनाने सहित सभी रूपों में लागू करने का है। भारत में और भारत के बाहर हिंदी का विकास और प्रसार कैसे हो इस पर भी चर्चा होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी कैसे आधिकारिक भाषा बने इस पर भी विचार होता है। सबसे प्रमुख बात यह कि नई शिक्षा नीति आने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के शिक्षा स्वरूप में हिंदी किस रूप में रहेगी, इस पर भी इस बार पर्याप्त चर्चा हुई है।

शांगहाई में रह रही लेखिका डॉ. अनीता शर्मा कहती हैं, उनके लिए हिंदी पानी की तरह ज़रूरी है। बाकी भाषाएं भोजन की तरह कई तरह भली लगती हैं अच्छी भी हैं, किंतु जैसे प्यास सिर्फ़ पानी से मिटती है, ऐसे ही चित्त में ठंडक आती है हिंदी से। बकौल अनीता, जिस भाषा में आदमी सपने देखता है, वही भाषा उसकी अपनी होती है।

कई मीडिया संस्थानों में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार और लेखक पंकज श्रीवास्तव कहते हैं कि हिन्दी को जनमानस तक पहुंचाने में जितना योगदान साहित्य जगत का रहा है उससे कहीं ज्यादा योगदान आज के दौर में सोशल मीडिया निभा रहा है। जहां पहले सिर्फ़ पढ़े-लिखे लोग ही साहित्य और काव्य के पठन-पाठन में संलग्न रहते थे, वहीं आज आम जनमानस अपने मोबाइल फोन और उसमें ढेर सारे साहित्यिक सॉफ्टवेयर के कारण हिन्दी भाषा के नए शब्दों, व्याकरण और कहानियों से परिचित हो रहा है। साथ ही वह अपने मनोभावों को भी हिन्दी भाषा में लिखकर या बोलकर व्यक्त कर रहा है। वहीं पॉडकास्ट ने उस कम शिक्षित वर्ग को भी हिन्दी भाषा के नज़दीक लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसने किस्से कहानियां, कविताएं और गीत संगीत को सुनने के माध्यम से जानना शुरु किया है। कुल मिलाकर अगर कहा जाए तो आज सोशल मीडिया न सिर्फ़ हिन्दी भाषा बल्कि भारत की अनगिनत भाषाओं और बोलियों के प्रसार प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

वहीं पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में हिंदी के शिक्षक विकास कुमार कहते हैं कि चीन में हिंदी के प्रति रुचि रखने वालों की संख्या में पहले से इजाफा हुआ है। भारत सरकार भी विदेशों में हिंदी के प्रसार की कोशिश में लगी है।

उधर हिंदी से लगाव रखने वाले बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत आशीष गोरे को हिंदी का भविष्य उज्जवल दिखता है, क्योंकि आज सोशल मीडिया आदि के माध्यम से भी हिंदी का इस्तेमाल हो रहा है। वहीं चीन रहने वाले गंगा रावत व आशीष बहुगुणा का मानना है कि जब हम देश से बाहर जाते हैं, तो लोग हमसे हमारी मातृभाषा के बारे में पूछते हैं। जाहिर है कि हमें हिंदी बोलने और पढ़ने, लिखने पर गर्व महसूस होता है।

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गौरतलब है कि पहला विश्व हिंदी सम्मेलन 1975 में आयोजित किया गया था। इसके बाद मॉरीशस, दिल्ली के अलावा दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में सम्मेलन आयोजित किये जा चुके हैं। वैसे साल 2006 में तत्कालीन भारत सरकार ने 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की थी।

दुनिया में सबसे अधिक नेटिव स्पीकरों यानी मातृ भाषा बोलने वालों की सूची में हिंदी का चौथा स्थान है। मातृ भाषा बोलने वालों की संख्या 295 मिलयन है। जबकि चीनी भाषा मैंडेरिन बोलने वालों की संख्या 935 मिलयन है। अगर दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं की बात करें तो हिंदी यानी हिंदुस्तानी को 497 मिलयन स्पीकर्स के साथ तीसरा स्थान हासिल है।

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