नई दिल्ली। केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास मन्त्री धर्मेन्द्र प्रधान ने दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि याज्ञसेनी भारतीय स्त्री विमर्श की प्रतिमा है। उन्होंने कहा पद्म भूषण प्रतिभा राय अपने आप में एक संस्था हैं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 में भारत को जड़ो से जोडऩे की बात की गयी है, मातृशक्ति शक्ति -स्त्री विमर्श के मानवतावादी दृष्टिकोण से इसी जड़ की बातों को याज्ञसेनी में उठाया गया है। उन्होंने कहा कि आज जो पाश्चात्य में फेमिनिज्म की बात की जाती है, उसमें वस्तुत: स्त्री अपने आप में आइसोलेटेड दिखती हैं जबकि भारत में राम सीता मां आदि का एक साथ प्रयोग किया जाता है।
उन्होंने कहा कि याज्ञसेनी जैसे उपन्यास को पढ़ा जाय तो आज मेंटल हेल्थ की समस्या भी कम की जा सकती सकती है । प्रधान ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में यह निर्णय लिया गया है कि अब भारतीय भाषाओं में पढ़ाई की जाएगी। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने संस्कृत के विद्वान आचार्य प्रो भागीरथी नन्द अनूदित याज्ञसेनी का संस्कृत अनुवाद छाप कर इस दिशा में बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है। पद्म भूषण प्रतिभा राय ने जिस याज्ञसेनी का सृजन किया, आचार्य नन्द ने उसको प्रस्फुटित किया। उन्होंने कहा कि आज पद्म भूषण प्रतिभा राय के साथ एक साथ मंच पर बैठना सौभाग्य की बात है । प्रो वरखेड़ी ने कहा कि इस संगोष्ठी के लिए सिर्फ प्रेरणा ही नहीं बल्कि साकार करने में माननीय शिक्षा मन्त्री जी का अपार मार्गदर्शन मिला है।
प्रो वरखेड़ी ने कहा कि महाभारत का प्रथम नाम जय था और यज्ञ की एक चिनगारी पूरे महाभारत में परिवर्तित हो गया जिसका मूल कारण जया अर्थात स्त्री द्रौपदी ही थी। उन्होंने कहा कि यह भी ध्यान देने की बात है कि द्रौपदी कभी भी विलाप नहीं करती बल्कि समाज के सामने सर्वदा प्रश्न उठाती है जो प्रश्न आज भी ज्वलन्त है । प्रतिभा राय ने कहा कि मैं अपने चर्चित उपन्यास याज्ञसेनी पर कुछ अधिक नहीं बोलना चाहती हूं क्योंकि यदि कोई पाठक या पाठिका मूल पाठ को पढ़ कर नहीं समझ पाता या पाती है तो वह मूल लेखक या लेखिका की कमी होती है । लेकिन मुझे इस बात का संतोष है कि मेरी इस कृति पर देश का श्रेष्ठ केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय संगीत नाटक अकादमी तथा वुमेन 20 साथ साथ मिल कर आजादी के इस अमृत महोत्सव पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है । महाभारत की द्रौपदी तथा उसकी छाया में स्त्री चिन्तन को अपने उपन्यास के माध्यम से पाठक तक प्रस्तुत करने का भरसक प्रयास किया है ।
उन्होंने कहा कि परिवार समाज तथा राष्ट्र में द्रौपदी के योगदानों को नहीं भुलाया जा सकता है। याज्ञसेनी लेखन की प्रेरणा के विषय में उन्होंने यह भी कहा कि अपने स्कूल के समय एक ओपेरा देखते समय द्रौपदी विरोधी दृश्यों को देखकर इस उपन्यास का बीजारोपण हुआ था और इस मंचन को बंद करवाने के लिए उन्होंने अपने पिता को उस समय कहा भी था। लेकिन उसका मंचन बंद नहीं किया गया । भागीरथी नन्द ने याज्ञसेनी के संस्कृत को लेकर अपने अनुभवों को रखा और कहा कि यह अनुवाद तो स्वत:स्फूर्त है मैं तो इसका मात्र अनुसर्जक हूं । प्रो नन्द ने इस मूल उडिय़ा उपन्यास की भाषा पर भी प्रकाश डाला। प्रो साध्वी देवप्रियाजी पतंजलि विश्वविद्यालय हरिद्वार ने कहा कि संस्कृत में अपत्य शब्द पुत्र तथा पुत्री दोनों के लिए प्रयोग किया जाता है और हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अश्वपति ने यज्ञ कर के ही अपनी पुत्री को प्राप्त किया था।