देवीधुरा, चम्पावत। रक्षाबंधन के पावन पर्व पर मां वाराही धाम में विश्व प्रसिद्ध बगवाल खेली गई। बगवाल में पत्थरों के साथ फल-फूल और लाठियों का भी प्रयोग किया गया जिसमें 183 लोग घायल भी हुए। पुलिस और प्रशासन की देखरेख में हुए इस प्रतीक युद्ध में आईं ये चोटें श्रद्धा और परंपरा के प्रति समर्पण की निशानी हैं। चार खाम, सात थोक के वीर योद्धाओं और हजारों लोगों की भीड़ के बीच 8 मिनट तक पाषाण युद्ध चला।
ऐतिहासिक खोलीखाड़ दुबाचौड़ मैदान में पहले चारों खामों में गहड़वाल, चम्याल,, वालिक, लमगडिय़ा और सातों थोकों के बगवाली वीरों ने मां वज्र वाराही के जयकारे लगाकर शक्तिपीठ की परिक्रमा की। वालिक खाम के मुखिया बद्री सिंह बिष्ट के नेतृत्व में सफेद ड्रेस में वीर माँ वाराही मंदिर पहुंचे। चम्याल खाम के योद्धा गंगा सिंह चम्याल के नेतृत्व में गुलाबी ड्रेस में पहुंचे। लमगडिय़ा खाम बगवाल वीरेंद्र सिंह लमगडिय़ा के नेतृत्व में पीले वस्त्र में पहुंचे। गहड़वाल खाम के योद्धा त्रिलोक सिंह बिष्ट के नेतृत्व नारंगी कुर्ते में मैदान में पहुंचे और चारों खामों के योद्धाओं ने बगवाल के लए अपना अपना मोर्चा संभाल लिया।
मां वाराही धाम मंदिर के मुख्य पुजारी महेश चंद्र ने शंख ध्वनि के साथ बगवाल का शुभारंभ किया। मंदिर छोर से वालिक और लमडिय़ा खाम ने फल-फूल बरसाकर बगवाल की शुरूआत की और फिर पत्थर, डंडे, छोटे फर्रे का प्रयोग भी बगवाल खेलने के लिए किया। वहीं पूर्वी छोर से चम्याल और गहड़वाल खाम ने बग्ïवाल खेलने के लिए मोर्चा संभाला। बगवाल की शुरूआत में नाशपाती, सेब और फूलों से हुई। बाद में खामों के बीच पत्थर और लाठियां भी चलीं। इस दौरान 183 बगवाली वीर, पुलिस कर्मी और दर्शक घायल हुए जिन्हें प्राथमिक इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई। बड़े उत्साह के साथ ई-हाहाहा के शब्दों को उच्चारण करते हुए 8 मिनट तक बग्वाल खेली गई और मुख्य पुजारी ने चंवर झुलाकर बगवाल समाप्ति का संकेत दिया। मुख्य अतिथि के तौर पर केंद्रीय सडक़ परिवहन राज्य मंत्री अजय टम्टा भी भी बग्वाल के समय मौजूद रहे।


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