By Anil Azad Pandey, Beijing
चीन ने 2008 में पेइचिंग ओलंपिक का शानदार आयोजन कर दुनिया को चकित कर दिया था। अब 2022 के विंटर ओलंपिक में भी चीन विश्व को चौंकाने के लिए तैयार है। चीन ने न केवल कोरोना रहित खेल आयोजन का वचन दिया है, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल में भी वह अग्रणी भूमिका निभाएगा। इसके लिए परंपरागत बिजली संयंत्रों के स्थान पर पुनरुत्पादनीय ऊर्जा प्लांट स्थापित करने में अरबों युआन खर्च किए गए हैं। ताकि अगले साल आयोजित होने वाले शीतकालीन खेलों के दौरान नवीन ऊर्जा का इस्तेमाल हो और हरित वातावरण बनाया जा सके। ओलंपिक इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब सभी खेल स्थल हरित ऊर्जा पर आधारित होंगे। इससे यह भी जाहिर होता है कि चीन कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही वह क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में लीडर बनने की पूरी क्षमता रखता है।

गौरतलब है कि चीन पिछले कुछ वर्षों से नवीन ऊर्जा के उत्पादन पर विशेष ध्यान दे रहा है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडी द्वारा हाल में जारी एक रिपोर्ट की मानें तो अमीर देशों के अलावा चीन ने हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारी निवेश किया है। इतना ही नहीं महामारी के दौरान चीन सरकार ने इस क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए राहत पैकेज भी जारी किया है।
पिछले दिनों हम शीतकालीन ओलंपिक के विभिन्न खेल स्थलों पर गए, जो कि पूरी तरह से ग्रीन एनर्जी से ही संचालित होंगे। इसके साथ ही स्वच्छ ऊर्जा प्लांट का दौरा भी किया। जहां हमने खुद देखा कि ग्रीन एनर्जी को लेकर चीन कितना गंभीर है। हमें हबेई प्रांत के चांगबेइ पावर प्लांट में जाने का अवसर मिला। इस प्लांट में हवा व पानी से बिजली पैदा की जाती है। बताया जाता है कि इसमें जून 2020 से बिजली उत्पादन का काम शुरु हुआ। वर्तमान में इसकी उत्पादन क्षमता प्रतिदिन लगभग 750 मेगावाट से 4500 मेगावाट हो चुकी है। हवा की स्थिति अच्छी होने पर उत्पादन उच्च स्तर तक पहुंच जाता है। इस प्लांट से राजधानी पेइचिंग को बड़ी मात्रा में क्लीन एनर्जी भेजी जाती है। वहीं इस इलाके में स्वच्छ ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना का उद्देश्य 2022 के शीतकालीन ओलंपिक में ग्रीन गेम्स व पुनरउत्पादनीय ऊर्जा को बढ़ावा देना है। चीन सरकार व पेइचिंग ओलंपिक कमेटी ने शीतकालीन ओलंपिक के खेल स्थलों को पूरी तरह स्वच्छ ऊर्जा से कवर किए जाने की योजना बनायी है।
स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लिए हबेई प्रांत में इस तरह के चार प्लांट स्थापित किए गए हैं। ये प्लांट प्रदूषण नियंत्रण में कितना योगदान दे रहे हैं, इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। अकेले एक प्लांट की स्थापना से ही प्रति वर्ष 12 लाख 80 हज़ार टन कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर कम हो गया है। ध्यान रहे कि सामान्य बिजली उत्पादन में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बहुत अधिक होता है। इसे कम करना हर किसी देश के लिए एक बड़ी चुनौती है।
उधर नवंबर 2020 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल में तमाम चुनौतियों के बाद भी वैश्विक पनबिजली क्षमता में इजाफा दर्ज किया गया। जिसकी वजह चीन में बड़े पैमाने पर परियोजनाओं का चालू होना था।
इतना ही नहीं रिपोर्ट की सह-लेखक हेमी बहार ने चीन को ग्लोबल नवीकरणीय ऊर्जा मार्केट का लीडर करार दिया। उनका कहना है कि आंकड़ों पर नज़र डालें तो आने वाले वर्षों में भी चीन इस क्षेत्र में अग्रणी बना रहेगा।
जैसा कि हम जानते हैं कि ऊर्जा उत्पादन के तरीकों में बदलाव देखने में आ रहा है। इस संबंध में विशेषज्ञों का मानना है कि यह सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्रों की सामूहिक प्रतिबद्धता के बिना स्वाभाविक रूप से नहीं हो सकता है। इस लिहाज से चीन द्वारा किए जा रहे प्रयास वैश्विक स्तर पर अहम योगदान दे सकते हैं।
ऊर्जा एजेंसी के विश्लेषण के अनुसार, 2050 तक कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 40 प्रतिशत की गिरावट लानी होगी। जिसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा और नवाचार में बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है।
राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक 2020 की चौथी तिमाही में, चीन में फोटोवोल्टिक की स्थापित क्षमता 29.5 मिलियन किलोवाट पहुंच गयी, जबकि पवन ऊर्जा में 57.75 मिलियन किलोवाट का इजाफा हुआ। वहीं चीन की स्वच्छ-ऊर्जा खपत 2020 में कुल ऊर्जा खपत का 24.5 फीसदी थी, जिसमें 2019 की तुलना में 1.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
उधर ड्यूश बैंक की रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक चीन में सौर ऊर्जा के उत्पादन में दस गुना वृद्धि होने की उम्मीद है। इसके साथ ही चीन ने 2030 तक पवन व सौर ऊर्जा की अपनी कुल स्थापित क्षमता 1.2 बिलियन किलोवाट तक पहुंचाने का वादा किया है।
लेखक चाइना मीडिया ग्रुप में वरिष्ठ पत्रकार हैं।

