अल्मोडा। उत्तराखण्ड को राज्य बने 23 साल बीतने जा रहे हैं, लेकिन राज्य के पहाड़ी गांवों से पलायन की रफ्तार कम होने का नाम नहीं ले रही है। राज्य बनते समय कहीं न कहीं लोगों को यही उम्मीद थी कि अब उन्हें अपने राज्य में ही अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएंं और रोजगार मिल पाएगा। लेकिन लोगों के सपने धरे के धरे रह गए। पहाड़ी गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ता ही जा रहा है। जंगली जानवरों का भय, अच्छी शिक्षा और रोजगार के लिए पहाड़ी गांवों में रहने वाले लोग अपना घर छोडऩे को मजबूर हैं।
उत्तराखंड प्रथक राज्य के लिए आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों की बाजी लगाई, लोगों का एक सपना था कि नए पर्वतीय राज्य में विकास होगा। अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी और राज्य में ही रोजगार भी मिल जाएगा। लेकिन 23साल में भी उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से पलायन नहीं रुका है।

समाजसेवी प्रताप सिंह नेगी का कहना है कि राज्य के पहाड़ी जिलों पौड़ी, अल्मोड़ा, चमोली, टिहरी, नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़ से सबसे ज्यादा पलायन हो रहा है। इस पलायन के कारण गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं। बेरोजगारी से तो लोग परेशान हैं ही साथ ही जंगली जानवरों का भय, बंदरों, सुअरों के प्रकोप से उजड़ते खेत भी कहीं न कहीं पलायन को बढ़ावा दे रहे हैं। छोटे किसान दिन रात मेहनत करके खेती करते हैं, लेकिन जंगली सुअर और बंदर उनकी मेहनत पर पानी फेर कर फसल उगने से पहले ही उजाड़ दे रहे हैं। इससे छोटे किसानों का खेती करना मुश्किल हो गया है। यही नहीं गाय-भैंस पालकर गुजारा करने वाले लोग भी बाघ के आतंक से भयभयीत हैं, उन्हें अब जंगलों से घास लाने में डर लगता है। आए दिन बाघ के हमले की खबरों से लोग डरे और सहमे रहते हैं।

