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प्राप्त को पर्याप्त मानने वाला ही साधु: मोरारी बापू

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धन, तन व वचन से महत्वपूर्ण है मन

Report ring Desk

नई दिल्ली। राम कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि धन कमाना ज़रूरी है मगर धन के कारण हमारा तन खराब न हो जाए, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।  सिरी फोर्ट आडिटोरियम में राम कथा “मानस साधु महिमा” के दूसरे दिन मोरारी बापू ने साधु के स्वभाव की विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि साधु के स्वभाव में ही संतोष होता है। जो प्राप्त है, उसे ही पर्याप्त मान कर जीने का अर्थ है कि हमने साधु के स्वभाव को ग्रहण कर लिया है। जहां संतोष दिखाई दे, समझना चाहिए कि साधुता है। जो प्राप्त है, वो ही पर्याप्त है का मतलब ये नहीं है कि हम धन कमाने की इच्छा ही न करें। धन कमाना ही चाहिए मगर धन के कारण हमारा तन खराब न हो जाए, इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए। धन से ज्यादा महत्व तन का है और तन से ज्यादा महत्व वचन का है। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए बापू ने कहा कि वचन से भी ज्यादा महत्व मन का है। वचन तो हम कुछ भी बोल सकते हैं मगर महत्वपूर्ण ये है कि हमारे मन में क्या चल रहा है। जो जीभ पर है, उससे ज्यादा अहम वो है जो हमारे मन में है।

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मोरारी बापू ने कहा कि साधु किसी के कठोर वचन सुनकर भी व्याकुल नहीं होता। जिन अपमानजनक शब्दों को कोई सहन नहीं कर सकता, उसे भी जो सह लेता है, वो साधु है। साधु किसी बात की चिंता नहीं करता। वल्लभाचार्य जी महाराज ने कहा है कि जो सुख और दुख दोनों को समबुद्धि से सहन कर ले, वो साधु है। साधु जैसा धनवान दूसरा नहीं होता। पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। राम नाम का ऐसा धन साधु के पास होता है जिसे कोई खर्च नहीं करा सकता, कोई लूट नहीं सकता। साधु शीलवान होता है। उसकी आंखों में इतना शील होता है कि जिस पर उसकी नजर पड़ जाए, उसकी तकदीर बदल जाती है। साधु के अंग-अंग में नस-नस में शील होता है। उसका एक-एक व्यवहार शीलवंत होता है। हमें कामना करनी चाहिए कि साधु जैसा शील हममें भी आ जाए।

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मोरारी बापू ने कहा कि साधु का श्रवण करना चाहिए, साधु का संग करना चाहिए मगर इससे भी महत्वपूर्ण है साधु का स्मरण। स्मरण करते-करते साधु की शरण मिल जाती है। साधु शरण अंतिम अवस्था है और इसके लिए जरूरी नहीं कि साधु के निकट ही रहा जाए। वो दूर रह कर भी अपना है, सोच अगर पाकीजा है। मन की पवित्रता सबसे बड़ी चीज है। जिसका मन पवित्र है, वो दूर रहकर भी साधु के आसपास ही रहता है। साधुता उसमें स्वयं आने लगती है। मानस वक्ता ने कहा कि हम भले ही साधु श्रवण कर पाएं या न कर पाएं, साधु संग और स्मरण कर सकें अथवा न कर सकें मगर एक बात तो करें कि किसी भी अवस्था में साधु की निंदा न करें। साधु हमारे सम्मान का भूखा नहीं होता। उसे परमात्मा ने ही सम्मान दिया है। हम इतना तो करें कि उसका अपमान न करें। साधु की आज्ञा मानें या न मानें मगर अवज्ञा तो न करें।

मोरारी बापू ने कहा कि राम चरित मानस साधु चरित मानस है। राम साधु हैं। वाल्मीकि जी ने सीता चरित्र का महत्व बताते हुए सीता को परम साध्वी कहा है। मानस में ब्रह्मा जी ने शिवजी को साधु कहा है। भरत कौन हैं, साधु हैं। हनुमान तो साधु हैं ही, साथ ही साधु-संतों के रखवारे भी हैं। बापू ने कहा कि जो चार चीजों को वास्तव में भूल जाए, वो साधु है। साधु अपने गुणों को याद नहीं रखता। वास्तव में उसे अपने गुण याद नहीं रहते, ऐसा नहीं कि वो भूल जाने का नाटक करे। दुश्मन ने जो अहित किया हो, साधु उसे कभी याद नहीं रखता। साधु वो है जो अपने आश्रितों के दोष भूल जाता है। साधु वो है जो दूसरों पर किए गए उपकार और दिए गए दान को हमेशा भूला रहता है। दुनिया में तमाम लोग अपनी महिमा को बताने में लगे रहते हैं मगर साधु अपनी महिमा को भूले हुए ही रहते हैं। साधु को कोई दूसरा दिखता ही नहीं।

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मोरारी बापू ने कहा कि साधु का एक अदभुत लक्षण है कि हम उसके पास नहीं जा पाएं तो वो हमारे पास आ जाता है। कृष्णमूर्ति ने कहा है कि सत्य के पास जाने का कोई रास्ता ही नहीं है। सत्य स्वयं हमारे पास आ जाता है। गड्ढे की क्या औकात कि समुद्र तक पहुंच जाए। समुद्र ही गड्ढे को भरता है। शर्त ये है कि हमारे अंदर एक खालीपना हो तो प्रवाह स्वयं उसे भरने के लिए दौड़ पड़ता है। राम साधु हैं, राम सत्य हैं। ये सत्य स्वयं ताड़का तक, मारीच तक, सुबाहू तक गया। ये तामस तन थे। इनके पास कोई रास्ता नहीं था कि ये राम तक पहुंच पाते। इसलिए सत्य स्वयं अहिल्या के पास गया, कौल-कीरात, आदीवास, वनवासी, कबंध, जटायु, सुग्रीव, बालि तक पहुंचा। गड्ढा देखते ही प्रवाह उसकी तरफ दौड़ पड़ता है।

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