पित्र पक्ष (सोल्ह श्राद्ध) आज 29 सितम्बर पूर्णिमा से शुरू हो गए हैं जो 14 अक्टूबर अमावस्या तक चलेंगे। हर साल पित्र पक्ष में श्राद्ध अपने पितरों व पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किये जातें हैं। पितृ पक्ष में अपने माता-पिता, दादी-दादा, नानी- नाना यानी तीन पुस्तो तक के पुर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। हिंदू धर्म के शास्त्र व पुराणों के अनुसार सोलह श्राद्ध में अपने पितरों व पूर्वजों को अलग-अलग तरीके से पूजा जाता है। उत्तराखंड में पित्र पक्ष में एक दिन पहले वर्त रखा जाता है जिसे हबीक कहते हैं। अगले दिन ब्राहामण व बहिन बेटियों को बुलाकर अपने पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इस श्राद्ध में गाय का गोबर, गौमूत्र, जौ, तिल, सरसों, सफेद फूल की जरूरत पड़ती है और एक पिंड भी बनाया जाता है। विधि बिधान के साथ माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है और तीन पुस्तों के पूर्वजों का नाम स्मरण किया जाता है।
श्राद्ध करके घर में शुद्ध खाना बनाया जाता है, अपने रिश्तेदारों व पास पड़ोस के लोगों आमंत्रित किया जाता है। श्राद्ध में बना हुआ भोजन सबसे पहले गाय को दिया जाता है। कुछ लोग किसी कारणवस अपने पितरों का श्राद्ध नहीं कर पाते हैं तो हबीक व श्राद के दिन गाय को गगौरास व पिंड बनाकर खिलाते हैं। अमावस्या के दिन श्राद्ध के तौर पर लोग पिंड दान करते हैं। लेकिन अष्टमी व नवमी तिथि का श्राद्ध सबसे ज्यादा माना जाता है। अष्टमी व नवमी के श्राद्ध के दिन हर कोई अपने पितरों के श्राद्ध व तर्पण कर पिंड दान करते हैं। इसलिए अष्टमी व नवमी श्राद्ध को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है।
समाजसेवी प्रताप सिंह नेगी का कहना है कि पित्र पक्ष में सोलह श्राद्ध पौराणिक कथाओं व हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार बताया जाता है। प्रभु श्री राम व सीता माता ने पुनपून घाट पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करके पिंड दान किया था। आज भी उसे पिंड दान का मुख्य द्बार माना जाता है। बताया जाता है जिसने पुनपुन घाट में पूर्वजों के लिए तर्पण करके पिंड नहीं कर पाये तो गया मेंं पिंड दान कर सकते हैं। आज भी हिन्दू धर्म के शास्त्रों व पुराणों के अनुसार पुनपुन घाट, गया, प्रयाग, काशी, हरिद्वार आदि घाटों में अपने माता-पिता व पूर्वजों के श्राद्ध के लिए तर्पण व पिंड दान करने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है।
समाजसेवी प्रताप सिंह नेगी