अंतरिक्ष यान और टॉयलेट किसी भी एक बड़े देश में दो बुनियादी पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। विश्व भर में सम्मान हासिल करने के लिए उन्नत तकनीक का विकास करना आवश्यक है ताकि वह दूसरे उन्नत देशों से पीछे न रहे। लेकिन दूसरी तरफ जीवन स्तर में निरंतर सुधार के लिए लोगों की जरूरतों को भी पूरा करना होगा।
By- Hu weimin, Beijing
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में तमाम उपलब्धियों हासिल की हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने कम लागत पर ऐसी सफलता पायी है, जिसके लिए पश्चिमी देश भारी कीमत चुकाते रहे हैं। भारत का चंद्रयान-2 चंद्रमा पर पहुंचा और भारत अपने रॉकेट से दूसरे देशों और यहां तक कि अमेरिका के लिए भी उपग्रह लॉन्च करता है। भारतीय मार्स रोवर “मंगलयान” सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में पहुंच चुका है। भारत मंगल अन्वेषण के “कुलीन क्लब” में प्रवेश कर चुका है और इससे भारत मंगल ग्रह का पता लगाने की क्षमता प्राप्त देश बना। भारत 2021 तक “गगनयान” समानव अंतरिक्ष कार्यक्रम पूरा करेगा। भारत में अधिकांश लोग देश के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी विकास का समर्थन करते हैं।
हालांकि, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में कुछ सवाल भी उठते रहे हैं। इसके विरोध में मत रखने वालों का कहना है कि भारत में अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके पास दो वक्त की रोटी मौजूद नहीं है, और आधी आबादी के पास टॉयलेट भी नहीं हैं। इसलिए एयरोस्पेस उद्योग में इतना खर्च करना ठीक नहीं है। उधर विदेशी पर्यटकों की नज़र में भारतीय सड़कों की स्वच्छता, खासकर शौचालयों की स्थिति अच्छी नहीं है। लोग हर जगह पेशाब करते दिखते हैं, जिससे बाहर से आने वाले लोग असहज महसूस करते हैं। भारत सरकार ने 2014 में पांच साल के भीतर दस करोड़ शौचालय बनाने की घोषणा की। हालांकि इस बारे में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
दुनिया में भारत के अलावा प्रमुख अंतरिक्ष शक्तियां अमेरिका, रूस, चीन और यूरोप हैं। पिछले साल चीन 39 अंतरिक्ष प्रक्षेपणों के साथ दुनिया में पहले स्थान पर रहा। इसके पीछे अमेरिका ने 34 प्रक्षेपण और रूस ने 20 प्रक्षेपण किये। इनकी तुलना में भारत का अंतरिक्ष प्रक्षेपण काफी नहीं है। वर्तमान में अंतरिक्ष कक्षा में भारत के लगभग 60 से अधिक उपग्रह सुरक्षित हैं। जो रूस का एक तिहाई, चीन का पांचवां और अमेरिका का चौदहवां भाग है। भारतीय अंतरिक्ष उद्योग में लगे कर्मचारियों की संख्या लगभग 20 हजार है और प्रतिभाओं का प्रशिक्षण मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोप पर निर्भर है। उधर अमेरिका, चीन और रूस जैसे प्रमुख एयरोस्पेस देशों में अंतरिक्ष उद्योग कर्मचारियों की संख्या लगभग दो तीन लाख तक हो चुकी है, और इनकी एयरोस्पेस प्रतिभाओं को खुद प्रशिक्षित किया जाता है। ऐसे में भारत में एयरोस्पेस उद्योग की नींव को और मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
मैंने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” पढ़ी, जिसमें भारत को एक महान देश बनाने की महत्वाकांक्षा का उल्लेख किया गया है। मैंने राष्ट्रीय विकास योजना के बारे में अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं के भाषण भी सुने हैं। मुझे अहसास हुआ कि भारत किसी भी तरह की सामान्य विकास योजना से संतुष्ट नहीं रहेगा। भारत को वैसा विकास हासिल करना होगा जो उसके गौरवशाली इतिहास से मेल खाता हो। भारत विश्व में पूर्ण सम्मान का आनंद लेने वाला महान देश बनेगा और अपने लोगों को विकसित देशों के जैसा जीवन स्तर हासिल कराएगा।
अंतरिक्ष यान और टॉयलेट किसी भी एक बड़े देश में दो बुनियादी पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। विश्व भर में सम्मान हासिल करने के लिए उन्नत तकनीक का विकास करना आवश्यक है ताकि वह दूसरे उन्नत देशों से पीछे न रहे। पर दूसरी तरफ जीवन स्तर में निरंतर सुधार के लिए लोगों की जरूरतों को भी पूरा करना होगा। इस संदर्भ में भारत और चीन की स्थिति बिल्कुल समान है। दोनों देशों की विशाल जनसंख्या और कमजोर नींव को देखते हुए यह मानना होगा कि चीन और भारत का विकास लक्ष्य पश्चिमी देशों से ज्यादा उल्लेखनीय है। इसलिए, अंतरिक्ष यान या टॉयलेट के मुद्दे पर बहस करने की आवश्यकता नहीं है! भारत और चीन जैसे देशों के लिए ये दोनों जरूरी हैं, और इनका विकास लक्ष्य निश्चित रूप से साकार होगा!
लेखक चाइना मीडिया ग्रुप से जुड़े हैं और कई वर्षों तक भारत में रहकर विभिन्न शहरों का भ्रमण भी कर चुके हैं।