हरिद्वार। संस्कृत हमारे ज्ञान का बीज है जिसको सुरक्षित रख कर ही हम अपनी ज्ञान भूमि को उर्वर तथा विकासशील बना सकते हैं। अत: यह आवश्यक है कि भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपनी समन्वित जिज्ञासा तथा चिन्तन का द्वार सर्वथा उन्मीलित रखे। यह बात प्रो. वरखेड़ी ने पांच दिवसीय अखिल भारतीय शास्त्र प्रतियोगिता के उद््घाटन के दौरान कही। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही त्याग, तपस्या, परिश्रम तथा जीवनमूल्य आदि के प्रति निष्ठावान बने रहने की भी विशेष आवश्यकता है जिसकी प्रेरणा संस्कृत में ही सन्निहित है।
मुख्य अतिथि के रुप में पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि संस्कृत को आज वह अपेक्षित स्थान प्राप्त नहीं हो पाया है, जो उसे प्राप्त होना चाहिए था। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कहा कि संस्कृत, भारतीय संस्कृति और सभ्यता ने पूरे विश्व में अपना लोहा मनवाया है और आज भी दुनिया संस्कृत के कारण भारत की ओर देख रही है। साथ ही उनका यह भी विचार था कि आज पतंजलि विश्वविद्यालय इसलिए इतनी प्रतिष्ठित हो सका है क्योंकि यहां पर संस्कृत में निहित ज्ञान विज्ञान के अध्ययन तथा शोध पर बल दिया जा रहा है ।

पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो विजयकुमार सीजी ने भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्ता तथा उसमें संस्कृत के योगदानों पर प्रकाश डाला और कहा कि संस्कृत के क्षेत्र में शोधकर्ताओं तथा अनुरागियो का यह विशेष दायित्व है कि हम विकसित भारत के निर्माण में संस्कृत की भूमिका का उन्मीलित करें।
संगीत नाटक अकादमी दिल्ली की अध्यक्षा डा संध्या पुरेछा ने कहा कि भारतीय ज्ञान तथा संस्कृत के कारण भी समग्र विश्व में हमारी प्रतिष्ठा रही है।
भारतीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष एनपी सिंह ने कहा कि संस्कृत शास्त्रों के अध्ययन, अध्यापन के बिना हम अंधे और अपाहिज की तरह हैं। यही कारण है कि भारतीय शिक्षा बोर्ड ने संस्कृत को अनिवार्य विषय के रूप में स्थान दिया है। हिंदी यदि राजभाषा और राष्ट्रभाषा है तो संस्कृत संस्कृति की भाषा है। इस भाषा के माध्यम से आने वाले ज्ञान में सभी संकटों का समाधान भी है। यूरोप का इको दर्शन बार-बार कहता है कि पृथ्वी को बचाना है तो भारत की ज्ञान परंपरा को अपनाना होगा।

