Report ring Desk
परिवर्तन प्रकृति का साश्वत नियम है। समय के साथ-साथ मनुष्य की जरूरतों में भी बदलाव आता रहता है। समय के साथ-साथ पहाड़ के लोगों की जीवनशैली में भी बदलाव आता गया। यह भी एक बदलाव ही है कि कभी हर घर की जरूरत होती थी हाथ से चलने वाली चक्की और ओखली। हाथ से चलने वाली चक्की को तब पहाड़ की भाषा में ‘जतर’ या ‘चाक’ नाम से जाना जाता था। हाथ से चलने वाली चक्की का आटा बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होता था। हाथ से चक्की चलाने के दो फायदे थे। हाथ से चक्की चलाने का मतलब एक प्रकार का जिम था, एक घंटे की कसरत से चक्की चलाने वाले के हाथ तो मजबूत होते ही थे साथ ही खाने के लिए शुद्ध आटा भी मिलता था। एक तरह से दोहरा फायदा था। यानी हम इसे आम के आम और गुठली के दाम भी कहें तो अतिश्योक्ति न होगी।
लेकिन अब पहाड़ के अधिकतर घरों से हाथ से चलने वाली चक्की यानी ‘चाक’ विलुप्त हो चुके हैं। अब गिने चुने गांवों या घरों में ही इनका प्रयोग होता है। अधिकतर लोग अब बिजली, डीजल से चलने वाली चक्की का प्रयोग करते हैं या फिर पिसा हुआ आटा खाने लगे है। काम के लिहाज से कहें या बदलती जीवनशैली का प्रभाव, अब हाथ की चक्की चलाने में लोग शर्म महसूस करने लगे हैं। लेकिन पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट तहसील के अंतर्गत गांव ननौली की शोभा नेगी अब भी हाथ की चक्की का आटा ही पसंद करती है। शोभा के पास गेहूं, मडुवा पीसने वाली चक्की तो है ही साथ ही एक छोटी चक्की भी है जो दालें पीसने के काम आती है। शोभा कहती है कि ये हमारी संस्कृति और धरोहर हैं, इसे हमें सजोकर रखना चाहिए। वह अपने बच्चों को भी हाथ से चलने वाली चक्की चलाने के लिए पे्ररित करती हैं। शोभा की तरह अब गिने चुने लोग ही बचे हैं जो हाथ से चलने वाली चक्की का आटा पसंद करती हैं।