By G D Pandey
29 जुलाई 2020 को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पोलिसी डोक्यूमैण्ट भारत सरकार की कैबिनेट द्वारा प्रधानंमत्री की अध्यक्षता में अनुमोदित कर दिया गया। बताया जा रहा है कि डोक्यूमैण्ट को अंतिम रूप देने में पांच वर्ष का समय लग गया क्योंकि इसे तैयार करने में विश्व की सबसे बड़ी परामर्श प्रक्रिया अपनाई गयी और देश विदेश के विद्वानों, शिक्षा विदों तथा विश्व विद्यालयों सहित सभी स्तरों पर व्यापक चर्चा और लाखों सुझावों के आधार पर इक्कीसवीं शदी की चुनौतियों, भारत में कौशल विकास और आत्म निर्भरता की जरूरतों के मद्देनजर इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अंतिम रूप दिया गया है। यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्थान लेगी । सैद्धांतिक तौर पर यह एक सुधारवादी कदम अवश्य है परन्तु इसका व्यावहारिक रूप कितना कारगर होगा और नई शिक्षा नीति समाज के शोषित व वंचित तत्वों के बच्चों के व्यक्तित्व के विकास तथा उनकी क्षमताओं के अंकुरण में कितनी सहायक और सार्थक सिद्ध होगी, यह तो समय ही बतायेगा। उम्मीद की जा सकती है कि समाज के अंतिम पंक्ति के बच्चों के जीवन में भी कुछ न कुछ असर इस नई शिक्षा नीति से पड़ेगा।
मूलत: अंग्रजी भाषा में तैयार किया गया नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का यह दस्तावेज 27 अध्यायों (चेप्टरर्स) में वर्णित है जिसमें कुल 65 पृष्ठ हैं। इस दस्तावेज के इन्ट्रोडक्शन (परिचय) वाले पृष्ठ की पहली लाइन में शिक्षा को परिभाषित करते हुए लिखा गया है, कि शिक्षा मानव की समग्र क्षमता प्राप्त करने, न्याय संगत एवं न्यायोचित समाज का विकास करने और राष्ट्रीय विकास में प्रगति करने के लिए, मौलिक है । इस परिचय में यह भी कहा गया है कि सीखने की वर्तमान प्रणाली के परिणामों और भविष्य में जिस तरह की सीखने की प्रणाली की आवश्यकता है उसके बीच की खाई को भरना होगा। यह भी लिखा गया है कि 21वीं शदी की यह सबसे पहली शिक्षा नीति है जिसका उद्देश्य हमारे देश की बढ़ती हुई विकासात्मक अनिवार्यताओं को संबोधित करना है। वर्ष 2040 तक देश के सभी शिक्षार्थियों, चाहे उनकी सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि जो भी हो, को न्यायसंगत सर्वोच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया कराना है, इत्यादि-इत्यादि। यहाॅ पर एक बुनियादी प्रश्न पैदा होता है कि क्या देश के वर्तमान सामाजिक आर्थिक स्वरूप के तहत समाज के सुविधाहीन , शोषित व वंचित तबकों के लोग आने वाले बीस वर्ष अर्थात 2040 तक भी अपने बच्चों को सर्वोच्च गुणवत्ता वाली उच्चतम शिक्षा का लाभ दिला पायेंगे ? समाज के मौजूदा आर्थिक-सामाजिक ढांचे में बिना मूलभूत क्रांतिकारी परिवर्तन के ऊपरी तौर पर क्या हैव्स और है व नोट्स के बीच की यह गहरी खाई समतल हो पायेगी?
5+3 +3 +4 वाले पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जायेगी
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सीखने की बुनियाद को बचपन की शुरुआती केयर और शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम (कैरिकुलम) और अध्ययनशास्त्र (पैडागौजी) का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है और 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए अर्ली चाइल्ड केयर एण्ड एजुकेशन का कैरिकुलम (पाठ्यक्रम) एनसीईआरटी द्वारा तैयार एवं विकसित किया जायेगा। आंगनबाड़ी की व्यवस्था दुरुस्त की जायेगी। बच्चों के बैठने तथा सीखने का उचित प्रबंध करने की बात कही गयी है। इसका पूरा विवरण इस नीति के अध्याय एक के 1.5 बिन्दु पर दिया गया है। आंगनबाड़ी में खेल-खेल में सीखने, खिलौनों से खेलने, अक्षरों की पहचान, कहानियों, अच्छी आदतें इत्यदि पर अध्यापक ध्यान केंद्रित करते हुए दिये गये पाठ्यक्रमानुसार बच्चों को आंगनबाड़ी में सिखाएंगे। अध्यापकों के लिए भी बताया गया है कि वे 12 वीं पास होने की स्थित में 6 महीने का सर्टीफिकेट कोर्स ट्रैनिंग के रूप में करेंगे और 10 वीं पास होने की स्थिति में ट्रैनिंग के तौर पर एक साल का डिप्लोमा कोर्स करना होगा। मिड डे मील आंगनबाड़ी में भी जारी रहेगा । आंगनबाड़ी की मोनिटरिंग के लिए स्पेशल टास्क फोर्स भी बनाई जाएगी।
6 से 9 वर्ष तक के बच्चों के लिए फाउंडेशनल लिट्रेसी (बुनियादी साक्षरता) पाठ्यक्रम तैयार किया जायेगा। स्कूल शिक्षा के लिए 5+3 +3 +4 वाले पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जायेगी। अंतिम 4 वर्ष कक्षा 9 से 12वीं तक के होंगे। सेकेंड्री एजुकेशन में पढ़ाई की नई तकनीक वाली आनलाइन पद्धति भी लागू की जायेगी। इसके लिए कंप्यूटर, लैपटाप तथा स्मार्ट फोन जैसे उपकरण वाजिब दामों पर उपलब्ध कराने की बात कही गयी है। यहाॅ पर सवाल यह है कि सरकार के पास क्या अभी कोई डेटा है कि देश में कितने बच्चे कंप्यूटर, लैपटाप और स्मार्ट फोन खरीदने की स्थिति में हैं और कितनों के पास अभी ये उपकरण मौजूद हैं ? जब हमारी सरकार सच्चे दिल से सुविधाहीन व वंचित बच्चों को अन्य सुविधायुक्त व विशेषाधिकार प्राप्त तबकों के बच्चों के बराबर लाना चाहती है तो क्या वाजिब दामों पर उपलब्ध कराने के बजाय उन्हें ये उपकरण जो कि आन लाइन पढ़ाई के लिए आवश्यक है, नि :शुल्क उपलब्ध नहीं कराए जाने चाहिए ?
निःसदेह कराये जाने चाहिए तभी सरकार की यह नई शिक्षा नीति बच्चों तक आनलाइन शिक्षा पहुंचा पायेगी। सरकारों ने कोरोना काल में गांव -देहातों में आन लाइन पढ़ाई की स्थिति का अनुभव कर ही लिया होगा। कहीं टावर नहीं है, कहीं सिगनल नहीं आते ,कहीं नेटवर्क की समस्या है, अधिकांश बच्चों के पेरैन्टस के पास स्मार्ट फोन भी नहीं है, यदि किसी के पास है भी तो वे 4 जी सिस्टम के नहीं है। भारत की लगभग 135 करोड़ जनता की शिक्षा प्रणाली के लिए पहले पूरा इन्फ्रास्टकचर स्थापित करके उसे चुस्त दुरुस्त करना और सभी को सरकार की तरफ से निःशुल्क संबंधित उपकरण मुहैया कराने से ही आन लाइन प्रणाली पूरे देश में साकार रूप ले सकती है। भारत सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अध्ययन करने से पता चलता है कि लार्ड मैकाले की 1835 की शिक्षा प्रणली मे कुछ बुनियादी सुधार करने का पूरा प्रयास किया गया है जो एक अच्छा कदम साबित हो सकता है। एक बात यह समझ में नहीं आती है कि जब इस तरह की सामान पाठयक्रम, समान अध्ययनशात्र (padagogy) समाज के सभी वर्गों व तबकों के बच्चों के लिए उनके सर्वांगीण विकास के लिए बनाई गयी है तब भी सरकारी और प्राइवेट दो तरह के स्कूल किस रूप में एक दूसरे से भिन्न होंगे ?
जहां तक पहले अंग्रेजी माध्यम का और एक्सट्रा कैरिकुलर एक्टीविटीज का एक मुख्य अंतर प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच था , अब अगर यह अंतर नई शिक्षा नीति में समान करने की बात कही गयी है और सारे पाठ्यक्रमों की पुस्तकों को सेकेन्ड्री स्तर तक द्विभाषी बनाने अर्थता क्षेत्रीय या मातृभाषा और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में सभी विषय पढ़ाये जायेंगे और सरकारी स्कूलों समेत सभी स्कूलों में एक्सट्रा कैरिकुलर एक्टीविटीज के कई आयाम समाविष्ट किये गये हैं तो फिर दो शिक्षा व्यवस्थाएं किन मायनों में अलग रहेंगी ? क्या भारत में एक राष्ट्र, एक शिक्षा व्यवस्था लागू करने में कोई विशेष रुकावट है? यह एक विचारणीय विषय है। सभी बच्चाें के लिए कक्षा 12 की स्कूली शिक्षा अथवा उसके समकक्ष व्यावसायिक पाठ्यक्रम अनिवार्य होनी चाहिए शिक्षा। कक्षा 6 से ही बच्चों की अन्तर्निहित क्षमता एवं रुचि का मूल्यांकन एवं सही तौर पर आंकलन करने हेतु एक विशेषज्ञ संस्थान बनाए जाने चाहिए ताकि बच्चे जिस क्षेत्र में आगे बढ़कर अपना हूनर प्रदर्शित करने की क्षमता एवं रुचि रखते हों उन्हें उसी क्षेत्र में शिक्षित एवं प्रशिक्षित करने का बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराया जाना चाहिए तभी सच्चे अर्थों में बच्चों के बहुआयामी प्रतिभा का देश के विकास में इस्तेमाल हो पाएगा। शिक्षा उद्देश्यपरक एवं रोजगार परक होने से ही समाज और देश के विकास में मौलिकता की द्योतक बन सकेगी, अन्यथा नीतियों में जो कुछ निर्धारित किया जाता है व्यवहार में वह लागू ही नहीं हो पाता , ऐसा ही अभी तक तमाम सरकारी नीतियों में होता आ रहा है। नई शिक्षा नीति 2020 में विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा के ढांचे में भी काफी सुधार की बातें दिखाई दे रही हैं। यह सुनिश्चित की जानी चाहिए कि समाज के दस से बारह बच्चों के लिए ही नहीं सभी प्रतिभावना बच्चों के लिए उनकी अभीरुचि तथा योग्यता के अनुसार जिस क्षेत्र में वे उच्चतर शिक्षा ग्रहण करना चाहें उन्हें उसका समान अवसर मिलना चाहिए। तीन घंटे की परीक्षा में प्राप्त अंकों को बच्चों की वास्तविक प्रतिभा का वास्तविक आंकलन नहीं माना जाना चाहिए। बच्चों की पाठ्यक्रम की पुस्तकों तथा निर्धारित एक्सट्रा कैरिकुलर एक्टीविटीज दोनों समन्वय पर आधारित मूल्यांकन किया जाना आवश्यक होना चाहिए।
आठ भाषाओं को मिली जगह इसमें चायनीज नहीं
नई शिक्षा नीति में बहुभाषावाद (मल्टी लिंगुवललिज्म) को काफी तव्वजू दी गयी है। भारत की प्रचीनतम भाषाओं – प्राकृत, पाली तथा संस्कृत को बढ़ावा देने का प्रावधान इस शिक्षा नीति में किया गया है। पहले से चले आ रहे त्रिभाषा सूत्र (क्षेत्रीय मातृभाषा/ हिंदी /संस्कृत /अंग्रेजी ) को जारी रखने का प्रवाधान है। आठवीं तक की पढ़ाई में मात्रभाषा क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी यानी द्विभाषी पाठ्यक्रम के बावजूद मातृभाषा में चीजों को समझना और समझाने की बात भी कही है। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित सभी 22 भाषाएं क्षेत्रीय भाषाएं रहेंगी जबकि हिंदी संघ की राजभाषा यथावत चलेगी। इसके अलावा इस शिक्षा नीति के अध्याय 4 के बिन्दु 4.20 में आठ विदेशी भाषाओं को सीखने तथा उन्हें पढ़ाने की बात कही गयी है। ये आठ भाषाएं हैं 1 कोरियन 2 जापनी 3 थाई 4 फ्रेंच 5 जर्मन 6 स्पेनिश 7 पुर्तगाली 8 रूसी, उल्लेखनीय बात यह है कि ड्राफ्ट दस्तावेज में चीनी भाषा समेत केवल पांच विदेशी भाषाएं थीं लेकिन फाइनल दस्तावेज में चीनी भाषा को हटा दिया गया और कुल आठ विदेषी भाषाएं रखी गयी। चीनी भाषा को भारत में सीखने और सिखाने के प्रावधन न रखने का विषय भी एक चर्चा का विषय है। इस शिक्षा नीति को आत्म निर्भरता एवं कौशल विकास का आधार बताते हुए हमारे प्रधानमंत्री ने कहा है कि इस नई शिक्षा के तहत शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी जोब सिटर (job siter) नहीं बल्कि जोब क्रेटर (job cretor) बनेंगे और बनने चाहिए। अर्थात खोदा पहाड़ निकली चुहिया कहने का अभिप्राय है कि इस नई शिक्षा नीति का बीजमंत्र है स्वयं रोजगार पैदा करें और आत्मनिर्भर बनें ।
नई शिक्षा नीति भी कहीं न कहीं अमेरिका परस्ती
इसके अतिरिक्त नई शिक्षा नीति में अध्ययन संख्या 17 के अंतर्गत बिंदुसंख्या 17.1 में लिखा गया है कि ज्ञान की रचना और रिसर्च बड़ी और वायब्रैन्ट अर्थव्यवस्था के लिए समाज के उत्थान के लिए तथा देश की निरंतर उच्चतर ऊचाइयों तक ले जाने के लिए प्रेरित करने हेतु आवश्यक है । विश्व की सबसे अधिक संपन्न सभ्यताओं जैसे भारत, मैसोपोटामिया, मिस्र और ग्रीक इस वर्तमान युग में वास्तव में बौद्धिक और मानसिक संपदा के आधार पर अपने देशों के अलावा विश्व को नया ज्ञान दिया, वे देश हैं संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, इजरायल, दक्षिण कोरिया और जापान ।
उपर्युक्त पैरा में उल्लेखनीय बात यह है कि जापान इस समय दुनिया में टैक्नौलाजी के क्षेत्र में पहले स्थान पर है जबकि नये ज्ञान के उदाहरण में पैरा नंबर17.1 में संयुक्त राज्य अमेरिका को अग्रणी क्रम में रखा गया है। नई शिक्षा नीति भी कहीं न कहीं अमेरिका परस्ती को दर्शाती है। नई शिक्षा नीति में राष्ट्रीय शैक्षिक प्रद्योगिकी फोरम के गठन की बात कही गयी है। लिखा बहुत कुछ है, प्रश्न उसके लागू होने का है। नई शिक्षा नीति पर सभी संबंधित पक्षों को विशेष सम्मेलन द्वारा व्याख्यान दिये जा रहे हैं ताकि आवश्यकतानुसार उसे समझा जा सके। नई शिक्षा नीति में आर्टीफिजिकल इंटलीजैंस (कृतिम बुद्धि) के क्षेत्र में आगे बढ़कर काम करने की बात कही गयी है। कंप्यूटर विज्ञान में कृतिम बुद्धि के शोध को होशियार एजेंट का आकलन माना जाता है। आने वाला समय आर्टीफिजिकल इन्टैलीजैंट तथा रोवोटिक्स का है।
लेखक भारत सरकार के आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय के प्रशासनिक अधिकारी पद से अवकाश प्राप्त हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेखन और संपादन से जुड़े हैं।