नई दिल्ली। कला संकुल संस्कार भारती की ओर से यहां एक सांस्कृतिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उदघाटन कला संकुल के व्यवस्थापक दिग्विजय पाण्डेय, सह संयोजक विश्वदीप, तबला वादक प्रदीप पाठक ने दीपप्रज्वलित कर किया। दोनो कलाकारों की प्रस्तुति सराहनीय थी। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर चंदन चौबे उपस्थित रहे।
संगोष्ठी का शुभारंभ वंदना, तीनताल, तराना और ठुमरी से किया गया। इसके बाद मोमिता वत्स घोष ने ओडिसी की प्रस्तुति दी जिसमें राधा एवं सखी के संवाद को शानदार ढंग से पेश किया गयाा। सगोष्ठी में बड़ी संख्याम में संगीतविद, शिक्षक, छात्र, छात्राएं मौजूद रहे।
इस अवसर पर दिल्ली विवि हिन्दी विभाग के प्रोफेसर चंदन चौबे ने अपने उद्बोधन में कला साहित्य में भारत बोध विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि अगर भारत को समझना है तो यहां के कला परंपराओं में निहित संस्कृति चिह्नो को समझना होगा। यहां की उदार संस्कृति सर्वदा परिष्करण को स्वीकृति देती है, यहां के षटदर्शन में बौद्धिक विरासत और कला और साहित्य में सांस्कृतिक विरासत समाहित है। इन्ही विरासत को समझ कर भारत का बोध कर सकते हैं। कार्यक्रम का संचालन कुलदीप शर्मा ने किया।